ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि ‘भारत’ एक रहस्यमय देश है।

जयतु भारतवर्ष ,, जयतु सनातन संस्कृति _ /\_

ऋषि-मुनियों और अवतारों की भूमि ‘भारत’ एक रहस्यमय देश है। यदि धर्म कहीं है तो सिर्फ यहीं है। यदि संत कहीं हैं तो सिर्फ यहीं हैं। माना कि आजकल धर्म, अधर्म की राह पर चल पड़ा है। माना कि अब नकली संतों की भरमार है फिर भी यहां की भूमि ही धर्म और संत है।
भारत में ऐसे बहुत सारे रहस्यमय स्थान हैं, जहां जाकर आपको अजीब ही महसूस होगा। इन स्थानों पर अभी और भी शोध किए जाने की आवश्यकता है।

हिमालय : हिमालय की वादियों में रहने वालों को कभी दमा, टीबी, गठिया, संधिवात, कुष्ठ, चर्मरोग, आमवात, अस्थिरोग और नेत्र रोग जैसी बीमारी नहीं होती। हिमालय क्षेत्र के राज्य जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, हिमाचल, उत्तराखंड, असम, अरुणाचल आदि क्षेत्रों के लोगों का स्वास्थ्य अन्य प्रांतों के लोगों की अपेक्षा बेहतर होता है। इसे ध्यान और योग के माध्यम से और बेहतर करके यहां की औसत आयु सीमा बढ़ाई जा सकती है। तिब्बत के लोग निरोगी रहकर कम से कम 100 वर्ष तो जीवित रहते ही हैं।

देव आत्मस्थान : उत्तराखंड में एक ऐसा रहस्यमय स्थान है जिसे देवस्थान कहते हैं। मुण्डकोपनिषद के अनुसार सूक्ष्म-शरीरधारी आत्माओं का एक संघ है। देवताओं, यक्षों, गंधर्वों, सिद्ध पुरुषों का निवास इसी क्षेत्र में पाया जाता रहा है।

देवस्थान : प्राचीनकाल में हिमालय में ही देवता रहते थे। यहीं पर ब्रह्मा, विष्णु और शिव का स्थान था और यहीं पर नंदन कानन वन में इंद्र का राज्य था। इंद्र के राज्य के पास ही गंधर्वों और यक्षों का भी राज्य था। स्वर्ग की स्थिति दो जगह बताई गई है- पहली हिमालय में और दूसरी कैलाश पर्वत के कई योजन ऊपर। यहीं पर मानसरोवर है और इसी हिमालय में अमरनाथ की गुफाएं हैं।

रहस्यमय बातें : हिमालय में ही यति जैसे कई रहस्यमय प्राणी रहते हैं। इसके अलावा यहां चमत्कारिक और दुर्लभ जड़ी-बूटियां भी मिलती हैं। भारत और चीन की सेना ने हिमालय क्षेत्र में ही एलियन और यूएफओ को देखने का दावा किया है। हिमालय में ही एक रूपकुंड झील है। इसके तट पर मानव कंकाल पाए गए हैं। पिछले कई वर्षों से भारतीय और यूरोपीय वैज्ञानिकों के विभिन्न समूहों ने इस रहस्य को सुलझाने के कई प्रयास किए, पर नाकाम रहे।

बर्फीले पहाड़ो में रहने वाला महामानव यानि येती वो जीव है जिसके बारे में ढेरों किवदंतियां हैं। येती यानि हिममानव का अस्तित्त्व हमेशा ही सवालों के घेरे में रहता है। वैज्ञानिक शोध में पता चला है कि हिमालय के मिथकीय हिम मानव ‘येति’ भूरे भालुओं की ही एक उप-प्रजाति के हो सकते हैं. इसकी संभावना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में भूरे भालुओं की उप-प्रजातियां हो सकती हैं.

चीनी मीडिया ने हाल ही में एक ऐसा वीडियो जारी किया है जिसमें येती की मौजूदगी साफ-साफ नजर आती है। चीन में अब तक महामानव की मौजूदगी की 400 रिपोर्ट मिल चुकी हैं। चीनी मीडिया में इस विशालकाय मानव के वीडियो ने सनसनी मचा दी थी।

वह एक रहस्य है फिर भी युगों से लोगों के मन मस्तिष्क पर छाया हुआ है। कही वन देवता पर्वतों की देवात्मा के रूप में पूज्य, कही अपने पगचिन्हों से पर्वतारोहियों और खोजी व्यक्तियों के रोमाँच का विषय और कही मानव विकास की लुप्त कड़ियों को खोजते वैज्ञानिकों का रोचक विषय यही है हिमाच्छादित -पर्वत श्रृंखलाओं में अपने रहस्यमय अस्तित्व के साथ विचरण करने वाला हिममानव येती। लद्दाख से तिब्बत -नेपाल होते हुए सिक्किम -अरुणाचल प्रदेश तक लाखों वर्ग कि .मी . में फैली हिमालय की ऊँची बर्फीली चोटियों से ढकी घाटियों में रहने वाले लोग हिममानव को सदियों से जानते है। अलग अलग क्षेत्रों में इसे येती मिटे शुफ्पा, मीगो और कगामी आदि नामों से जाना जाता है।

येती को देखने का सर्वप्रथम विवरण सन १ में मिलता है, जब एक नेपाली व्यापारी ने नेपाल तिब्बत मार्ग पर एक पशु मानव देखने का दावा किया था। वह लगभग दस फुट ऊंचा था और उसका शरीर लाल रंग के बालों से ढका हुआ था। सन १८६७ में रोगर पेटर्सन इसकी फिल्म लेने में सफल हो गया। यह सब एकाएक हो गया फिल्म दूर से लिए जाने व प्रकाश का सामंजस्य न हो पाने के कारण अत्यंत धुँधली आयी। किन्तु इससे येती की अस्तित्व को बहुत बल मिला।

हिमालय के हिममानव येती संबंधी सर्वप्रथम प्रामाणिक दावा १९२१ में एवरेस्ट आरोहण दल के अध्यक्ष सी. के. पारी ने किया। उन्होंने देखा की नीचे बर्फीली ढलान पर एक बड़े बालों वाला विशालकाय प्राणी चला आ रहा है। जिसकी आकृति मनुष्य से मिलती है।

एक बार जब कुछ पर्वतारोही ऊपर जा रहे थे और रात हो गयी तो पर्वतारोहियों ने अपने-अपने तम्बू लगा दिए। रात के समय दल के एक सदस्य ने एक विशालकाय दोपाए जीव को तम्बू के इधर उधर घूमते देखा। सूचित किये जाने पर उसके अन्य साथियों ने भी इसे दिखा। निरीक्षण करने पर पाया गया कि यह जीव कहानियों में वर्णित येती से मिलता -जुलता था। वे उन्हें देखकर भाग खड़े हुए। इनके पगचिह्न ३१ सेंटीमीटर लम्बे और ० सेंटीमीटर चौड़े थे। बी. बी. सी. ने इनके फोटो टेलीविजन पर भी दिखाए थे।

एवरेस्ट पर सर्वप्रथम विजय पताका फहराने वाले शेरपा–तेनजिंग के साथी सर एडमंड–हिलेरी ने भी अपने स्मरणों में हिममानव की चर्चा की है।

 

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