दोस्तो अमेरिका कश्मीर पर कब्जा करना चाहता है ! ध्यान से पढे !

दोस्तो अमेरिका कश्मीर पर कब्जा करना चाहता है !! आप पूछेगे कोई ठोस आधार ???? ध्यान से पढे !

कुछ साल पहले अमेरिका कि विदेश मंत्री हेलेरी कलिंटन भारत आई ! और हमारे यहाँ एक tv चैनल जिसका नाम आजतक है ! आजतक के प्रभु चावला ने उसका interview लिया ! और interview मे एक ऐसा सवाल पूछा ! जिसका जवाब गलती से हेलेरी कलिंटन सच बता दिया !! (कई बार ऐसा हो जाता मुह से कोई छुपाने वाली बात सच निकाल जाती है !!) प्रभु चावला ने पूछा !कि अमेरिका ने पिछले 50 साल मे united nation मे कश्मीर मुद्दे पर भारत का हमेशा विरोध किया है! पाकिस्तान का साथ दिया है क्यूँ ??? (आप जानते है 1952 -53 से जम्मू कश्मीर का मुद्दा नेहरू कि मूर्खता के कारण united nation मे है ! वरना युद्ध मे तो भारतीय सेनिकों ने बुरी रोंद दिया था पाकिस्तान को ! और दो दिन अगर और मिलते तो लाहोर भी भारत मे आ जाता ! तब नेहरू को internationalism याद आ गया ! और बिना मतलब के मुद्दा united nation मे ले गाया ! और तब से अमेरिका उसको दबा कर बैठा है ! और हमेशा भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ देता गया !)) तो प्रभु चावला ने पूछा ! एक तरफ आप कहते है भारत से रिश्ते अच्छे बनाने है और ! आपने हमेशा पाकिस्तान का साथ दिया है ! आखिर आप चाहते क्या है ?? ???????? तो हेलेरी कलिंटन ने गलती से बोल दिया कि हमारी अमेरिका की संसद मे प्रस्ताव पारित हुआ है ! कि जम्मू कश्मीर पर हमे सेनिक अड्डा बनाना है ! तो उससे पूछा प्रस्ताव कब पारित हुआ था ?? तो उसने कहा 1989 मे !!! तो उससे पूछा प्रस्ताव नमबर ??! तब एक दम हलेरी कलिंटन को लगा कुछ गलत बोल दिया है ! तो उसने बात को घूमा दिया ! और कहा मुझे ज्यादा नहीं मालूम ! बस ऐसा है वैसा है !! ___________________ श्री राजीव दीक्षित जी वो interview सुन रहे थे ! तो उन्होने बिना देरी किए हुये अमेरिका मे अपने कुछ दोस्तो को फोन लगाया और कहा ! पता करो 1989 मे अमेरिका कि संसद मे ऐसा कौन सा प्रस्ताव पारित हुआ ?? जिसने कहा गया अमेरिका को जम्मू कश्मीर चाहीये वहाँ सेनिक अड्डा बनाने के लिए ?? तो पता चला प्रस्ताव का नंबर है 657 और 1989 को अमरीकी संसद मे पास हुआ !! और उसमे कहा गया है कि एक न दिन तो अमेरिका को जम्मू कश्मीर पर कब्जा कर सैनिक अड्डा बनाना ही है ! क्यूँ ?? कारण एक ही है ! जम्मू कश्मीर ही एक ऐसा area है ! जहां अमेरिका सैनिक अड्डा बनाकर चीन ,भारत और पाकिस्तान तीनों पर नजर रख सकता है ! और भविष्य मे कभी चीनया भारत पर हमला करना पड़े ! तो उससे बढ़िया को स्थान नहीं ! तो जम्मू कश्मीर की लड़ाई पाकिस्तान नहीं लड़ रहा है बल्कि अमेरिका लड़ रहा है, और “जम्मू कश्मीर को भारत से अलग कर दो” ये बोलने वाले कश्मीरी नेताओं को अमेरिका का धन और सुरक्षा दोनों मिल रहा है । यासीन मलिक को जुकाम हो जाए तो ये वाशिंगटन पोस्ट की हेडलाइन बनती है, जिस यासीन मलिक को हमारे देश में कोई पत्रकार पूछता नहीं उस यासीन मलिक का आधे-आधे पन्ने का इंटरव्यू अमेरिका के अख़बारों में आता है । चुकी यासीन मलिक को अमेरिका की शह है इसलिए यासीन मलिक पर कभी आतंकवादी हमला नहीं होता । और मुझे दुःख है ये कहते हुए कि जो कश्मीरी नेता जम्मू कश्मीर को अलग करने की बात करता है उसको भी सबसे ज्यादा सुरक्षा भारत सरकार उपलब्ध कराती है। एक और चर्चा आज कल हो रही है कि सैन्य बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) को हटाया जाए और कुछ देशद्रोही पत्रकार इसे मानवाधिकार का हनन मानते हैं लेकिन जब हमारे सैनिक कश्मीर और नार्थ-ईस्ट के सीमाओं पर मारे जाते हैं तो उन्हें दुःख तक नहीं होता ।

PROSTITUTE

अंग्रेजों ने हमें चारित्रिक रूप से, और नैतिक रूप से नीचा दिखाने के लिए, कमज़ोर बनाने के लिए, शराब के साथ एक काम और भी किया था। और उसमें भी हम भारतवासी काफी डूब गए हैं। और वह दूसरा काम यह था – भारत के वासियों को वेश्यावृत्ति के रास्ते पर धकेलना। बहुत खराब काम यह अंग्रेजों ने किया था।

आपको सुनकर ताज्जुब होगा, कि 1760 के पहले हिंदुस्तान में कोई शराब नहीं पीता था, ऐसे ही, 1760 के पहले के जो दस्तावेज़ हैं, रिकॉर्ड हैं, वे बताते हैं कि इस देश में कोई वेश्याघर नहीं था, वेश्यालय नहीं था। पूरे हिन्दुस्तान में ! ये अँगरेज़ थे जिंहोंने सबसे पहला वेश्यालय खोल सन 1760 में प्लासी के युद्ध के बाद कलकत्ते में। कलकत्ता में एक बहुत बदनाम इलाका कहा जाता है, जिसको सरकार रेड लाइट एरिया कहती है, और उसका नाम है सोनागाची। यह सोनागाची का रेड लाइट एरिया है – आपको सुनकर बहुत अफ़सोस होगा, दुःख होगा – यह अंग्रेजों का बसाया हुआ है, और अंग्रेजों का बनाया हुआ है। सन 1760 से पहले देश की किसी भी गाँव में, किसी नगर में वेश्याघर नाम की कोई भी चीज़ नहीं हुआ करती थी। तो आप बोलेंगे – मुस्लिम शासकों के ज़माने में क्या होता था? जब मुग़ल सम्राट इस देश में होते थे, मुग़ल शासक इस देश में होते थे, मुस्लिम धर्म को मानने वाले शासक इस देश में होते थे, तब क्या होता था? मुस्लिम शासकों के ज़माने में, सात सौ साल तक इस देश में, एक भी वेश्यालय नहीं बना, एक भी वेश्याघर नहीं बना। कुछ एक-दो मुस्लिम शासलों ने, जो कि अपवाद माने जाते हैं, जिनको उनके धर्म वाले भी गालियाँ देते हैं, एक ग़लत काम शुरू किया था – माताओं, बहन, बेटियों को घरों में से उठा लेना और ज़बरदस्ती उनको एक महल में रखना, उस महल का नाम हरम होता था। उस हरम में, मुस्लिम शासक अपने आमोद-प्रमोद के लिए, समय गुजारने के लिए, माताओं, बहन, बेटियों का नाच वगैरह कराया करते थे। तो, यह कुछ मुस्लिम शासकों ने किया, लेकिन वेश्यालय और वेश्याघर इस हिंदुस्तान में कभी नहीं बना।

आप बोलेंगे – पुराने ज़माने में तो हमारे देश में, हमने इतिहास में पढ़ा है, कुछ उपन्यास भी पढ़े हैं। हो सकता है आपने एक उपन्यास पढ़ा हो अपने जीवन में – वैशाली की नगर वधू। सम्राट अशोक के ज़माने की बात है, चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य, चन्द्रगुप्त मौर्य के ज़माने की बात है, कि नगर वधू हुआ करती थी। हाँ, उस ज़माने में नगर वधू हुआ करती थी। लेकिन उसका काम वेश्या के काम से बिलकुल अलग होता था। नगर वधु जो होती थी, वह पूरे नगर की कोई सम्मान और इज्ज़त वाली कोई मां और बहन हुआ करती थी, और नगर वधु के शरीर को कोई भी पुरुष चाहे, तो अपनी वासना का शिकार नहीं बना सकता था। और नियम और क़ानून ऐसे थे कि नगर वधू के शरीर को कोई छू भी नहीं सकता था। आप बोलेंगे – फिर यह नगर वधू होती किसलिए थी? यह नगर वधू हुआ करती थी, समाज के लोगों को संगीत की तालीम देने के लिए, शिक्षा देने के लिए। जैसे, नृत्य सिखाने के लिए। जैसे गायन सिखाने के लिए। जैसे वाद्य सिखाने के लिए। वह संगीत की कला में बहुत निपुण कलाकार हुआ करती थी, और उनके द्वारा संगीत कला का शिक्षण और प्रशिक्षण का काम चला करता था। सम्राट अशोक के ज़माने में, सम्राट चन्द्रगुप्त के ज़माने में, सम्राट हर्षवर्धन के ज़माने में, सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के ज़माने में, जितने भी भारत में चक्रवर्ती सम्राट रहे हैं, उनके ज़माने जो नगर वधुएँ हुआ करती थीं, वे संगीत का शिक्षण और प्रशिक्षण देने वाली उच्च, इज्ज़तदार, बहुत रौबदार महिलायें हुआ करती थीं। वे अपने शरीर का सौदा करने वाली सामान्य वेश्याएं नहीं हुआ करती थीं।

तो, नगर वधू एक अलग बात थी, हरम में महिलाओं का रहना बिलकुल अलग बात थी। अंग्रेजों ने क्या किया – भारत वासियों के चरित्र को पूरी तरह ख़त्म कर देने के लिए सबसे पहली बार एक वेश्याघर खोल दिया और वह वेश्याघर सोनागाची का, कलकत्ता का वेश्याघर बन गया। अंग्रेजों ने वहां क्या किया – 1757 के प्लासी के युद्ध के बाद रोबर्ट क्लाइव ने कलकत्ता को लूटा, इतिहास में आपने पढ़ा होगा, न सिर्फ कलकत्ता के धन संपत्ति को लूटा, बल्कि जिन घरों में वह गया, उन घरों की माताओं, बहन, बेटियों की इज्ज़त और आबरू को भी लूटा। और ऐसे सैंकड़ों घर थे जहां अँगरेज़ घुस गए, और उनहोंने हमारी मां, बहन बेटियों की आबरू को तार-तार कर दिया। फिर उन मां बहन, बेटियों का समाज में कोई रखवाला नहीं रहा। घर वालों ने उनको निकाल दिया, समाज ने उनको तिरस्कृत कर दिया और अंग्रेजों ने उन की इज्ज़त से खिलवाड़ किया। तो ऐसी मां, बहन, बेटियों को पकड़ पकड़ कर अंग्रेजों ने वेश्या बना दिया और नियमित रूप से उनके यहाँ अँगरेज़ सैनिक अपनी वासना की शांति के लिए, अपनी भूख की शांति के लिए, शारीर वासना की शांति के लिए जाया करते थे। और, धीरे-धीरे यह वेश्याघर कलकत्ता से आगे बढ़ कर भारत के दूसरे नगरों में फैलते चले गए। अंग्रेजों ने जहां जहां कब्ज़ा किया, जैसे कलकत्ता में, जैसे पूना में, जैसे पटना में, जैसे दिल्ली में, जैसे मुंबई में, मद्रास में, बगलौर में, हैदराबाद में, सिकंदराबाद में, ऐसे 350 बड़े शहरों में अंग्रेजों ने कब्ज़ा करके अपनी छावनियां बनायीं, और हर छावनी में अंग्रेजों ने एक-एक वेश्याघर बना दिया।

पहले क्या होता था – इन छावनी में दूसरे देशों से गुलाम बनाकर लायी लडकियां रखी जाती थीं। फिर भारत की मां , बहन, बेटियाँ जिनकी इज्ज़त अँगरेज़ तार-तार करते थे, उनको रखवाना शुरू किया। और धीरे-धीरे यह काम बढ़ता गया, और बहुत दुःख और अफ़सोस की बात है कि हज़ारों-हज़ारों मां, बहन, बेटियों को अपनी इज्ज़त गंवा कर, अपनी अस्मत गंवा कर, अंग्रेजों की इस क्रूरता का शिकार होना पडा, अंग्रेजों की पिपासा का शिकार होना पडा, और उनको मजबूरी में यह वेश्या- धर्म अपनाना पडा। परिणाम उसका क्या हुआ – ऐसी वेश्याओं की संख्या बढती चली गयी, और वेश्याघरों की भी संख्या बढती चली गयी।

अफ़सोस है के अँगरेज़ चले गए 15 अगस्त 1947 को, तो वेश्यावृत्ति ख़त्म होनी चाहिए थी। अंग्रेजों के जाने के बाद यह ग़लत काम इस देश में बंद होना चाहिए था, क्योंकि अंग्रेजों ने अपने शरीर की पिपासा को शांत करने के लिए यह दुष्कर्म शुरू किया था, तो अंग्रेजों के जाने के बाद इसे क्यूं चलते रहना चाहिए ?

लेकिन बहुत दुःख और अफ़सोस की बात है, कि अंग्रेजों के जाने के बासठ साल के बाद भारतीय लोगों के नैतिक और चारित्रिक पतन करने वाला यह वेश्यावृत्ति का काम और तेज़ी से बढ़ गया है, और तेज़ी से फल-फूल रहा है, और ज्यादा पैमाने पर वेश्याघर खुल रहे हैं, और ज्यादा पैमाने पर हमारी मां, बहन, बेटियों को मजबूरी में इस व्यापार में धकेला जा रहा है। आंकड़ों में अगर मैं बात करूं तो, आपको सुनकर हैरानी होगी, 1760 में अंग्रेजों ने जो पहला वेश्याघर खोला था उसमें 200 के लगभग वेश्याएं हुआ करती थीं। अब आजादी के बासठ साल के बाद इस देश में, अंग्रेजों के जाने के बाद जब काले अंग्रेजों का शासन आगया है, अर्थात भ्रष्ट भारतीयों का शासन आगया है, तो सरकार के आंकड़ों के अनुसार, लगभग 20 लाख 80 हज़ार माताएं, बहनें वेश्यावृत्ति के काम में लग गयी हैं। अंग्रेजों के पहले, या अंग्रेजों के समय में, 200 माताएं, बहनें मुश्किल से इस काम में थीं। अब अंग्रेजों के जाने के बासठ साल के बाद बीस लाख अस्सी हज़ार माताएं, बहनें इस वेश्यावृत्ति के काम में हैं।

औत गैर-सरकारी आंकड़ों की अगर बात की जाए, जो संस्थाएं वेश्याओं के उद्धार के लिए काम करती हैं, वेश्याओं को इस वेश्यावृत्ति से बाहर निकालने के लिए जो संस्थाएं भारत में काम करती हैं उनके आंकड़ों को अगर मैं आपको बताऊँ, तो उनका कहना है कि भारत में करीब एक करोड़ पचास लाख से ज्यादा माताएं, बहनें, जिनको मजबूरी में यह वेश्यावृत्ति का काम करना पड़ रहा है।

उनकी मजबूरी क्या है – एक मजबूरी है उनकी सबसे बड़ी कि उनका पति शराबी है। एक मजबूरी दूसरी उनकी यह कि उनका पति उनको मारता-पीटता है। आप जानते हैं, हमारे देश की मां, बहन, बेटियों के साथ घरेलू हिंसा बहुत बड़े पैमाने पर होती है। पति अगर शराबी हो जाये तो पत्नी को पीटता है, और इतना पीटता है कि पत्नी घर छोड़कर भागने के लिए विवश हो जाती है, और ज़्यादातर माताएं और बहनें जब पत्नी के रूप में घर छोड़ने को विवश हो जाती हैं, तो वे जाने- अनजाने वेश्याघर में पहुँच जाती हैं, और हमारे देश में एक करोड़ पचास लाख माताएं और बहनें, जो गैर सरकारी आंकड़ों के अनुसार वेश्यावृत्ति के काम में लगी हुई हैं, उनमें से 34% माताएं, बहनें ऐसी हैं जो अपने शराबी पति के दुष्कर्म के चलते, पति से मार खाते-खाते, पिटते-पिटते, परेशान होकर, मजबूर होकर घर छोड़कर भागी हैं और इस काम में लग गयी हैं।

इसका मतलब – उन्होंने अपनी इच्छा से यह काम नहीं स्वीकार किया है। इसका मतलब – उन्होंने अपनी सद्भावना से अपने आप को इस काम में नहीं लगाया है। उनकी एक बहुत बड़ी मजबूरी है, जिसने उनको मजबूर किया है इस काम में लगने के लिए। और इस से भी ज्यादा दुःख की बात है, कि इन डेढ़ करोड़ माताओं, बहनों में, 18 साल से कम उम्र की माताओं, बहनों की संख्या 30% से ज्यादा है। 18 साल से कम उम्र की बहनें, बेटियाँ 30 प्रतिशत से ज्यादा हैं, जो इस वेश्यावृत्ति के रैकेट में धकेली गयी हैं। आपको मालूम है, कि यह बहुत बड़ा एक रैकेट चलता है। उड़ीसा में काफी ग़रीबी वाला इलाका है। हिंदुस्तान के सबसे ग़रीब इलाकों में कालाहांडी, हिंदुस्तान के सबसे ग़रीब इलाकों में बोलांगीर, हिंदुस्तान के सबसे ग़रीब इलाकों में ढेंकानाल, आदि जिले हैं। आपको पता है – हिन्दुस्तान के सबसे ग़रीब जिलों में से छः जिले उड़ीसा में ही पड़ते हैं। तो वहां क्या होता है – ग़रीबी के कारण कोई भी बाप, कोई भी मां, अपनी बेटी और बेटे को बेच देने के लिए मजबूर होते हैं। बेटी बिक जाती है, तो वेश्याघर में पहुँच जाती है। बेटा बिक जाता है तो किसी के घर में नौकर बनकर पहुँच जाता है। तो उड़ीसा के ग़रीबी वाले इलाके से, झारखंड के ग़रीबी वाले इलाके से, बंगाल के ग़रीबी वाले इलाके से, आसाम के ग़रीबी वाले इलाके से, और उत्तर-पूर्व के ग़रीबी वाले इलाके से, और भारत के अन्य ग़रीबी वाले इलाकों से, मां, बहन, बेटियों को मजबूरी में जो माता, पिता बेच रहे हैं, और दलाल लोग उनको खरीद कर वेश्याघरों में लाकर डाल रहे हैं, यह दूसरा बड़ा दुश्चक्र है जो हमारे देश में यह चल रहा है।

और एक तीसरा बड़ा दुश्चक्र जो हमारे देश में है, कि बहुत सारी माता, बहन, बेटियाँ जिनको पैसे की इतनी ज्यादा आकांक्षा हो गयी है, कि थोड़े से पैसों में उनका गुज़ारा नहीं चलता – उनको बहुत ज्यादा पैसा चाहिए अपना जीवन चलाने के लिए, बहुत ज्यादा पैसा चाहिए खर्च चलाने के लिए, जिनके खर्च हज़ार, दो हज़ार, पांच हज़ार में पूरे नहीं होते, जिनके रोज़-मर्रा के खर्च हज़ारों में होते हैं, दस-पंद्रह-बीस हज़ार से कम में जिनका जीवन नहीं चल सकता, ऐसी मां, बहन, बेटियों ने इच्छा के साथ इस पेशे में अपने को डाल दिया है, और हम उनको एक अंग्रेजी शब्द से संबोधित करते हैं – कॉल गर्ल। ये कॉल गर्ल वो बेटियाँ हैं, वो बहनें हैं, जो अपनी इच्छा से इस ‘बिज़नेस’ में आई हैं, और मात्र पैसे के लिए अपने शरीर की नुमाईश करके, अपने शरीर को बेच कर इस काम में लगी हुई हैं।

तो तीन स्तर पर यह दुष्कर्म इस देश में चल रहा है, और इस देश के करोड़ों लोगों की नैतिकता और चरित्र को तार-तार कर दिया है। पहले वेश्याघरों में अँगरेज़ सैनिक जाया करते थे अपने शरीर की आग शांत करने लिए, अब उन्हीं वेश्याघरों में हमारे भारतवासी जा रहे हैं, शरीर की आग शांत करने लिए। और जो जा रहे हैं, वे चरित्र और नैतिकता में गिरते ही जा रहे हैं, डूबते ही जा रहे हैं। उनके पैरों में इतनी ताक़त नहीं है, उनके संकल्प में इतना दम नहीं है, कि समाज के दूसरे लोगों के साथ कदम से कदम मिला कर चल सकें।

तो यह दूसरा बड़ा दुश्चक्र हमारे देश में है – शराब के बाद वेश्यावृत्ति का, जिसमें हम काफी कुछ डूब गए हैं और करोड़ों भारतवासी इसमें शिकार हो गए हैं। तो मैं भारत स्वाभिमान की तरफ से एक अपील करना चाहता हूँ, कि हमको इस वेश्यावृत्ति को ख़त्म करने का आन्दोलन चलाना पड़ेगा – आज नहीं तो कल, कल नहीं तो परसों। जैसे शराब में डूबे हुए बीस बाइस करोड़ भारतवासियों को हम निकालना चाहते हैं, और उनको उच्च चरित्र और उच्च नैतिकता देना चाहते हैं, वैसे ही इस वेश्त्यावृत्ति के घृणित काम में डूबी हुई बहनों, बेटियों को निकालना है और इस घृणित काम में लगे हुए भाइयों को भी इसमें से बाहर निकालना है। और इसके लिए बड़े पैमाने पर, पूरी ताक़त से इस काम में लगना पड़ेगा। अपने जीवन के सामने एक उच्च आदर्श और रखें। पहला आदर्श अपने रखा है – व्यसनमुक्त भारतवर्ष बनाना, व्यसनमुक्त भारतीय समाज बनाना, तो दूसरा – वासनामुक्त भारत बनाना, वासनामुक्त भारतीय समाज बनाना। यह भी दूसरा बड़ा आदर्श हमें रखना पड़ेगा, तभी जाकर कोई बड़ी सामजिक क्रांति हम कर पायेंगे। आर्थिक क्रांति करना बहुत आसान काम है, राजनैतिक क्रान्ति करना भी बहुत आसान काम है, लेकिन सामजिक क्रांति करना, नैतिक क्रांति करना, चारित्रिक क्रांति करना बहुत मुश्किल काम होता है, बहुत ऊंचा काम होता है। इसको करने वाले भी विरले होते हैं, और करने वाले भी संख्या में बहुत कम होते हैं। तो आप सभी से मेरी विनम्र प्रार्थना है, विनम्र निवेदन है कि इस वासना में डूबे हुए भाइओं को, और इस वासना के कीचड में लिपटी हमारी मां, बहनों, बेटियों को जल्दी से जल्दी निकालने के लिए कमर कसकर अपने अपने स्थानीय स्तर पर अभियान चलायें, और इस अभियान को एक सार्थक और सफल मुकाम तक पहुंचाएं।

अधिक जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें:
http://www.youtube.com/watch?v=f16aL8Ne2gI

वन्देमातरम्

आर्थराइटिस और सभी तरह के joint pain का इलाज

आर्थराइटिस और सभी तरह के joint pain का इलाज !

जो मित्र पूरी post नहीं पढ़ सकते यहाँ click कर देखें !
http://www.youtube.com/watch?v=B0RX7alIatw
१. दोनों तरह के आर्थराइटिस (Osteoarthritis और Rheumatoid arthritis) मे आप एक दावा का प्रयोग करे जिसका नाम है चुना, वोही चुना जो आप पान मे खाते हो | गेहूं के दाने के बराबर चुना रोज सुबह खाली पेट एक कप दही मे मिलाके खाना चाहिए, नही तो दाल मे मिलाके, नही तो पानी मे मिलाके पीना लगातार तिन महीने तक, तो आर्थराइटिस ठीक हो जाती है | ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा | अगर आपके हात या पैर के हड्डी मे खट खट आवाज आती हो तो वो भी चुने से ठीक हो जायेगा |

२. दोनों तरह के आर्थराइटिस के लिए और एक अछि दावा है मेथी का दाना | एक छोटा चम्मच मेथी का दाना एक काच की गिलास मे गरम पानी लेके उसमे डालना, फिर उसको रात भर भिगोके रखना | सबेरे उठके पानी सिप सिप करके पीना और मेथी का दाना चबाके खाना | तिन महीने तक लेने से आर्थराइटिस ठीक हो जाती है | ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा |

३. ऐसे आर्थराइटिस के मरीज जो पूरी तरह बिस्तर पकड़ जुके है, चाल्लिस साल से तकलीफ है या तिस साल से तकलीफ है, कोई कहेगा बीस साल से तकलीफ है, और ऐसी हालत हो सकती है के वे दो कदम भी न चल सके, हात भी नही हिला सकते है, लेटे रहते है बेड पे, करवट भी नही बदल सकते ऐसी अवस्था हो गयी है …. ऐसे रोगियों के लिए एक बहुत अछि औषधि है जो इसीके लिए काम आती है | एक पेड़ होता है उसे हिंदी में हरसिंगार कहते है, संस्कृत पे पारिजात कहते है, बंगला में शिउली कहते है , उस पेड़ पर छोटे छोटे सफ़ेद फूल आते है, और फुल की डंडी नारंगी रंग की होती है, और उसमे खुसबू बहुत आती है, रात को फूल खिलते है और सुबह जमीन में गिर जाते है । इस पेड़ के छह सात पत्ते तोड़ के पत्थर में पिस के चटनी बनाइये और एक ग्लास पानी में इतना गरम करो के पानी आधा हो जाये फिर इसको ठंडा करके रोज सुबह खाली पेट पिलाना है जिसको भी बीस तिस चाल्लिस साल पुराना आर्थराइटिस हो या जोड़ो का दर्द हो | यह उन सबके लिए अमृत की तरह काम करेगा | इसको तिन महिना लगातार देना है अगर पूरी तरह ठीक नही हुआ तो फिर 10-15 दिन का गैप देके फिर से तिन महीने देना है | अधिकतम केसेस मे जादा से जादा एक से देड महीने मे रोगी ठीक हो जाते है | इसको हर रोज नया बनाके पीना है | ये औषधि Exclusive है और बहुत strong औषधि है इसलिए अकेली हि देना चाहिये, इसके साथ कोई भी दूसरी दावा न दे नही तो तकलीफ होगी | ध्यान रहे पानी पिने के समय हमेशा बैठ के पीना चाहिए नही तो ठीक होने मे समय लगेगा |

बुखार का दर्द का उपचार :

डेंगू जैसे बुखार मे शरीर मे बहुत दर्द होता है .. बुखार चला जाता है पर कई बार दर्द नही जाता | ऐसे केसेस मे आप हरसिंगार की पत्ते की काड़ा इस्तेमाल करे, 10-15 दिन मे ठीक हो जायेगा |

घुटने मत बदलिए :
RA Factor जिनका प्रोब्लेमाटिक है और डॉक्टर कहता है के इसके ठीक होने का कोई चांस नही है | कई बार कार्टिलेज पूरी तरह से ख़तम हो जाती है और डॉक्टर कहते है के अब कोई चांस नही है Knee Joints आपको replace करने हि पड़ेंगे, Hip joints आपको replace करने हि पड़ेंगे | तो जिनके घुटने निकाल के नया लगाने की नौबत आ गयी हो, Hip joints निकालके नया लगाना पड़ रहा हो उन सबके लिए यह औषधि है जिसका नाम है हरसिंगार का काड़ा |

राजीव भाई का कहना है के आप कभी भी Knee Joints को और Hip joints को replace मत कराइए | चाहे कितना भी अच्छा डॉक्टर आये और कितना भी बड़ा गारंटी दे पर कभी भी मत करिये | भगवान की जो बनाई हुई है आपको कोई भी दोबारा बनाके नही दे सकता | आपके पास जो है उसिको repair करके काम चलाइए | हमारे देश के प्रधानमंत्री श्री अटलजी ने यह प्रयास किया था, Knee Joints का replace हुआ अमेरिका के एक बहुत बड़े डॉक्टर ने किया पर आज उनकी तकलीफ पहले से जादा है | पहले तो थोडा बहुत चल लेते थे अब चलना बिलकुल बंध हो गया है कुर्सी पे ले जाना पड़ता है | आप सोचिये जब प्रधानमंत्री के साथ यह हो सकता है आप तो आम आदमी है |

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COLGET

हमलोग ब्रश करते हैं तो पेस्ट का इस्तेमाल करते हैं, कोलगेट, पेप्सोडेंट,
क्लोज-अप, सिबाका, फोरहंस आदि का, क्योंकि वो साँस की बदबू दूर करता है,
दांतों की सडन को दूर करता है, ऐसा कहा जाता है प्रचारों में | आप सोचिये कि
जब कोलगेट नहीं था, तब सब के दांत सड़ जाते थे क्या ? और सब के सांस से बदबू आती थी क्या ? अभी कुछ सालों से टेलीविजन ने कहना शुरू कर दिया कि भाई कोलगेट रगडो तो हमने कोलगेट चालू कर दिया | अब जो नीम का दातुन करते हैं तो उनको तथाकथित पढ़े-लिखे लोग बेवकूफ मानते हैं और खुद कोलगेट इस्तेमाल करते हैं तो अपने को बुद्धिमान मानते हैं, जब कि है उल्टा | जो नीम का दातुन करते हैं वो सबसे बुद्धिमान हैं और जो कोलगेट का प्रयोग करते हैं वो सबसे बड़े मुर्ख हैं |

जब यूरोप में घुमा करता था तो एक बात पता चली कि यूरोप के लोगों के दाँत सबसे ज्यादा ख़राब हैं, सबसे गंदे दाँत दुनिया में किसी के हैं तो यूरोप के लोगों
के हैं और वहां क्या है कि हर दूसरा-तीसरा आदमी दाँतों का मरीज है और सबसे
ज्यादा संख्या उनके यहाँ दाँतों के डाक्टरों की ही है, अमेरिका में भी यही हाल
है | वहां एक डाक्टर मुझे मिले, नाम था डाक्टर जुकर्शन, मैंने पूछा कि “आपके
यहाँ दाँतों के इतने मरीज क्यों हैं? और दाँतों के इतने ज्यादा डाक्टर क्यों
हैं ?” तो उन्होंने बताया कि “हम दाँतों के मरीज इसलिए हैं कि हम पेस्ट रगड़ते
हैं ” तो मैंने कहा कि “तो क्या रगड़ना चाहिए?”, तो उन्होंने कहा कि “वो हमारे
यहाँ नहीं होती, तुम्हारे यहाँ होती है ” तो फिर मैंने कहा कि “वो क्या?”, तो
उन्होंने बताया कि “नीम का दातुन” | तो मैंने कहा कि “आप क्या इस्तेमाल करते हैं?” तो उन्होंने कहा कि “नीम का दातुन और वो तुम्हारे यहाँ से आता है मेरे लिए ” | यूरोप में लोग नीम के दातुन का महत्व समझते हैं और हम प्रचार देख कर “कोलगेट का सुरक्षा चक्र” अपना रहे हैं, हमसे बड़ा मुर्ख कौन होगा |

कोलगेट,पेप्सोडेंट, क्लोज-अप, सिबाका, फोरहंस आदि बनता कैसे हैं, आपको मालूम है? किसी को नहीं मालूम, क्योंकि कोलगेट कंपनी कभी बताती नहीं है कि उसने इस पेस्ट को बनाया कैसे ? कोलगेट का पेस्ट दुनिया का सबसे घटिया पेस्ट है, क्यों ? क्योंकि ये जानवरों के हड्डियों के चूरे से बनता है | जानवरों के हड्डियों के चूरे के साथ-साथ इसमें एक और खतरनाक
चीज मिलाई जाती है, वो है फ्लोराइड | फ्लोराइड नाम उस जहर का है जो शरीर में फ्लोरोसिस नाम की बीमारी करता है और भारत के पानी में पहले से ही ज्यादा फ्लोराइड है | तीसरी एक और खतरनाक चीज होती है उसमे, ये है Sodium Lauryl Sulphate | मैं जब लोगों से पूछता हूँ कि “आप कोलगेट क्यों इस्तेमाल करते हैं” तो सभी लोगों का कहना होता है कि “इसमें क्वालिटी है” फिर मैं पूछता हूँ कि “क्या क्वालिटी है?” तो कहते हैं कि “इसमें झाग बहुत बनता है”, ये पढ़े-लिखे लोगों का उत्तर होता है | रसायन शास्त्र में एक रसायन होता है “Sodium Lauryl Sulphate ” और रसायन शास्त्र के शब्दकोष (dictionary) में जब आप देखेंगे तो इस “Sodium Lauryl Sulphate” के नाम के आगे लिखा होता है “जहर”/”poison “| और .05mg मात्रा शरीर में चली जाए तो कैंसर कर देता है और यही केमिकल कोलगेट में
मिलाया जाता है क्योंकि “Sodium Lauryl Sulphate ” डाले बिना किसी टूथपेस्ट में झाग नहीं बन सकता | टूथपेस्ट और सेविंग क्रीम दोनों में ये “Sodium Lauryl Sulphate ” डाला जाता है, बस थोडा प्रोसेस में अंतर होता है | ये झाग इसी केमिकल से बनता है तकनीकी भाषा में जिसे सिंथेटिक डिटर्जेंट कहा जाता है वही इन पेस्टों में मिलाया जाता है | यही सिंथेटिक डिटर्जेंट “Sodium Lauryl Sulphate ” कपडा धोने वाले वाशिंग पावडर और डिटर्जेंट केक में, शैम्पू में और दाढ़ी बनाने वाले सेविंग क्रीम में भी मिलाया जाता है | दुनिया का सबसे रद्दी पेस्ट हम इस्तेमाल कर रहे हैं |

धर्म के हिसाब से भी पेस्ट सबसे ख़राब है | सभी पेस्टों में मरे हुए जानवरों
की हड्डियाँ मिलायी जाती है | ये कोई भी जानवर हो सकता है, मैं इशारों में
आपको बता रहा हूँ और आप अगर शाकाहारी है या जैन धर्म को मानने वाले हैं तो क्यों अपना धर्म भ्रष्ट कर रहे हैं | मेरे पास हर कंपनी की लेबोरेटरी रिपोर्ट
है कि कौन कंपनी कौन से जानवर की हड्डी मिलाती है और ये प्रयोगशाला में प्रयोग करने के बाद प्रमाणित होने के बाद आपको बता रहे हैं हम |

और ये कोलगेट नाम का पेस्ट बिक रहा है Indian Dental Association के प्रमाण से | मुझे जरा बताइए कि कब इस संगठन ने कोई बैठक किया और कोलगेट के ऊपर प्रस्ताव पारित किया कि “हम कोलगेट को प्रमाणित करते हैं कि ये भारत में बिकना चाहिए” लेकिन कोलगेट भारत में बिक रहा है IDA का नाम बेच कर | “IDA” लिखा रहता है Upper Case में और मोटे अक्षरों में, और “Accepted” लिखा होता है छोटे अक्षर में | यहाँ भी धोखा है, ये “accepted” लिखते हैं ना कि “certified” | मुझे तो
आश्चर्य होता है कि भारत में दाँतों के डॉक्टर इसका विरोध क्यों नहीं करते,
कोई डेंटिस्ट खड़ा हो कर इस झूठ को झूठ क्यों नहीं कहता, क्यों नहीं वो कोर्ट
में केस करता | मैं नहीं कर सकता क्योंकि मैं कोई डेंटिस्ट नहीं हूँ, लेकिन
कोई डेंटिस्ट इस बात को सिद्ध कर सकता है, और वो ये भी बता सकता है कि “कोई भी
टूथपेस्ट जिसमे 1000 PPM से ज्यादा फ्लोराइड होता है तो वो सारे के सारे
टूथपेस्ट जहर हो जाते है, टूथपेस्ट नहीं रहते” मैं अगर ये बात कोर्ट में कहूं
तो कोर्ट मेरी बात नहीं मानेगा, कहेगा कि “आपके पास कोई डिग्री है इससे
सम्बंधित” | दुर्भाग्य से, जिनके पास डिग्री है वो कोर्ट में जा नहीं रहे हैं
और मेरे जैसे लोग, जिनके पास डिग्री नहीं है तो कोर्ट में जा नहीं सकते और
खिसिया (गुस्सा) के रह जाते हैं |

आपको एक और जानकारी देता हूँ | अमेरिका और यूरोप में जब कोलगेट बेचा जाता है
तो उसपर चेतावनी (Warning) लिखी होती है | लिखते अंग्रेजी में हैं, मैं आपको
हिंदी में बताता हूँ, उसपर लिखते हैं “please keep out this Colgate from the
reach of the children below 6 years” मतलब “छः साल से छोटे बच्चों के पहुँच
से इसको दूर रखिये/उसको मत दीजिये”, क्यों? क्योंकि बच्चे उसको चाट लेते हैं,
और उसमे कैंसर करने वाला केमिकल है, इसलिए कहते हैं कि बच्चों को मत देना ये
पेस्ट | और आगे लिखते हैं ” In case of accidental ingestion , please contact
nearest poison control center immediately , मतलब “अगर बच्चे ने गलती से चाट
लिया तो जल्दी से डॉक्टर के पास ले के जाइए” इतना खतरनाक है, और तीसरी बात वो
लिखते हैं “If you are an adult then take this paste on your brush in pea
size ” मतलब क्या है कि ” अगर आप व्यस्क हैं /उम्र में बड़े हैं तो इस पेस्ट
को अपने ब्रश पर मटर के दाने के बराबर की मात्रा में लीजिये” | और आपने देखा
होगा कि हमारे यहाँ जो प्रचार टेलीविजन पर आता है उसमे ब्रश भर के इस्तेमाल
करते दिखाते हैं | और जानबूझ बच्चो से विज्ञापन करवाया जाता है !! और ये
अमेरीकन कंपनिया की चाल बाज है !! 1991 ये टीवी पर विज्ञापन दिखाते थे ! आम
toothpaste में होता है नमक !! लीजिये colgate saltfree ! और अब बोलते है !!
क्या आपके toothpaste मे नमक है ??
2-3 माहीने के बाद लेकर आ गए ! colgate max fresh !!
2-3 महीने ये बेच कर लोगो को बेवकूफ बनाया !! फिर नाम बदल कर ले आये ! colgate
sensitive ! इसे अपने sensitive दाँतो आर मसाज करे !!
और विज्ञापन ऐसा दिखाते हैं !! जैसे ये कोई सच मे सर्वे कर रहे हैं !! हमारे
दिमाग मे एक मिनट के लिए भी नहीं आता ! कि कंपनी ने विज्ञापन देने ए लिए लाखो
रुपए खर्च किए है ! तो वो तो अपने जहर को बढ़िया ही बताने वाले हैं !
2-3 महीने इस नाम से बेचा अब नाम बदल कर रख दिया है ! colgate anti cavity !!
थोड़े दिन इसको बेचेंगे फिर नाम बदल देंगे !!
!
हमारे देश में बिकने वाले पेस्ट पर ये “warning” नहीं होती जो ये कंपनी अपने
देश अमेरिका मे लिखती है हमारे देश मे उसके जगह “Directions for use” लिखा
होता है, और वो बात, जो वो अमेरिका और यूरोप के पेस्ट पर लिखते हैं, वो यहाँ
भारत के पेस्ट पर नहीं लिखते | और कोलगेट के डिब्बे पर ISI का निशान भी नहीं
होता , इसको Agmark भी नहीं मिला है, क्योंकि ये सबसे रद्दी क्वालिटी का होता
है | जो वो अमेरिका और यूरोप के पेस्ट पर लिखते हैं, वो यहाँ भारत के पेस्ट पर
नहीं लिखते, अब क्यों होता है ऐसा ये आपके मंथन के लिए छोड़ता हूँ और निर्णय
भी आप ही को करना है |

आप जिस भी पेस्ट के
INGREDIENT में इस केमिकल का नाम देखिये तो उसे कृपा कर के इस्तेमाल मत
कीजिये, अपना नहीं तो अपने बीवी-बच्चो का तो ख्याल कीजिये, अगर शादी नहीं हुई
है तो अपने माता-पिता का ख्याल तो कीजिये |

विकल्प
यहाँ मैं महर्षि वाग्भट (3000 साल पहले भारत मे हुये एक sant 135 वर्ष कि उम्र
तक जिये )के अष्टांग हृदयम का कुछ हिस्सा जोड़ता हूँ, जिसमे वो कहते हैं कि
दातुन कीजिये | दातुन कैसा ? तो जो स्वाद में कसाय हो, कसाय समझते हैं आप ?
कसाय मतलब कड़वा और नीम का दातुन कड़वा ही होता है और इसीलिए उन्होंने नीम के
दातुन की बड़ाई (प्रसंशा) की है | उन्होंने नीम से भी अच्छा एक दूसरा दातुन
बताया है, वो है मदार का, उसके बाद अन्य दातुन के बारे में उन्होंने बताया है
जिसमे बबूल है, अर्जुन है, आम है, अमरुद है, जामुन है, ऐसे 12 वृक्षों का नाम
उन्होंने बताया है जिनके दातुन आप कर सकते हैं | चैत्र माह से शुरू कर के
गर्मी भर नीम, मदार या बबूल का दातुन करने के लिए उन्होंने बताया है, सर्दियों
में उन्होंने अमरुद या जामुन का दातुन करने को बताया है , बरसात के लिए
उन्होंने आम या अर्जुन का दातुन करने को बताया है | आप चाहें तो सालों भर नीम
का दातुन इस्तेमाल कर सकते हैं लेकिन उसमे ध्यान इस बात का रखे कि तीन महीने
लगातार करने के बाद इस नीम के दातुन को कुछ दिन का विश्राम दे | इस अवधि में
मंजन कर ले | दन्त मंजन बनाने की आसान विधि उन्होंने बताई है, वो कहते हैं कि
आपके स्थान पर उपलब्ध खाने का तेल (सरसों का तेल. नारियल का तेल, या जो भी तेल
आप खाने में इस्तेमाल करते हों, रिफाइन छोड़ कर ), उपलब्ध लवण मतलब नमक और
हल्दी मिलाकर आप मंजन बनाये और उसका प्रयोग करे | दातुन जब भारत के सबसे बड़े
शहर मुंबई में मिल जाता है तो भारत का ऐसा कोई भी शहर नहीं होगा जहाँ ये नहीं
मिले |

(साभार: भाई राजीव दीक्षित जी )

ऐसे औरमहत्वपूर्ण जानकारियों के लिए youtube पर rajiv dixit search करे !!

यहाँ जरूर जरूर click करे !
http://youtu.be/oga46f4op8U SaveFrom.net

वन्देमातरम वन्देमातरम !!

REALITY OF PEPSI AND COCA COLA

एक पेय पदार्थ है जिसको हम कोल्ड ड्रिंक के नाम से जानते हैं, इस क्षेत्र में अमेरिका की दो कंपनियों का एकाधिकार है, एक का नाम है पेप्सी और दूसरी है कोका कोला। 1990 -91 में दोनों कंपनियों का संयुक्त रूप से जो विदेशी पूंजी निवेश था भारत में, उसे सुनकर आश्चर्य करेंगे आप,दोनों ने मिलकर लगभग 10 करोड़ की पूंजी लगाई थी भारत में, कुल जमा 10 करोड़ रुपया (डौलर नहीं)। अर्थशास्त्र की भाषा में इसकोInitial Paid-up Capitalकहते हैं। इन दोनों कंपनियों के कुल मिलाकर 64 कारखाने हैं पूरे भारत में और मैं उन कारखानों में घुमा और इनके अधिकारियों से बात करके जानकारी लेने की कोशिश की, क्योंकि इनके वेबसाइट पर इनके बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं होती है।
एक ठंडा पेय है जो कि केवल 70- 80 पैसा की उत्पादन लागत में बनता है उसको 9 से 15 रुपये में बेचा जाता है और इन से लाभ का एक बड़ा हिस्सा विदेशों में भेजा जाता है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक गंभीर पलायन है। कोका कोला और पेप्सी नाम की 2 विदेशी कंपनियां हमारे देश को पिछले 15 सालों से लूट रही है। आइए नज़र डालते है कुछ आंकड़ों पर:
पेप्सी- कोला की जो बोतल हम सामान्यता 15 रुपये में खरीदते हैं, वही बोतल पाँच सितारा होटल में 25 रुपये और हवाई जहाज़ में 35-40 रुपये की मिलती है, जिसकी लागत पेप्सी कोला की कंपनी में मात्र 70 पैसे होती है। ये दोनों लूटेरी कंपनी 1 रुपये भारत सरकार को टैक्स देती हैं, 30 पैसा विज्ञापन पर खर्च करती हैंइन कंपनियों के एक बोतल पेय की लागत मात्र 70 पैसे होती है, आप कहेंगे कि मुझे कैसे मालूम ? भारत सरकार का एक विभाग है जिसका नाम हैBICP, ब्यूरो ऑफ़ इंडस्ट्रियल कास्ट एंड प्राईसेस ,यही वो विभाग है जिसे भारत में उत्पन्न होने वाले हर औद्योगिक उत्पादन की लागत पता होती है, वहीं से मुझे ये जानकारी मिली थी। आप हैरान हो जायेंगे ये जानकर कि 70 पैसे का जो ये लागत है इनका वो एक्साइज ड्यूटी देने के बाद की है, यानि एक्स-फैक्ट्री कीमत है ये। अगर एक बोतल 10 रुपया में बिक रहा है तो लगभग 1500% का लाभ ये कंपनी एक बोतल पर कमा रही है
भारत के कई वैज्ञानिकों ने पेप्सी और कोका कोला पर रिसर्च करके बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं ?? पेप्सी और कोका कोला वालों से पूछिये तो वो बताते नहीं हैं, कहते हैं कि ये टॉप सीक्रेट है, ये बताया नहीं जा सकता, लेकिन आज के युग में कोई भी सीक्रेट को सीक्रेट बना के नहीं रखा जा सकता। तो उन्होंने अध्ययन कर के बताया कि इसमें मिलाते क्या हैं, इसमें मिला होता है:
सोडियम मोनो ग्लूटामेट और वैज्ञानिक कहते हैं कि ये कैंसर करने वाला रसायन है।
फिर दूसरा जहर है – पोटैसियम सोरबेट – ये भी कैंसर करने वाला है।
तीसरा जहर है – ब्रोमिनेटेड वेजिटेबल ऑइल (BVO) – ये भी कैंसर करता है।
चौथा जहर है – मिथाइल बेन्जीन – ये किडनी को ख़राब करता है।
पाँचवा जहर है – सोडियम बेन्जोईट – ये मूत्र नली का, लीवर का कैंसर करता है।
इसमें चीनी के स्थान पर Aspertem का प्रयोग किया जाता है जिससे मूत्रनली का कैंसर होता हैं।
फिर इसमें सबसे ख़राब जहर है – एंडोसल्फान – ये कीड़े मारने के लिए खेतों में डाला जाता है और ऊपर से होता है – कार्बन डाईऑक्साइड – जो कि बहुत जहरीली गैस है और जिसको कभी भी शरीर के अन्दर नहीं ले जाना चाहिए और इसीलिए इन कोल्ड ड्रिंक्स को “कार्बोनेटेड वाटर” कहा जाता हैऔर इन्ही जहरों से भरे पेय का प्रचार भारत के क्रिकेटर और अभिनेता/अभिनेत्री करते हैं पैसे के लालच में, उन्हें देश और देशवाशियों से प्यार होता तो ऐसा कभी नहीं करते।
** पेप्सी-कोक के बारे में आपको एक और जानकारी देता हूँ – स्वामी रामदेव जी इसे टॉयलेट क्लीनर कहते हैं। आपने सुना होगा तो वो कोई इसको मजाक में नहीं कहते या उपहास में नहीं कहते हैं, इसके पीछे तथ्य है, तथ्य ये कि टॉयलेट क्लीनर और पेप्सी-कोक की Ph वैल्यू एक ही है।
मैं आपको सरल भाषा में समझाने का प्रयास करता हूँ। Ph एक इकाई होती है जो एसिड की मात्रा बताने का काम करती है और उसे मापने के लिए Ph मीटर होता है। शुद्ध पानी का Ph सामान्यतः 7 होता है और 7 Ph को सारी दुनिया में सामान्य माना जाता है और जब पानी में आप हाईड्रोक्लोरिक एसिड या सल्फ्यूरिक एसिड या फिर नाइट्रिक एसिड या कोई भी एसिड मिलायेंगे तो Ph का वैल्यू 6 हो जायेगा, और ज्यादा एसिड मिलायेंगे तो ये मात्रा 5 हो जाएगी, और ज्यादा मिलायेंगे तो ये मात्रा 4 हो जाएगी, ऐसे ही करते-करते ये मात्रा कम होती जाती है। जब पेप्सी-कोक के एसिड का जाँच किया गया तो पता चला कि वो 2.4 है और जो टॉयलेट क्लीनर होता है उसका Ph और पेप्सी-कोक का Ph एक ही है, 2.4 का मतलब इतना ख़राब जहर कि आप टॉयलेट में डालेंगे तो ये झकाझक सफ़ेद हो जायेगा।इस्तेमाल कर के देखिएगा। जब हमने पेप्सी और कोक के खिलाफ अभियान शुरू किया था तो हम अकेले थे लेकिन आज भारत में 70 संस्थाएं हैं जो पेप्सी-कोक के खिलाफ अभियान चला रहीं हैं, हम खुश हैं कि इनके बिक्री में कमी आयी है। ये पूरी तरह भारत में बंद हो जाएगी अगर आप इस को बात समझे और खरीदना बंद करें।
ज्यादातर लोगों से पूछिये कि “आप ये सब क्यों पीते हैं ?” तो कहते हैं कि “ये बहुत अच्छी क्वालिटी का है”। अब पूछिये कि “अच्छी क्वालिटी का क्यों है” तो कहते हैं कि “अमेरिका का है” और ये उत्तर पढ़े-लिखे लोगों के होते हैं। तो ऐसे लोगों को ये जानकारी मैं दे दूँ किअमेरिका की एक संस्था है FDA (Food and Drug Administration)और भारत में भी ऐसी ही एक संस्था है, उन दोनों के दस्तावेजों के आधार पर मैं बता रहा हूँ कि, अमेरिका में जो पेप्सी और कोका कोला बिकता है और भारत में जो पेप्सी-कोक बिक रहा है, तो भारत में बिकने वाला पेप्सी-कोक, अमेरिका में बिकने वाले पेप्सी-कोक से 40 गुना ज्यादा जहरीला होता है, सुना आपने ? 40 गुना, मैं प्रतिशत की बात नहीं कर रहा हूँऔर हमारे शरीर की एक क्षमता होती है जहर को बाहर निकालने की और उस क्षमता से 400 गुना ज्यादा जहरीला है, भारत में बिकने वाला पेप्सी और कोक। ये है पेप्सी-कोक की क्वालिटी औरवैज्ञानिकों का कहना है कि जो ये पेप्सी-कोक पिएगा उनको कैंसर, डाईबिटिज, ओस्टियोपोरोसिस (Osteoporosis), ओस्टोपिनिया (Osteopenia), मोटापा, दाँत गलने जैसी 48 बीमारियाँ होंगी।
कैलिफोर्निया के विश्वविद्यालय मे किए गए प्रयोग मे यह सिद्ध हो चुका है की पेप्सी और कोका कोला जैसे पेय एक SLOW POISON का काम करते हैं अगर कोई व्यक्ति 5 साल तक दिन में एक बोतल पेप्सी और कोका कोला जैसे पेयों की पीता है तो उसकी मृत्यु का प्रतिशत 80% तक बढ़ जाता है।
महामूर्ख वे हैं जो इसको मज़ाक़ समझते हैं और ऐसी फोटो देख सिर्फ़ दांत निकालते हैं।
यहाँ एक छोटा सा उदाहरण है :
12 महीने पहले 1 अमेरिकी डॉलर ($) = 50 भारतीय रुपये
12 महीनों के बाद, अब 1 अमेरिकी डॉलर ($) = 62 भारतीय रुपये।
क्या आपको लगता है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था फलफूल रही है ? नहीं, लेकिन भारतीय अर्थव्यवस्था नीचे जा रही है। हमारी सरकार तो इन्हे रोकेगी नहीं हमें ही कुछ कदम उठाने पड़ेंगे….!! हमारी अर्थव्यवस्था हमारे हाथों में है…!

 

भारत, हिन्दुस्थान, INDIA

यहाँ ‘ईश्वर’ से हमारा तात्पर्य है “परम सत्ता ” न कि ‘देवता’ । ‘देवता’ एक अलग शब्द है जिसका अशुद्ध प्रयोग अधिकतर ’परमसत्ता’ के लिए कर लिया जाता है। हालाँकि ईश्वर भी एक ‘देवता’ है। कोई भी पदार्थ – जड़ व चेतन – जो कि हमारे लिए उपयोगी हो व सहायक हो, उसे ‘देवता’ कहा जाता है । किन्तु उसका अर्थ यह नहीं है कि हर कोई ऐसी सत्ता ईश्वर है और उसकी उपासना की जाये । कोई भ्रम न हो इसलिए इस लेख में हम ‘ईश्वर’ शब्द का प्रयोग करेंगे ।

वह परम पुरुष जो निस्वार्थता का प्रतीक है, जो सारे संसार को नियंत्रण में रखता है , हर जगह मौजूद है और सब देवताओं का भी देवता है , एक मात्र वही सुख देने वाला है । जो उसे नहीं समझते वो दुःख में डूबे रहते हैं, और जो उसे अनुभव कर लेते हैं, मुक्ति सुख को पाते हैं । (ऋग्वेद 1.164.39)

प्रश्न 1.: वेदों में कितने ईश्वर हैं ? हमने सुना है कि वेदों में अनेक ईश्वर हैं ।

उत्तर : आपने गलत स्थानों से सुना है । वेदों में स्पष्ट कहा है कि एक और केवल एक ईश्वर है । और वेद में एक भी ऐसा मंत्र नहीं है जिसका कि यह अर्थ निकाला जा सके कि ईश्वर अनेक हैं । और सिर्फ इतना ही नहीं वेद इस बात का भी खंडन करते हैं कि आपके और ईश्वर के बीच में अभिकर्ता (एजेंट) की तरह काम करने के लिए पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरूरत होती है । मोटे तौर पर यदि समानता देखी जाये तो : इस्लाम में शहादा का जो पहला भाग है उसे लिया जाये : ला इलाहा इल्लल्लाह (सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह के सिवाय कोई और ईश्वर नहीं है ) और दूसरे भाग को छोड़ दिया जाये : मुहम्मदुर रसूलल्लाह (मुहम्मद अल्लाह का पैगम्बर है ), तो यह वैदिक ईश्वर की ही मान्यता के समान है । इस्लाम में अल्लाह को छोड़कर और किसी को भी पूजना शिर्क (सबसे बड़ा पाप ) माना जाता है । अगर इसी मान्यता को और आगे देखें और अल्लाह के सिवाय और किसी मुहम्मद या गब्रेइल को मानाने से इंकार कर दें तो आप वेदों के अनुसार महापाप से बच जायेंगे ।

प्रश्न 2: वेदों में वर्णित विभिन्न देवताओं या ईश्वरों के बारे में आप क्या कहेंगे…??? 33 करोड़ देवताओं के बारे में क्या….???

उत्तर: 1. जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है जो पदार्थ हमारे लिए उपयोगी होते हैं वो देवता कहलाते हैं । लेकिन वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि हमे उनकी उपासना करनी चाहिए । ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है , सिर्फ और सिर्फ उसी की ही उपासना करनी चाहिए ।

2. वेदों में 33 कोटि का अर्थ 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 प्रकार (संस्कृत में कोटि शब्द का अर्थ प्रकार होता है) के देवता हैं । और ये शतपथ ब्राह्मण में बहुत ही स्पष्टतः वर्णित किये गए हैं, जो कि इस प्रकार है : 8 वसु (पृथ्वी, जल, वायु , अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र ), जिनमे सारा संसार निवास करता है । 10 जीवनी शक्तियां अर्थात प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त , धनञ्जय ), ये तथा 1 जीव ये ग्यारह रूद्र कहलाते हैं 12 आदित्य अर्थात वर्ष के 12 महीने 1 विद्युत् जो कि हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है 1 यज्ञ अर्थात मनुष्यों के द्वारा निरंतर किये जाने वाले निस्वार्थ कर्म । शतपथ ब्राहमण के 14 वें कांड के अनुसार इन 33 देवताओं का स्वामी महादेव ही एकमात्र उपासनीय है । 33 देवताओं का विषय अपने आप में ही शोध का विषय है जिसे समझने के लिए सम्यक गहन अध्ययन की आवश्यकता है । लेकिन फिर भी वैदिक शास्त्रों में इतना तो स्पष्ट वर्णित है कि ये देवता ईश्वर नहीं हैं और इसलिए इनकी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

3. ईश्वर अनंत गुणों वाला है । अज्ञानी लोग अपनी अज्ञानतावश उसके विभिन्न गुणों को विभिन्न ईश्वर मान लेते हैं ।

4. ऐसी शंकाओं के निराकरण के लिए वेदों में अनेक मंत्र हैं जो ये स्पष्ट करते हैं कि सिर्फ और सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसके साथ हमारा सम्पर्क कराने के लिए कोई सहायक, पैगम्बर, मसीहा, अभिकर्ता (एजेंट) नहीं होता है । यजुर्वेद 40.1 यह सारा संसार एक और मात्र एक ईश्वर से पूर्णतः आच्छादित और नियंत्रित है । इसलिए कभी भी अन्याय से किसी के धन की प्राप्ति की इच्छा नहीं करनी चाहिए अपितु न्यायपूर्ण आचरण के द्वारा ईश्वर के आनंद को भोगना चाहिए । आखिर वही सब सुखों का देने वाला है । ऋग्वेद 10.48.1 एक मात्र ईश्वर ही सर्वव्यापक और सारे संसार का नियंता है । वही सब विजयों का दाता और सारे संसार का मूल कारण है । सब जीवों को ईश्वर को ऐसे ही पुकारना चाहिए जैसे एक बच्चा अपने पिता को पुकारता है । वही एक मात्र सब जीवों का पालन पोषण करता और सब सुखों का देने वाला है । ऋग्वेद 10.48.5 ईश्वर सारे संसार का प्रकाशक है । वह कभी पराजित नहीं होता और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होता है । वह संसार का बनाने वाला है । सभी जीवों को ज्ञान प्राप्ति के लिए तथा उसके अनुसार कर्म करके सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उन्हें ईश्वर की मित्रता से कभी अलग नहीं होना चाहिए । ऋग्वेद 10.49.1 केवल एक ईश्वर ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक ईश्वर को छोड़कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए । यजुर्वेद 13.4 सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है । एक वही पृथ्वी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है । वह स्वयं सुखस्वरूप है । एक मात्र वही हमारे लिए उपासनीय है । अथर्ववेद 13.4.16-21 वह न दो हैं, न ही तीन, न ही चार, न ही पाँच, न ही छः, न ही सात, न ही आठ, न ही नौ , और न ही दस हैं । इसके विपरीत वह सिर्फ और सिर्फ एक ही है । उसके सिवाय और कोई ईश्वर नहीं है । सब देवता उसमे निवास करते हैं और उसी से नियंत्रित होते हैं । इसलिए केवल उसी की उपासना करनी चाहिए और किसी की नहीं । अथर्ववेद 10.7.38 मात्र एक ईश्वर ही सबसे महान है और उपासना करने के योग्य है । वही समस्त ज्ञान और क्रियाओं का आधार है । यजुर्वेद 32.11 ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है । कोई भी स्थान उससे खाली नहीं है । वह स्वयंभू है और अपने कर्मों को करने के लिए उसे किसी सहायक, पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरुरत नहीं होती । जो जीव उसका अनुभव कर लेते हैं वो उसके बंधनरहित मोक्ष सुख को भोगते हैं । वेदों में ऐसे असंख्य मंत्र हैं जो कि एक और मात्र एक ईश्वर का वर्णन करते हैं और हमें अन्य किसी अवतार, पैगम्बर या मसीहा की शरण में जाये बिना सीधे ईश्वर की उपासना का निर्देश देते हैं। प्रश्न: आप ईश्वर के अस्तित्व को कैसे सिद्ध करते हैं ? उत्तर: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों के द्वारा ।

प्रश्न 3: लेकिन ईश्वर में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं घट सकता, तब फिर आप उसके अस्तित्व को कैसे सिद्ध करेंगे….???

उत्तर: 1. प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट रूप से जाना गया निर्भ्रांत ज्ञान । परन्तु यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि ज्ञानेन्द्रियों से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं । उदाहरण के लिए जब आप इस लेख को पढ़ते हैं तो आपको अग्निवीर के होने का ज्ञान नहीं होता बल्कि पर्दे (कंप्यूटर की स्क्रीन ) पर कुछ आकृतियाँ दिखाई देती हैं जिन्हें आप स्वयं समझकर कुछ अर्थ निकालते हैं । और फिर आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस लेख को लिखने वाला कोई न कोई तो जरूर होगा और फिर आप दावा करते हैं कि आपके पास अग्निवीर के होने का प्रमाण है । यह “अप्रत्यक्ष” प्रमाण है हालाँकि यह “प्रत्यक्ष” प्रतीत होता है । ठीक इसी तरह पूरी सृष्टि, जिसे कि हम, उसके गुणों को अपनी ज्ञानेन्द्रियों से ग्रहण करके, अनुभव करते हैं, ईश्वर के अस्तित्व की ओर संकेत करती है ।

2. जब किसी इन्द्रिय गृहीत विषय से हम किसी पदार्थ का सीधा सम्बन्ध जोड़ पाते हैं, तो हम उसके “प्रत्यक्ष प्रमाणित” के होने का दावा करते हैं । उदहारण के लिए जब आप आम खाते हैं तो मिठास का अनुभव करते हैं और उस मिठास को अपने खाए हुए आम से जोड़ देते हैं । यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि आप ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण केवल उस इन्द्रिय से जोड़ सकते हैं जिसे कि आपने उस विषय का अनुभव करने के लिए प्रयोग किया है । इस प्रकार पूर्वोक्त उदहारण में आम का ‘प्रत्यक्ष’ ‘कान’ से नहीं कर सकते, बल्कि ‘जीभ’, ‘नाक’ या ‘आँखों’ से ही कर सकते हैं । हालाँकि समझने में सरलता हो इसलिए हम इसे ‘प्रत्यक्ष प्रमाण’ कह रहे हैं लेकिन वास्तव में यह भी ‘अप्रत्यक्ष प्रमाण’ ही है। अब क्यूंकि ईश्वर सबसे सूक्ष्म पदार्थ है इसलिए स्थूल इन्द्रियों ‘आँख’, ‘नाक’, ‘कान’, ‘जीभ’ और ‘त्वचा’ से उसका प्रत्यक्ष असंभव है । जैसे की हम सर्वोच्च क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी के होते हुए भी अत्यंत सूक्ष्म कणों को नहीं देख सकते, अत्यंत लघु तथा अत्यंत उच्च आवृत्ति की तरंगों को नहीं सुन सकते, प्रत्येक अणु के स्पर्श का अनुभव नहीं कर सकते । दुसरे शब्दों में कहें तो जैसे हम कानों से आम का प्रत्यक्ष नहीं कर सकते और यहाँ तक की किसी भी इन्द्रिय से अत्यंत सूक्ष्म कणों को नहीं अनुभव कर सकते, ठीक ऐसे ही ईश्वर को भी क्सिसिं स्थूल और क्षुद्र इन्द्रियों से प्रत्यक्ष करना असंभव है ।

3. एक मात्र इन्द्रिय जिससे ईश्वर का अनुभव होता है वह है मन । जब मन पूर्णतः नियंत्रण में होता है और किसी भी प्रकार के अनैच्छिक विघ्नों (जैसे कि हर समय मन में आने वाले विभिन्न प्रकार के विचार ) से दूर होता है और जब अध्ययन और अभ्यास के द्वारा ईश्वर के गुणों का सम्यक ज्ञान हो जाता है तब बुद्धि से ईश्वर का प्रत्यक्ष ज्ञान ठीक उसी प्रकार होता है जैसे कि आम का अनुभव उसके स्वाद से । यही जीवन का लक्ष्य है और इसी के लिए योगी विभिन्न प्रकार के उपायों से मन को नियंत्रण में करने का प्रयास करता है । इन उपायों में से कुछ इस प्रकार हैं: अहिंसा, सत्य की खोज, सद्भाव, सबके सुख के लिए प्रयास, उच्च चरित्र, अन्याय के विरुद्ध लड़ना, एकता के लिए प्रयास इत्यादि ।

4. एक प्रकार से देखा जाये तो अपने दैनिक जीवन में भी हमे इश्वर के होने के प्रत्यक्ष संकेत मिलते हैं । जब भी कभी हम चोरी, क्रूरता धोखा आदि किसी बुरे काम को करने की शुरुआत करते हैं तभी हमे अपने अन्दर से एक भय, लज्जा या शंका के रूप में एक अनुभूति होती है । और जब हम दूसरों की सहायता करना आदि शुभ कर्म करते हैं तब निर्भयता, आनंद , संतोष, और उत्साह का अनुभव, ये सब ईश्वर के होने का प्रत्यक्ष संकेत है । यह ‘अंतरात्मा की आवाज़’ ईश्वर की ओर से है । अधिकतर हम अपनी मूर्खतापूर्ण प्रवृत्तियों के छद्म आनंददायी गीतों के शोर से दबाकर इस आवाज़ को सुनने की क्षमता को कम कर देते हैं । लेकिन जब कभी हम अपेक्षाकृत शांत होते हैं तब हम सभी इस ‘अंतरात्मा की आवाज़’ की तीव्रता को बढ़ा हुआ अनुभव करते हैं ।

5. और जब आत्मा अपने आप को इन मानसिक विक्षोभों/हलचलों/तरंगों से छुड़ाकर इन छाद्मआनंददायी गीतों की दुनिया से दूर कर लेता है तब वह स्वयं तथा ईश्वर दोनों का प्रत्यक्ष अनुभव कर पाता है । इस प्रकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के प्रमाणों से ईश्वर के होने का उतना ही स्पष्ट अनुभव होता है जितना कि उन सब पदार्थों के होने का जिन्हें की हम स्थूल इन्द्रियों के द्वारा अनुभव करते हैं ।

प्रश्न 4: ईश्वर कहाँ रहता है…???

उत्तर- (1) ईश्वर सर्वव्यापक है अर्थात सब जगह रहता है । यदि वह किसी विशेष स्थान जैसे किसी आसमान या किसी विशेष सिंहासन पर रहता तो फिर वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सबका उत्पादक, नियंत्रक और विनाश करने वाला नहीं हो सकता । आप जिस स्थान पर नहीं हैं उस स्थान पर आप कोई भी क्रिया कैसे कर सकते हैं ?

(2) यदि आप यह कहते हैं कि ईश्वर एक ही स्थान पर रहकर सारे संसार को इसी प्रकार नियंत्रण में रखता है जैसे कि सूर्य आकाश में एक ही स्थान पर रहकर सारे संसार को प्रकाशित करता है या जैसे हम रिमोट कण्ट्रोल का प्रयोग टी वी देखने के लिए करते हैं, तो आपका यह तर्क अनुपयुक्त है । क्यूंकि सूर्य का पृथ्वी को प्रकाशित करना और रिमोट कण्ट्रोल से टी वी चलना ये दोनों ही तरंगो के आकाश में संचरण के द्वारा होते हैं । हम उसे रिमोट कण्ट्रोल सिर्फ इसलिए कहते हैं क्यूंकि हम उन तरंगों को देख नहीं सकते। इसलिए ईश्वर का किसी भी चीज को नियंत्रित करना खुद ये सिद्ध करता है कि ईश्वर उस चीज में है ।

(3) यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह स्वयं को छोटी सी जगह में करके क्यूँ रखेगा ? तो ईश्वर जायेगा । ईसाई कहते हैं कि गॉड चौथे आसमान है और कहते हैं कि अल्लाह पर है । और उनके अनुयायी अपने आपको सही करने के लिए आपस में लड़ते रहते हैं । क्या इसका मतलब ये न समझा जाये कि अल्लाह और गॉड अलग अलग आसमानों में इसलिए रहते हैं कि कहीं वो भी अपने क्रोधी अनुयायियों की न लग जाएँ ? वास्तव में ये एकदम बच्चों जैसी बातें हैं । जब ईश्वर सर्वशक्तिमान और सरे संसार को नियंत्रण में रखता है तो फिर कोई कारण नहीं है कि वह खुद को किसी छोटी सी जगह में सीमित कर के रखे । और अगर ऐसा है तो फिर उसे सर्वशक्तिमान नहीं कहा जा सकता ।

प्रश्न 5: तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि ईश्वर अपवित्र वस्तुओं जैसे कि मदिरा, मल और मूत्र में भी रहता है…????

उत्तर- (1) पूरा संसार ईश्वर में है । क्यूंकि ईश्वर इन सब के बाहर भी है लेकिन ईश्वर के बाहर कुछ नहीं है । इसलिए संसार में सब कुछ ईश्वर से अभिव्याप्त है । मोटे तौर पर अगर इसकी समानता देखी जाये तो हम सब ईश्वर के अन्दर वैसे ही हैं जैसे कि जल से भरे बर्तन में कपडा । उस कपडे के अन्दर बाहर हर ओर जल ही जल है । उस कपडे का कोई भाग ऐसा नहीं है जो जल से भीगा न हो लेकिन उस कपडे के बाहर भी हर ओर जल ही जल है ।

(2) कोई वस्तु हमारे लिए स्वच्छ या अस्वच्छ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे लिए उस वस्तु की क्या उपयोगिता है । जिस आम का स्वाद हमको इतना प्रिय होता है वह जिन परमाणुओं से बनता है वही परमाणु जब अलग अलग हो जाते हैं और अन्य पदार्थों के साथ क्रिया करके मल का रूप ले लेते हैं तो वही हमारे लिए अपवित्र हो जाते हैं । वास्तव में ये सब प्राकृतिक कणों के योग से बने भिन्न भिन्न सम्मिश्रण ही हैं । हम सब का इस संसार में होने का कुछ उद्देश्य है, हम हर चीज को उस उद्देश्य की तरफ़ बढ़ने की दृष्टि से देखते हैं और कुछ को स्वीकार करते हैं जो कि उस उद्देश्य के अनुकूल हों और बाकि सब को छोड़ते चले जाते हैं । जो हम छोड़ते हैं वो सब हमारे लिए अपवित्र / बेकार होता है, और जो हम स्वीकार करते हैं मात्र वही हमारे लिए उपयोगी होता है । लेकिन ईश्वर के लिए इस संसार का ऐसा कोई उपयोग नहीं है, इसलिए उसके लिए कुछ अपवित्र नहीं है । इसके ठीक विपरीत उसका प्रयोजन हम सबको न्यायपूर्वक मुक्ति सुख का देना है, इसलिए पूरी सृष्टि में कोई भी वस्तु उसके लिए अस्पृश्य नहीं है ।

(3) दूसरी तरह से अगर समानता देखी जाये तो ईश्वर कोई ऐसे समाजसेवी की तरह नहीं है जो कि अपने वालानुकूलित कार्यालय में बैठकर योजनायें बनाना तो पसंद करता है लेकिन उन मलिन बस्तियों में जाने से गुरेज करता है जहाँ कि समाज-सेवा की वास्तविक आवश्यकता है । इसके विपरीत ईश्वर संसार के सबसे अपवित्र पदार्थ में भी रहकर उसे हमारे लाभ के लिए नियंत्रित करता है ।

(4) क्यूंकि एक मात्र वही शुद्ध्स्वरूप है इसलिए उसके हर वस्तु में होने और हर वस्तु के उसमे होने के बावजूद भी वह सबसे भिन्न और पृथक है । प्रश्न- क्या ईश्वर दयालु और न्यायकारी है ? उत्तर- हाँ! वह दया और न्याय का साक्षात् उदहारण है ।

प्रश्न 6: लेकिन यह दोनों गुण तो एक दुसरे के विपरीत हैं । दया का अर्थ है किसी का अपराध क्षमा कर देना और न्याय का अर्थ है अपराधी को दंड देना । ये दोनों गुण एक साथ कैसे हो सकते हैं…???

उत्तर- दया और न्याय वास्तव में एक ही हैं । क्यूंकि दोनों का उद्देश्य एक ही है।

(1) दया का अर्थ अपराधी को क्षमा कर देना नहीं है । क्यूंकि अगर ऐसा हो तो बहुत से निर्दोष लोगों के प्रति अत्याचार होगा । इसलिए जब तक अपराधी के साथ न्याय नहीं किया जायेगा तब तक निर्दोष लोगों पर दया नहीं हो सकती । और अपराधी को क्षमा करना, यह अपराधी के प्रति भी दया नहीं होगी क्यूंकि ऐसा करने से उसे आगे अपराध करने के लिए बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, अगर एक डाकू को बिना दंड दिए छोड़ दिया जाये तो वह अनेक निर्दोषों को हानि पहुंचाएगा । किन्तु यदि उसे कारगर में रखा जाये तो इससे वह न सिर्फ दूसरों को हानि पहुँचाने से रुकेगा बल्कि उसे खुद को सुधारने का एक मौका मिलेगा और वह आगे अपराध नहीं कर पायेगा । इसलिए न्याय में ही सबके प्रति दया निहित है ।

(2) वास्तव में दया इश्वर का उद्देश्य है और न्याय उस उद्देश्य को पूरा करने का तरीका है । जब इश्वर किसी अपराधी को दंड देता है तो वास्तव में वह उसे आगे और अपराध करने से रोकता है । और निर्दोषों की उनके अत्याचारों से रक्षा करता है । इस प्रकार न्याय का मुख्य उद्देश्य सबके प्रति दया करना है ।

(3) वेदों के अनुसार और जो कुछ हम संसार में देखते हैं उसके अनुसार भी दुःख का मूल कारण अज्ञान है, यही अज्ञान दुष्कर्मों को जन्म देता है जिन्हें की हम अपराध कहते हैं । इस्ल्ये जब कोई जीव दुष्कर्म करता है तो ईश्वर उसकी दुष्कर्म करने की स्वतंत्रता को बाधित कर देता है और उसे अपनी अज्ञानता और दुखों को दूर करने का मौका देता है ।

(4) माफ़ी मांग लेने भर से ईश्वर अपराधों को क्षमा नहीं कर देता । पापों और अपराधों का मूल कारण अज्ञानता का होना है और जब तक वो नहीं मिट जाता तब तक जीव कई जन्मों तक निरंतर अपने अच्छे और बुरे कर्मों के फल को भोगता रहता है । और इस सब न्याय का उद्देश्य जीव के प्रति दया करना है जिससे की वह परम आनंद को भोग सके ।

प्रश्न 7: तो क्या इसका अर्थ ये है कि ईश्वर मेरे पापों को कभी भी क्षमा नहीं करेगा…?? इससे तो इस्लाम और ईसाइयत अच्छे हैं। वहां अगर मैं अपने अपराध क़ुबूल कर लूं या माफ़ी मांग लूं तो मेरे पिछले सारे गुनाहों के दस्तावेज नष्ट कर दिए जाते हैं और मुझे नए सिरे से जीने का अवसर मिल जाता है ।

उत्तर – (1) ईश्वर तुम्हारे पापों को वास्तव में क्षमा तो करता है । ईश्वर की माफ़ी तुम्हारे कर्मों का न्यायपूर्वक फल देने में ही निहित है न कि पिछले कर्मों के दस्तावेज नष्ट कर देने में ।

(2) अगर वह तुम्हारे गुनाहों के दस्तावेज नष्ट कर दे तो यह उसका तुम्हारे प्रति घोर अन्याय और क्रूरता होगी । यह ऐसा ही होगा जैसे कि तुम्हे तुम्हारी वर्तमान कक्षा की योग्यता प्राप्त किये बिना ही अगली कक्षा के लिए प्रोन्नत कर देना । ऐसा करके वह तुमसे जुड़े हुए अन्य व्यक्तियों के साथ भी अन्याय करेगा।

(3) क्षमा करने का अर्थ होता है एक नया अवसर देना न कि 100% अंक दे देना जबकि आप 0 की पात्रता रखते हों । और ईश्वर यही करता है । और याद रखिये कि योग्यता का बढ़ना कोई एक पल में नहीं हो जाता, और न ही माफ़ी मांग लेने से योग्यता बढ़ जाती है । इसके लिए लम्बे समय तक समर्पण के साथ अभ्यास करना पड़ता है । केवल प्रमादी व्यक्ति ही बिना पूरा अध्ययन किये 100% अंक लेने के तरीके खोजते हैं ।

(4) यह दुर्भाग्य की बात है कि जो लोग ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के नाम पर लोगों को अपने मत/ सम्प्रदायों की ओर आकर्षित करते हैं वो खुद को और दूसरों को बेवकूफ बना रहे हैं। मान लीजिये किसी को मधुमेह की समस्या है क्या वह माफ़ी मांगने से ठीक हो सकती है ? जब एक शारीरिक समस्या का उपचार करने के लिए माफ़ी मांगना पर्याप्त नहीं है तो फिर मन जो कि मनुष्य को ज्ञात संसार का सबसे जटिल तंत्र है उसका उपचार मात्र एक माफ़ी मांग लेने से कैसे हो सकता है ।

(5) वास्तव में इनके सिद्धांतों में एक स्पष्ट त्रुटि/दोष है और वो ये है कि ये सिर्फ एक जन्म में विश्वास रखते हैं पुनर्जन्म में नहीं । इसलिए वो लोगों को आकर्षित करने के लिए ईश्वर तक पहुँचने के झूठे तरीके गढ़ना चाहते हैं। और अगर कोई उनकी बात न माने तो उसे नरक की झूठी कहानियां सुनाकर डराते हैं। अपने लेख Is God testing us? के द्वारा हम पहले ही एक जन्म वाली अवधारणा की खामियों को उजागर कर चुके हैं ।

(6) वैदिक दर्शन अधिक सहज, वास्तविकता के अनुरूप और तार्किक है । उसमे न कोई नरक है जहाँ माँ के समान प्रेम करने वाला ईश्वर आपको हमेशा के लिए आग में जलने के लिए डाल देगा और न ही वो आपको अपने प्रयासों के द्वारा अपनी योग्यता बढाने और अपनी योग्यता के अनुरूप उपलब्धियां प्राप्त करने के अवसरों से वंचित करेगा । आप खुद ही देह्खिये की क्या अधिक संतोषप्रद होगा: (अ) आपको सर्वोच्च अंक दिलाने वाला झूठा अंकपत्र, जबकि आप जानते हैं की वास्तव में आपको 0 प्राप्त हुआ है । (ब) दिन रात कठिन परिश्रम करके प्राप्त किये गए सर्वोच्च अंक, जबकि आप जानते हैं कि आपने विषय में विशेषज्ञता अर्जित करने के लिए अपनी ओर से अधिकतम प्रयास किया । इसलिए वेदों में सफलता के लिए कोई आसान या कठिन रास्ते नहीं हैं वहां तो केवल एक ही सही मार्ग है ! और सफलता उन सबसे अधिक संतोष दायक है जो कि इन छद्म आसान रास्तों पर चलने से प्राप्त होता हुआ प्रतीत होता है ।

प्रश्न 8: ईश्वर साकार है या निराकार…???

उत्तर- वेदों के अनुसार और सामान्य समझ के आधार पर भी ईश्वर निराकार है ।

(1) अगर वो साकार है तो हर जगह नहीं हो सकता । क्यूंकि आकार वाली वस्तु की अपनी कोई न कोई तो परिसीमा होती है । इसलिए अगर वो साकार होगा तो वह उस परिसीमा के बाहर नहीं होगा ।

(2) हम ईश्वर के आकार को देख पायें यह यह तभी संभव है जब कि वह स्थूल हो। क्यूँकि प्रकाश को परावर्तित करने वाले पदार्थों से सूक्ष्म पदार्थों को देखा नहीं जा सकता । किन्तु वेदों में ईश्वर को स्पष्ट रूप से सूक्ष्मतम, छिद्रों से रहित तथा एकरस कहा है (यजुर्वेद 40.8) । इसलिए ईश्वर साकार नहीं हो सकता ।

(3) ईश्वर साकार है तो इसका अर्थ है कि उसका आकार किसी ने बनाया है । लेकिन ये कैसे हो सकता है क्यूंकि उसीने तो सबको बनाया है तो उससे पहले तो कोई था ही नहीं तो फिर उसे कोई कैसे बना सकता है । और अगर ये कहें कि उसने खुद अपना आकार बनाया तो इसका अर्थ हुआ कि उसके पहले वो निराकार था ।

(4) और अगर आप ये कहें की ईश्वर साकार और निराकार दोनों है तो यह तो कैसे भी संभव नहीं है क्यूंकि ये दोनों गुण एक ही पदार्थ में नहीं हो सकते ।

(5) और अगर आप ये कहें कि ईश्वर समय समय पर दिव्य रूप धारण करता है तो कृपया ये भी बता दें कि किसका दिव्य रूप लेता है क्यूंकि अगर कहें कि ईश्वर मनुष्य का दिव्य रूप धारण करता है तो आप ईश्वरीय परमाणु और अनीश्वरीय परमाणु की सीमा कैसे निर्धारित करेंगे ? और क्यूंकि ईश्वर सर्वत्र एकरस (एक समान ) है तो फिर हम मानवीय- ईश्वर और शेष संसार में अंतर कैसे करें ? और यदि हर जगह एक ही ईश्वर है तो फिर हम सीमा कैसे देख रहे हैं ?

(6) वास्तव में जो मानव शरीर हम देख रहे हैं ये द्रव्य और ऊर्जा का शेष संसार के साथ निरंतर स्थानान्तरण है । किसी परमाणु विशेष के लिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि ये मानव शरीर का है या शेष संसार का । इसलिए मानवीय-ईश्वर के शरीर तक को अलग नहीं किया जा सकता। उदहारण के लिए, क्या उसके थूक, मल, मूत्र, पसीना आदि भी दिव्य होंगे ?

(7) वेदों में कहीं पर भी साकार ईश्वर की अवधारणा नहीं है । और फिर ऐसा कोई काम नहीं है जो की ईश्वर बिना शरीर के न कर सके और जिसके लिए कि उसे शरीर में आने की आवश्यकता हो ।

(8) जिन्हें हम ईश्वर के दिव्य रूप मानते हैं जैसे कि राम और कृष्ण, वास्तव में वो दिव्य प्रेरणा से कर्म करने वाले थे । याद कीजिये कि हमने ‘अंतरात्मा की आवाज़’ के बारे में बात की थी । ये महापुरुष ईश्वर भक्ति तथा पवित्र मन का साक्षात् उदहार…..

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INDIAN POLICE ACT

पूरी post नहीं पढ़ सकते तो यहाँ click करे !
http://www.youtube.com/watch?v=H9mVVLoVsNE
लाला लाजपात राय अंग्रेजो के खिलाफ़ लड़ रहे थे ।अंग्रेजी पूलिस ने उनके
सिर में लाठिया मार मार के उनको शहीद कर दिया ।

आजादी के 64 साल बाद 4 जून को भ्रष्ट सरकार के खिलाफ़ अंदोलन में पुलिस
ने बहन राजबाला को डंडे मार मार शहीद कर दिया ।

आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस अंदोलन करने वाले भारत वासियो को वैसे
ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो कैसे की हम आजाद हैं

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आखिर ये पुलिस बनी कब ? ?
10 मई 1857 को जब देश में क्रांति हो गई । और भारतवासियों ने पूरे देश
में 3 लाख अंग्रेजो को मार डाला । उस समय क्रांतिकारी थे मंगल पांडे,
तांतिया टोपे, नाना साहब पेशवा आदि ।

लेकिन कुछ गद्दार राजाओ के वजह से अंग्रेज दुबारा भारत में वापिस आयें ।
और दुबारा अंग्रेजो को भगाने के लिये 1857 से लेकर 1947 तक पुरे 90 साल लग गये ।

और इसके लिये भगत सिहं,उधम सिहं , चंद्र शेखर आजाद ,राम प्रसाद बिसमिल
जैसे 7 लाख 32 हजार क्रंतिवीरो को अपनी जान देनी पड़ी ।

जब अंग्रेज दुबारा आये तब उन्होने फ़ैसला किया कि अब हम भारतवासियों को
सीधे मारे पीटें गये नहीं । अब हम इनको कानून बना कर गुलाम रखेंगे । उनको
डर था कि 1857 जैसी क्रंति दुबारा न हो जाये । तब अंग्रेजो ने INDIAN
POLICE ACT बनाया । नाम मे indian लिखा है !लेकिन indian कुछ नहीं इसमे
!!

और पुलिस बनायी । उसमे एक धारा बनाई गई right to offence | मतलब पुलिस
वाला आप पर जितनी मर्जी लठिया मारे पर आप कुछ नहीं कर सकते और अगर आपने
लाठी पकड़ने की कोशिश की तो आप मर मुकद्दमा चलेगा ।
इसी कानून के आधार पर सरकार अंदोलन करने वालो पर लठिया बरसाया करती थी ।

फ़िर ऐसी धारा 144 बनाई गई ताकि लोग इकठे न हो सके ।

ऐसी ही कुछ और खतरनाक कानुन बनाने के लिये साईमन कमीशन भारत आने वाला था
। क्रंतिकारी लाला लाजपत राय जी ने उसका शंतिप्रिय विद्रोह कर रहे थे ।
अंग्रेजी पुलिस के एक अफ़सर सांड्र्स ने उन लाठिया बरसानी शुरु कर दी ।
एक लाठी मारी ,दो मारी ,तीन ,चार ,पांच करते करते 14 लाठिया मारी । नतीजा
ये हुआ लाला जी के सर से खून ही खून बहने लगा उनको अस्तपताल लेकर गये
वहां उनकी मौत हो गई ।

अब सांड्र्स को सज़ा मिलनी चाहिए इसके लिये शहीदेआजम भगत सिंह ने आदलत
में मुकद्दमा कर दिया । सुनवाई हुई । अदालत ने फैसला दिया कि लाला पर जी
जो लाठिया मारी गई है वो कानून के आधार पर मारी गई है अब इसमे उनकी मौत
हो गई तो हम क्या करे इसमे कुछ भी गलत नहीं है ।नतीजा सांड्र्स को बाईजत
बरी किया जाता है ।

तब भगत सिंह को गुस्सा आया उसने कहा जिस अंग्रेजी न्याय व्यवस्था ने लाला
जी के हथियारे को बाईज्जत बरी कर दिया । उसको सज़ा मैं दुंगा । और इसे
वहीं पहुँचाउगा जहाँ इसने लाला जी पहुँचाया है । और जैसा आप जानते फ़िर
भगत सिंह ने सांड्र्स को गोली से उड़ा दिया । और फ़िर भगत सिंह को इसके
लिये फ़ांसी की सज़ा हुई ।

जिंदगी के अंतिम दिनो जब भगत सिंह लाहौर जेल में बंद थे तो बहुत से
पत्रकार उनसे मिलने जाया करते थे । और भगत सिंह से पुछा उनकी कोई आखिरी
इच्छा और देश के युवाओ के लिये कोई संदेश ?

शहीदेआजम भगत सिंह ने कहा कि मैं देश के नौजवानो से उम्मीद करता हूँ । कि
जिस indian police act के कारण लाला जी जान गई । जिस indian police act
के आधार मैं फ़ांसी चढ़ रहा हूँ । मै आशा करता हुं इस देश के नौजवान
आजादी मिलने से पहले पहले इस indian police act खत्म करवां देगें ।ये
मेरी भावना है | यही मेरे दिल की इच्छा है ।

लेकिन ये बहुत शर्म की बात है अजादी मिलने के बाद जिन लोगो ने देश कि
सत्ता संभाली । उन्होने अंग्रेजो का भारत को बरबाद करने के लिये बनाये
गये कानुनो में से एक भी कानुन नही बदला ।बहुत शर्म की बात हैआजादी के 64
साल आज भी इस कानून को हम खत्म नहीं करवा पाये ।

आज भी आप देखो indian police act के आधार पर पुलिस देश वासियो पर कितना
जूल्म करती है । कभी अंदोलन करने वाले किसनो को डंडे मारती है । कभी औरत
को डंडे मारती है । सरकार के खिलाफ़ किसी भी तरह का अंदोलन किया जाता है ।
तो पुलिस आकर निर्दोश लोगो को डंडे मारने शुरु कर देती है ।

आज तक किसी भी राजा ने पुलिस नही बनाई सबकी सेना हुआ करती थी ।

अंग्रेजो ने पुलिस और indian police act क्रंतिकारियो को लाठियो से
पीटने और अपना बचाव करने के लिय़े बनाया था ।

आजादी के 64 साल बाद भी ये पुलिस सरकार में बैठे काले अंग्रेजो की रक्षा
करती है ।और सरकार के खिलाफ़ अंदोलनकरने वालो को वैसे ही पीटती है । जैसे
अंग्रेजो कि पुलिस पीटा करती थी ।

और सबसे ताज़ी घटना 4 जून की वो भयानक रात जब काला धन वापिस लाने के लिये
पुलिस रामलीला मैदान में सोये हुए देश भगतो पर आधी रात को लाठिया बर साई
। और सैंक्डो लोग उसमे घायल हो गये । और लाला लाजपत राय की तरह बहन
राजबाला को लाठिया मार मार कर मार डाला ।

आज हर साल 23 मार्च को हम भगत सिंह का शहीदी दिवस मानाते हैं । लाला
लाजपत राय का शहीदी दिवस मानाते हैं । किस मुँह से हम उनको श्रधांजलि
आर्पित करे ।
कि लाला लाजपत राय जी जिस कानून के आधार आपको लाठिया मारी गई और आपकी मौत
हुई उस कानून को हम आजादी के 64 साल बाद भी हम खत्म नहीं करवा पाये । कि
मुँह से हम भगत सिंह को श्रधंजलि दे कि भगत सिंह जी जिस अंग्रेजी कानून
के आधार पर आपको फ़ासी की सज़ा हुई । आजादी के 64 साल बाद भी हम उसको सिर
पर ढो रहे हैं । आज आजादी के 64 साल बाद आज भी पुलिस अंदोलन करने वाले
भारत वासियो को वैसे ही डंडे मारे जैसे अंग्रेजो की पुलिस मारती तो थी तो
कैसे की हम आजाद हैं ।

यह तो थी एक indian police act की कहानी ! अंग्रेज़ो ने ऐसे 34700 कानून
भारत को गुलाम बनाने के लिए बनाए थे ! और बहुत शर्म की बात है !वो सारे
के सारे कानून आज भी वैसे के वैसे देश चल रहे हैं !! एक भी कानून को हम
बादल नहीं पाये ! बस फर्क इतना है पहले गोरे अंग्रेज़ शासन करते थे आज
काले अंग्रेज़ शासन कर रहे हैं !!

एक बार यहाँ जरुर click करें ।
http://www.youtube.com/watch?v=H9mVVLoVsNE

GOVERNMENT OFFICER TRANSFER RULE

अगर आप पूरी पोस्ट नही पड़ सकते तो यहाँ क्लिक करें:
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सभि सरकारी अधिकारी एक बात से बहुत परीशान रहते है वो है ट्रान्सफर (Transfer), की कहीं ट्रान्सफर न हो जाये हमारा, एक हि चिंता उनको जिन्दगी भर रहती है के कहीं ट्रान्सफर न हो जाये | राजीव भाई कहते है उनके पिताजी भी बड़े सरकारी अधिकारी रहे वो भी हमेशा एक हि चीज के हमेशा चिंता करते थे वो है ट्रान्सफर, बाकि उन्हें कोई चिंता नही थी देश भाड़ मे जाये चूले मे जाये नरक मेजाये लेकिन भाई ट्रान्सफर नही होना चाहिए | और उनके पिताजी हमेशा जो हायर ऑफिसर्स थे उनको खुश करने मे लगे रहते थे के यह कहीं ट्रान्सफर न करादे मेरा | तो उनको सबसे बड़ा डर लगता था ट्रान्सफर का | एकबार जब राजीव भाई ने अपने पिताजी से पूछा के आपको ट्रान्सफर से इतना क्यों डर लगता है तो वे कहने लगे के “हर तिन साल मे ट्रान्सफर का नियम है, तो अगर CR ठीक नही रहे ऑफिसर्स बराबर नही हो तो कर देगा ट्रान्सफर, तो कहीं भी जाना पड़ेगा | हो सकता है अगरतला जाना पड़े, सिक्किम जाना पड़े, हो सकता मद्रास जाना पड़े और मैं नही जाना चाहता, अपने परिवार से दूर नही होना चाहता |”

तो ट्रान्सफर न हो इसके लिए वे सब घोटाले करने को तैयार है बस ट्रान्सफर नही होना चाहिए | रिश्वत देनी है रिश्वत भी देंगे, चापलूसी करनी है तो किसी की चापलूसी भी करेंगे, उसके घर मे जाके कुछ काम भी करना पड़ा तो कर के आएंगे हायर ऑफिसर का लेकिन ट्रान्सफर नही होना चाहिए |

तो राजीव भाई ने एकबार यह समझने की कौसिश किया के हर अधिकारी ट्रान्सफर से डरता है तो इसका इतिहास क्या है ? तो उनको पता चला के अंग्रेजो ने एक कानून बनाया 1860 मे जिसको हम कहते है Indian Civil Services Act . इसी करूँ के आधार पर डिस्ट्रिक्ट मजिष्ट्रेट या कमिश्नर जैसे लोगों की नियुक्ति होती है और उसके आधार पर परीक्षा होती है | तो वो कानून जब 1860 मे बना था तो उसके तिन साल पहले 1857 मे भारत मे ग़दर हो गया था विद्रोह हो गया था | अब हुअ क्या था 1857 के विद्रोह मे अंग्रेजो को सबसे जादा परिशानी उन हिन्दुस्तानियों से हुई थी जो अंग्रेजों की सरकार मे नौकरी करते थे | सबसे जादा परीशान उन्होंने हि किया था अंग्रेजों को |

आप एक नाम जानते है मंगल पण्डे, वो कौन था ? वो एक हिन्दुस्तानी था जो फौज मे नौकरी करता था | तो मंगल पण्डे कोई एकला नही था ऐसे सैकड़ो सैकड़ो लोग थे जिन्होंने अंग्रेजो को परीशान कर दिया था | मंगल पण्डे ने क्या किया था ? एक अपने से बड़े पुलिस ऑफिसर को गोली मार दी | और प्रश्न क्या था ? वो गाय की चर्बी के कार्तुज का मामला था, मंगल पण्डे को एकदिन पता चला के उसे कार्तुज मुह से खोलना पड़ेगा उसमे गाय की चर्बी है जो उनके धर्म के विरुद्ध है ज अंग्रेज अधिकारी मुझे इसके लिए मजबूर करेगा उसको में मार दूंगा, तो उन्होंने मार दिया एकदिन | जब उन्होंने मार दिया तो आग की तरह यह बात फ़ैल गयी, और जब अंग्रेजो ने मंगल पण्डे का कोर्ट मार्शल किया तो तत्काल पुरे देश मे एक लहर फ़ैल गयी और जहाँ भी अंग्रेजो की सरकार ने काम करने वाले सरकारी कर्मचारी जो हिन्दुस्तानी थे उन्होंने बगावत कर दिया | वो बगावत इतनी भयंकर थी की अंग्रेजों को उसे कण्ट्रोल करने के लिए आर्मी बुलानी पड़ी इंग्लैंड से, स्पेशल आर्मी आई | और उस आर्य ने किसी तरह से भयंकर नरसंहार करके लोगों को मारा पिटा, यातनाये दिया तब जाकर उन्होंने उसको कण्ट्रोल किया |

जैसे हि बगावत कण्ट्रोल हुआ तो ब्रिटिश पारलियामेंट पर चर्चा शुरू हुई इस बात पर के भविष्य मे ऐसी घटना और न हो उसके लिए कुछ करो | तो टीम भेजी गयी इंग्लैंड से, वो टीम हिन्दुस्तान मे आई उसने दौरा किया, दौरा करने के बाद उसने रिपोर्ट बनाई और उसमे उन्होंने कहा के हमे कुछ ऐसे नियम बनाने चाहिए के भारत का कोई भी व्यक्ति अंग्रेजो की सरकार मे जब नौकरी करे तो बगावत न करें हमारे खिलाफ | तो इसके लिए कमिटी बनाई गयी तो कमिटी ने कुछ Recommendations दिए | जैसे उन्होंने एक मे कहा के भारत मे कोई भी कर्मचारी जो भारतीय है और अंग्रेजो की नौकरी कर रहा है उसको किसी ऐसे स्थान पर पोस्टिंग नही करनी चाहिये जो उसका अपना स्थान हो | दूसरा नियम इसमें यह बनाया गया के जिस कर्मचारी को आप पोस्टिंग दे रहे वो लगातार एक हि स्थान पर जादा समय नही रहना चाहिए, नहीं तो वो उहाँ के लोगों से दोस्ती कर लेगा और अंग्रेजो के खिलाफ बगावत कर देगा | तो उन्होंने समय तैय कर लिया के देखो छय महिना ट्रान्सफर का आना जाना और सेटल होना, दो ढाई साल काम का तो उन्होंने तिन साल का पीरियड तैय किया के एक सरकारी कर्मचारी को तिन साल से जादा पोस्टिंग एक स्थान पर नही मिलनी चाहिए | फिर ऐसे ढेर सारे नियम उन्होंने बना दिए उसके आधार पर देश मे सर्विस रूल्स (Service Rules) बने और वोलागु हुए |

वोही सर्विस रूल्स (Service Rules) जो 1860 मे बने थे वो आज भी चल रहे है …. के आप तिन साल से जादा एक जगह मे नही रहेंगे और अपने गाँव मे आपको पोस्टिंग कभी भी नही मिलेगा | यह जो अधिकारी ट्रान्सफर लेके दूसरी जगा जाते है जिस जगा का उनको भाषा नही पता, भूगोल नही पता, इतिहास नही पता, संस्कृति नही पता वो कहते है के एक साल तो उनको समझने मे लगता है | फिर वो एक साल काम करते है और तीसरे साल तैयारी करते है की अब ट्रान्सफर होने वाला है | अब अंग्रेजो ने यह कानून बनाया के उनके खिलाफ कोई बगावत न हो जाये पर वोही कानून क्यों आज़ादी के 65 साल बाद भी चला रहे है ? अब हमें किस बगावत का डर है ? क्यों हर तिन साल मे ट्रान्सफर होना चाहिए और क्यों यह हमको पोस्टिंग उसि जगह नही मिलना चाहिए जो हमारा गाँव है ?

शरद पवार का सच जरूर जाने !

दोस्तो हमारे भारत मे ऐसे कई नेता हैं जो गाय का मांस बेच कर अपना धंधा चला रहे हैं ! और भारत मे जो 3600 क्त्लखाने (registered) चल रहे हैं उनमे से 50 से 60 % इन्ही राजनेताओ के हैं ! जिनकी पूंजी से ये काम चल रहा है !

और जब भी संसद मे गौ ह्त्या को रोकने का विषय आता तो ये चिला -चिला कर खड़े हो जाते है कहते हैं गौ ह्त्या रुकनी नहीं चाहिए ! और उसके विचित्र विचित्र कुतर्क करते हैं ! उनमे से एक नेता शरद पवार जो कृषि मंत्री है उसने एक दिन कुतर्क किया कि गाय की ह्त्या अगर हमने रोक दी तो गाय की संख्या इतनी बढ़ जाएगी उसे हमे रखेंगे कहाँ ????????

ये बयान शरद पवार ने दिया !और मुंबई मे दिया ! और प्रेस कान्फ्रेंस मे दिया ! सौभाग्य की बात थी श्री राजीव दीक्षित जी उस दिन मुंबई मे थे और उस press कान्फ्रेंस मे थे ! अगले दिन राजीव भाई वो बयान की copy लेकर चले गए शरद पवार से मिलने !!

राजीव भाई ने पवार से कहा कि आपने बयान दिया है कि अगर गाय को हमने बचा लिया तो इनकी संख्या इतनी बढ़ जाएगी इन्हे रखेंगे कहाँ ?

श्री राजीव भाई ने कहा आप क्यूँ परेशान है ? आपके घर मे रखने नहीं आ रहे हम ! इतना तो पक्का है
और अगर आपकी बुद्धि इतना की काम करती है कि गाय को बचाने से उसकी संख्या बढ़ जाएगी तो ये तर्क मनुष्य पर भी लागू होना चाहिए ! सीधे सीधे से लागू होता है कि मनुष्यो को क्यूँ बचाया जाये ??? इनकी संख्या बढ़ जाएगी ! तो इसका मतलब मनुष्य की संख्या कम करने के लिए कत्ल करवाईये इनका !!
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फिर पवार ने कहा चारा कहाँ से लाएँगे ????

तो राजीव भाई ने कहा भगवान ने इस देश मे व्यवस्था ऐसी की है आप क्यूँ परेशान हैं उसके लिए ???
भगवान की वयवस्था मे आप क्यूँ दखलअंदाजी कर रहे हैं ???

भगवान मे इस देश मे जितनी भी फसल दी है जितनी भी फसलों के बीज दिये हैं ! 1400 किसम की फसले भारत मे होती हैं (गेहूं ,चावल ,जवारी ,उरद ,मूंग आदि आदि ! हरेक फसल के तीन हिस्से है !हरेक पोधे के तीन हिस्से है ऊपर का एक हिस्सा है वो मनुष्यो के लिए है पक्षियो के लिए है !
बीच का एक हिस्सा है वो पशुओ के लिए हैं ! और अंत का जो जड़ वाला हिस्सा है वो धरती माता के लिए है !

प्रकर्ति की बनाई हुई व्यवस्था है इसमे आप क्यूँ परेशान है ????
हिंदुस्तान मे 77 कोटी किसान खेती करते हैं और इनमे से लगभग 60 कोटी किसान ज्वारी पैदा करते हैं ! ज्वारी का बहुत थोड़ा सा हिस्सा मनुष्य के काम आता है ! ज्वारी का पूरा पेड़ आप गिने तो मुश्किल से उसका 10 % हिस्सा मनुष्य के काम आता है ! और बाकी नीचे का 80 से 90 % हिस्सा वो गाय के काम है बैल के काम का है ! भैंस के काम है पशु के काम का है !

तो चारे की कमी कहाँ से आई ????????????

गेहूं की फसल को देख लो ! गेहूं की फसल का 10 % हिस्सा मनुष्य के काम का है बाकी 70 से 85 % गाय के काम है अन्य पशुओ के काम है !
तो चारे की समस्या कहाँ से आई ??????????

गेहूं पैदा हो रहा है ज्वारी पैदा हो रही है ! चावल की फसल का बहुत छोटा सा हिस्सा मनुष्य के काम का है बाकी पशुओ के काम का है
तो चारे की कहाँ कमी है इस देश मे ???
आप क्यू परेशान हैं ????
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फिर पवार का तीसरा कुतर्क !
गाय बूढ़ी हो जाती है तो क्यूँ पालणा ?????

तो राजीव भाई ने कहा हमारी माता भी बूढ़ी हो जाती है उसको क्यूँ पालणा ?????

पवार ने कहा ! माता अलग है गाय अलग है !

राजीव भाई ने कहा मेरे लिए माता और गाय दोनों एक जैसी है ! क्यूंकि बचपन से हमने यही सुना है गाय हमारी माता है ! देश धर्म का नाता है !! तो मेरे लिए माता और गाय दोनों एक सी है !

तो गाय बूढ़ी हो गई इसलिए कत्ल होनी चाहिए तो माता भी बूढ़ी हो गई इस लिए कत्ल होनी चाहिए !
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फिर पवार का आखिरी कुतर्क !!
कि दूध नही देती है तो फोकट मे क्यूँ खिलाने का उसको ???????

तो राजीव भाई ने कहा दूध तो थोड़े दिन के बाद हमारी माता भी नहीं देती है ! हमारी माता तो हमे ज्यादा से ज्यादा 1 साल दूध पिलाती है और ये गौ माता तो जीवन पर्यंत हमको दूध पिलाती है ! इसका स्थान माता से भी ऊंचा है !
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फिर पवार का पूरा दिमाग घूम गया और बोला आपसे बात करना बेकार है !
तो राजीव भाई ने कहा मुझे भी आपसे बात करना बेकार है !
जिस आदमी को इतना नहीं समझता कि गाय को भारत मे घास चारे की कमी नहीं है और बूढ़ी होने पर काट देनी चाहिए ये तो बहुत खतरनाक मानसिकता है ! इससे अच्छे तो अंग्रेज़ थे जो खुलकर कहते थे कि हम तो गाय को काटते है अपने भोजन के लिए !!

लेकिन ये काले अंग्रेज़ तो उनसे भी ज्यादा खतरनाक है जो भारतीयता का लबादा ओढ़े हुये हैं और दिमाग मे पूरी अंग्रेज़ियत भारी हुई है !!

और अंत राजीव भाई के कहते है कि ये जो कुतर्क है ये शरद पवार का नाम मैंने इसलिए ले लिया क्यूकि वह के प्रतीक व्यक्ति है वरना ये कुतर्क हिंदुस्तान के बहुत सारे पढे लिखे व्यक्तियों के कुतर्क बन चुके हैं !खासकर ऐसे पढे लिखे लोग जिनको कुछ अंग्रेज़ियत की शिक्षा मिली है जो कान्वेंट आदि मे पढे है इंजीनियर डाक्टर आदि बन चुके है उनके भी ये कुतर्क बन चुके हैं ! शरद पवार तो प्रतीक मात्र है वहाँ कोई और भी हो सकता है जो इसी तरह की बात करे !

मित्रो आपने पूरी post पढ़ी बहुत बहत धान्यावाद !

एक बार यहाँ जरूर click करे

https://www.youtube.com/watch?v=9qXURGOKJOE

जय गौमता ! वन्देमातरम !

सोमरस और शराब में बहुत बड़ा अंतर है –

अधिक जानकारी के लिए निचे दिए गए लिंक पे click करे:
http://www.youtube.com/watch?v=cV2s70aF6c4

सबसे जादा चाय कोफ़ी से भी पहले बियर, वाइन , हुइस्कि ..शराब एक ऐसा आहार है जो आपके शारीर को जरुरत से जादा गरम कर देता है । और शारीर में जरुरत से जादा गर्मी आने के कारन ही मनुष्य वो सब करता जो सामान्य स्थिति में उससे वो करने की अपेक्षा नही की जा सकती । तो आपकी शारीर को बहुत जादा गरम करे ऐसी शराब अगर है तो ये प्रकृति के अनुकूल नही है, और जो आपके प्रकृति के अनुकूल नही है वो आपकी संस्कृति के भी अनुकूल नही है । क्योंकि आपके प्रकृति के संस्कार ही संस्कृति को निर्धारित करेंगे न, तो आपके संस्कृति के अनुकूल नही है तो शराब न पिये । राजीव भाई ने कुछ परिक्षण किये – जब भी एक साधारण स्वस्थ व्यक्ति को कोई भी शराब पिलाई जाये तो तुरंत उसका Blood Pressure बढना सुरु हो जाता है । अगर इसको आयुर्वेद की भाषा में कहा जाये तो तुरन्त उसका पित्त बढना सुरु हो जाती है , पित्त माने आग लगना सुरु होती है शारीर में । अब हमारा शारीर तो समशीतोष्ण है , जब आग लगेगी शारीर में तो शारीर की साडी प्रतिरक्षा प्रणाली इस आग को शांत करने में लगेगी, और परिरक्ष प्रणाली को काम करने के लिए रक्त इंधन के रूप में चाहिये ; तो आप का रक्त शरीरी का सरे अंगो से भाग कर उहाँ आयेगा जहां आपकी आग को शांत करने का काम चलेगा , माने पेट की तरफ सारा रक्त आ जायेगा । इसका माने रक्त जहां जाना चाहिए उहाँ नही होगा, ब्रेन को चाहिए उहाँ नही है, हार्ट को चाहिए उहाँ नही है, किडनी को चाहिए उहाँ नही है, लीवर को चाहिए उहाँ नही है .. वो सब आ गया पेट में , और ये रहेगा दो से पांच घंटे तक मने दो से पांच घंटे तक आपके शारीर के बाकि ओर्गन्स रक्त की कमी से तड़पेंगे और उनमे खराबी आना सुरु हो जायेंगे । इसलिए शराब पिने वालो के अन्दर के सारे अंग ख़राब होते है और उनको मृत्यु की डर सबसे जादा होते है । इसलिए भारत की प्रकृति और संस्कृति में शराब का स्थान नही है ।

लोग कहते है के, लेकिन सोमरस तो था !! सोमरस और शराब में बहुत बड़ा अंतर है – सोमरस और शराब में अंतर उतना ही है जितना डालडा और गाय के घी में है । सोमरस जो है आयुर्वेद का एक औषधीय रूप है जो आपके शारीर के शांत पित्त को बढाने का काम करता है, माने भूख जादा ठीक से लगे इसके लिये सोमरस पिया जाता है भारत में । शराब और सोमरस में जमीन असमान का अंतर है – शराब क्या करती है जो पित्त आपके शारीर में शांत है उसको भड़का देती है, एक सुलगना होता है एक भड़कना होता है । आग कहीं धीरे धीरे सुलग रहा है तो खतरे की सम्भावना बहुत कम हैं और आग भड़क के लग गयी है तो अस पड़ोसके बिल्डिंग ऐ जल जाएगी । तो शराब जो है वो पित्त को भड़काती है और सोमरस पित्त को सुलगाती है । तो सुलगा हुआ पित्त ये तो हमे चाहिये पर भड़का हुआ नही चाहिये , मने सरब नही चाहिये .. अगर चाहिये तो सोमरस चाहिये । अगर कोई सोमरस पिता है तो उसे जिन्दगी में कभी भी पित्त का रोग नही होगा । सोमरस बहुत ही संतुलित है जैसे नीबू की सरवत और शराब नीबू का रस ।
भारतीय संस्कृति का हिस्सा नही है शराब । और इतनी शराब जो लोग पिने लगे है वो यूरोप की नक़ल से आये, दुर्भाग्य से 450 साल तक हम भारतवासी यूरोपियन की सांगत में फंस गये या तो उनके गुलाम हो गये, तो उनकी नक़ल कर कर के हमने ये सुरु कर दिया ।