कथनी और करनी- राधा नाचीज

कथनी और करनी- राधा नाचीज
शेक्सपीयर ने कहा है, ‘मन में जो भव्य विचार या शुभ योजना उत्पन्न हो, उसे तुरंत कार्यरूप मे परिणत कर डालिए, अन्यथा वह जिस तेजी से मन में आया, वैसे ही एकाएक गायब हो जाएगा और आप उस सुअवसर का लाभ न उठा सकेंगे।’ वास्तव में, समस्या यह नहीं कि हमारे पास उपयोगी विचार या सुंदर योजनाएं नहीं हैं। योजनाएं तो हम बहुत बनाते हैं। अपने बनाए उत्तम से उत्तम विचारों से प्रसन्न भी हम बहुत होते हैं, किंतु उन पर हम कार्य नहीं करते हैं। यही हमारी दुर्बलता है। हमें किन बातों से बचना चाहिए? हमें क्या कार्य करना चाहिए? क्या उचित है, क्या अनुचित है? हम सब इस संबंध में बहुत कुछ जानते हैं। समस्या यह है कि सब जानते-बुझते हुए अंतत: हम कार्य करते कितना हैं? व्यवहार में, दैनिक जीवन में, उन्नति की योजनाओं को कहां तक उतारते हैं? नवीन विचारों पर व्यवहार कितना करते हैं? जो हम सोचते हैं, क्या वह करते भी हैं? हमें विचार के पश्चात सतत कार्य करना चाहिए। कार्य करना ही सफलता का मूल-मंत्र है।
एक फ्रांसीसी कहावत है, ‘सोचो चाहे जो कुछ, पर कहो वही, जो तुम्हें करना चाहिए।’ जो व्यक्ति मन से, वचन से, कर्म से एक जैसा हो, वही पवित्र और सच्चा महात्मा माना जाता है। कथनी और करनी सम होना अमृत समान उत्तम माना जाता है। जो काम नहीं करते, कार्य के महत्व को नहीं जानते, कोरा चिंतन ही करते हैं, वे निराशावादी हो जाते हैं। कार्य करने से हम कार्य को एक स्वरूप प्रदान करते हैं। ‘काल करे सो आज कर’ में भी क्रियाशीलता का संदेश छिपा है। जब कोई अच्छी योजना मन में आए, तो उसे कार्यान्वित करने में देरी नहीं करनी चाहिए। अपनी अच्छी योजनाओं में लगे रहिए, जिससे आपकी प्रवृत्तियां शुभ कार्यों में लगी रहें। कथनी और करनी में सामंजस्य ही आत्म-सुधार का श्रेष्ठ उपाय है।
http://www.livehindustan.com/…/article1-hakespeare-planning…

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