भारत के बारे में 10 ऐसे फैक्ट जिन्हें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जायेगा ..

भारत के बारे में 10 ऐसे फैक्ट जिन्हें पढ़कर आपका सीना गर्व से चौड़ा हो जायेगा ..
1. जब साइंस नाम भी नहीं था तब भारत में नवग्रहों की पूजा होती थी ..
2. जब पश्चिम के लोग कपडे पहनना नहीं जानते थे. तब भारत रेशम के कपडों का व्यापार करता था ..
3. जब कहीं भ्रमण करने का कोई साधन स्कूटर मोटर साईकल, जहाज वगैरह नहीं थे. तब भारत के पास बडे बडे वायु विमान हुआ करते थे। (इसका उदाहरण आज भी
अफगानिस्तान में निकला महाभारत कालीन विमान है. जिसके पास जाते ही वहाँ के सैनिक गायब हो जाते हैं। जिसे देखकर आज का विज्ञान भी हैरान है)
4. जब डाक्टर्स नहीं थे. तब सहज में स्वस्थ होने की बहुत सी औषधियों का ज्ञाता था, भारत देश सौर ऊर्जा की शक्ति का ज्ञाता था भारत देश। चरक और धनवंतरी जैसे महान आयुर्वेद के आचार्य थे भारत देश
में ..
5. जब लोगों के पास हथियार के नाम पर लकडी के टुकडे हुआ करते थे. उस समय भारत देश ने आग्नेयास्त्र, प्राक्षेपास्त्र, वायव्यअस्त्र बडे बडे परमाणु हथियारों का ज्ञाता था भारत……
6. हमारे इतिहास पर रिसर्च करके ही अल्बर्ट आईंसटाईन ने अणु परमाणु पर खोज की है…
7. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके नासा अंतरिक्ष में ग्रहों की खोज कर रहा है……
8. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके रशिया और अमेरीका बडे बडे हथियार बना रहा है..
9. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके रूस, ब्रिटेन, अमेरीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया बडे बडे देश बचपन से ही बच्चों को संस्कृत सिखा रहे हैं स्कूलों मे…..
10. आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके वहाँ के डाक्टर्स बिना इंजेक्शन, बिना अंग्रेजी दवाईयों के
केवल ओमकार का जप करने से लोगों के हार्ट अटैक, बीपी, पेट, सिर, गले छाती की बडी बडी बिमारियाँ ठीक कर रहे हैं। ओमकार थैरपी का नाम देकर इस नाम से बडे बडे हॉस्पिटल खोल रहे हैं……
और हम किस दुनिया में जी रहे हैं??
अपने इतिहास पर गौरव करने की बजाय हम अपने इतिहास को भूलते जा रहे हैं। हम अपनी महिमा को भूलते जा रहे हैं। हम अपने संस्कारों को भूलते जा रहे हैं ।
अब भी समय है अगर आप अपना अस्तित्व चाहते है तो अपनी मिटती हुई संस्कृति को बचाने का बीड़ा
उठाइए…

सुहागनें क्यों पहनती हैं बिछिया, जानें चौंकाने वाले तथ्य-

भारतीय हिन्दु संस्कृति में छोटी सी छोटी चीजों में भी विज्ञान है स्त्रियों को भी शायद बिछिया जैसी छोटी सी चीज के विज्ञान के बारे में नहीं पता होगा………
पांवो में अंतिम आभूषण के रूप में बिछिया पहनी जाती है। दोनों पांवों की बीच की तीन उंगलियो में बिछिया पहनने का रिवाज है। वास्तव में सारे श्रृंगार बिछिया और टीका के बीच होते हैं। सोने का टीका और चांदी की बिछिया का भाव ये होता है कि आत्म कारक सूर्य और मन कारण चंद्रमा दोनों की कृपा जीवनभर बनी रहे।
ज्यादातर विवाहित भारतीय महिलायें बिछिया पहनती हैं। यह केवल इस बात का प्रतीक नहीं है कि वे विवाहित हैं बल्कि इसके पीछे विज्ञान छिपा है। भारतीय वेदों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि इन्हें दोनों पैरों में पहनने से महिलाओं का मासिक चक्र नियमित होता है।
बिछिया एक्यूप्रेशर का भी काम करती है। जिससे तलवे से लेकर नाभि तक की सभी नाड़िया और पेशियां व्यवस्थित होती हैं। भारत में शहरी क्षेत्र में इसका चलन बहुत कम हो गया है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में आज भी इसकी महत्ता बरकरार है।
ऐसा कहा जाता है कि पैर की दूसरी अंगुली की तन्त्रिका का सम्बन्ध गर्भाशय से होता है और यह हृदय से होकर गुजरती है।
अगर आप ध्यान दें तो पायेंगें कि बिछिया हमेशा दाहिने तथा बायें पैर की दूसरी अंगुली में ही पहनी जाती है। यह गर्भाशय को नियन्त्रित करेगी और गर्भाशय में सन्तुलित ब्लड प्रेशर द्वारा उसे स्वस्थ रखेगी।
चूँकि चाँदी एक अच्छी सुचालक है अतः यह पृथ्वी की ध्रुवीय ऊर्जा को ठीक करके शरीर तक पहुँचाती है जिससे पूरा शरीर तरो-ताजा हो जाता है।
भारतीय महाकाव्य रामायण में बिछिया की महत्वपूर्ण भूमिका है। जब रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था तो उन्होंने अपनी बिछिया (कनियाझी) को भगवान राम की पहचान के लिये फेंक दिया था। यह दर्शाता है कि बिछिया का उपयोग प्राचीन काल से ही होता रहा है।
क्या आप मां बनना चाहती हैं? यदि हां तो जानें महिलाओं में फर्टिलिटी बढ़ाने का ये आसान उपाय. दरअसल पैरों में बिछिया महिलाओं की प्रजनन क्षमता बढ़ाने में बहुत अहम भूमिका निभाती है.
आयुर्वेद में बिछिया के इस महत्व को समझा गया है और यही वजह है कि हमारी संस्कृति में विवाहित महिलाओं के लिए इसे पहनने का विधान है. आयुर्वेद में इसे मर्म चिकित्सा के अंतर्गत बताया गया है.
इस बारे में आयुर्वेदिक डॉक्टर बताते हैं, ”आयुर्वेद की मर्म चिकित्सा में महिलाओं में फर्टिलिटी बढ़ाने के लिए बिछिया के महत्व को माना गया है. साइटिक नर्व की एक नस को बिछिया दबाती है जिस वजह से आस-पास की दूसरी नसों में रक्त का प्रवाह तेज होता है और यूटेरस, ब्लैडर व आंतों तक रक्त का प्रवाह ठीक होता है.”
दोनों पैरों की दूसरी और तीसरी उंगली में बिछिया पहनने से सिएटिक नस का दबाव बढ़ता है और इस वजह से आसपास की नसें जो यूटेरस व प्रजनन तंत्र से जुड़ी हैं, इनमें रक्त प्रवाह ठीक रहता है और यूटेरस का संतुलन बना रहता है। यही वजह है कि आयुर्वेद व चीनी एक्यूप्रेशर चिकित्सा में बिछिया को महिलाओं की फर्टिलिटी बढ़ाने में महत्वपूर्ण माना गया है।

સ્ત્રીઓના સ્વભાવ, લક્ષણો, દોષો અને વ્યવહાર વિશે, કંઈક આવું કહે છે ચાણક્ય

ચાણક્યને આપણે અર્થશાસ્ત્રના વિદ્વાન કે પછી નીતિની વાતો કરનાર માનીએ છીએ પણ એ વાત પણ એટલી જ સાચી છે કે તે ઘર-પરિવારના મેનેજમેન્ટ માટે પણ એટલા જ સારા સૂત્રો આપે છે. પણ ખરી રીતે જોઈએ તો તેને પુરુષ, સ્ત્રી, મિત્ર, ધન, લક્ષ્મી આ બધા બાબતે ચર્ચા કરી છે જે આપણા રોજિંદા જીવનમાં ઉપયોગી નિવડે છે.

ચાણક્યએ સ્ત્રીમાં પણ માત્ર સ્ત્રી વિશે નહીં પણ સ્ત્રીના અલગ અલગ રૂપો વિશે પણ વાત કરી છે જેમ કે સ્ત્રી એક પત્ની તરીકે, કન્યા તરીકે, વેશ્યા તરીકે વગેરે પણ કેટલાક વિચારો જનરલ તમામ સ્ત્રીઓને લાગુ પડે તેવા છે. આ વિધાનો તેમણે તે સમયે રચ્યા છે. સ્ત્રીઓના સ્વભાવ, લક્ષણ, વ્યવહાર વિશેનું તેનું આબાદ ચિત્રણ આજે પણ એટલું જ સાચું લાગી શકે. આસપાસના સમાજમાં આપણે આવું બધું જોતા આવ્યા છે. ચાણક્યની નીતિ તેથી જ રસપ્રદ રહી છે કે તે માત્ર નીતિ નથી પણ તેને જે સમાજ જોયો અને તેમાંથી તેને જે પ્રાપ્ત થયું તેનું તેને બે વાક્યોમાં ચિત્રણ કર્યું છે. તેને અપનાવું ન અપનાવું, સમજવું, કેમ અને શા માટે સમજવું તે તેણે આપણા પર છોડી દીધું છે.

હતં જ્ઞાનં ક્રિયાહીનં હતશ્ચાડજ્ઞાનતો નરઃ।
હતં નિનાર્યકં સૈન્યં સ્ત્રીયો નષ્ટા હ્યભર્તૃકાઃ।।8।।

– જે જ્ઞાનનો અમલ ન થાય તે નાશ થઈ જાય છે. અજ્ઞાનથી મનુષ્યનો નાશ થાય છે. સેનાપતિ વિનાની સેના અને પતિ વિનાની સ્ત્રીનો નાશ થાય છે.

તો ચાલો આજે ચાણક્યએ કરેલા સ્ત્રી વીશેના કેટલાક વિધાનોની જાણીએ…

નખીનાં ચ નદીનાં ચ શ્રૃઙ્ગીણાં શસ્ત્રપાણિનામ્।
વિશ્વસો નૈવ કર્તવ્યઃ સ્ત્રીષુ રાજકુલેષુ ચ।। 1-15।।

– લાંબા નખ વાળા પ્રાણીઓ, નદી, મોટા શિંગડાં વાળા પશુઓ, શસ્ત્રધારી વ્યક્તિ, સ્ત્રીઓ અને રાજપરિવાર આ છ પર ક્યારેય આંધળો વિશ્વાસ મુકવો નહીં.

અનૃતં સાહસં માયા મૂર્ખત્વમતિલુબ્ધતા।
અશૌર્યચત્વં નિર્દયત્વં સ્ત્રીણાં દોષાઃ સ્વભાવજાઃ।।2-1।।

– ખોટું બોલવું, વિચાર્યા વગર કોઈ કાર્ય કરવું, દુઃસાહસ કરવું, છળકપટ કરવું, મૂર્ખતા, વધુપડતો મોહ, ગંદકી અને નિર્દયતા – આ સ્ત્રીઓના સ્વાભાવિક દોષ છે.

સમાને શોભતે પ્રીતિઃ રાજ્ઞિ સેવા ચ શોભતે।
વાણિજ્યં વ્યવહારેષુ દિવ્યા સ્ત્રી શોભતે ગૃહે।।2-20।।

– પ્રિતિ સરખા માણસો વચ્ચે શોભે, સેવા રાજાને શોભે, વ્યવહારમાં રહીને વેપાર તથા સ્ત્રી ઘરમાં સારી લાગે.

ભસ્મના શુધ્યતે કાંસ્યં તામ્રમ્લેન શુધ્યતિ।
રજસા શુધ્યતે નારી નદી વેગેન શુધ્યતિ।।6-3।।

– કાંસાંના વાસણ રાખથી સ્વચ્છ થાય છે, તાંબાના વાસણ ખટાશથી સાફ થાય છે. સ્ત્રી રજસ્વલા થયા પછી શુદ્ધ ગણાય છે અને નદી પોતાના વેગથી શુદ્ધ થાય છે.

ભ્રમન્ સમ્પૂજ્યતે રાજા ભ્રમન્ સમ્પૂજ્યચે દ્વિજઃ।
ભ્રમન્ સમ્પૂજ્યતે યોગી સ્ત્રી ભ્રમન્તી વિનશ્યતિ।।4-6।।

– પ્રજા વચ્ચે ભ્રમણ કરતો રાજા પૂજાય છે, બ્રાહ્મણ અને યોગી પણ પૂજાય છે. પરંતુ ઠેરઠેર ફરતી સ્ત્રીનો નાશ જ થાય છે.

બાહુવીર્યં બલં રાજ્ઞો બ્રહ્મવિદ્ બલી।
રૂપયૌવનમાધુર્ય સ્ત્રીણાં બલમુત્તમ્।।7-11।।

– રાજાનું બળ તેની સેનામાં, બ્રાહ્મળનું બળ તેના જ્ઞાનમાં હોય છે. જ્યારે સ્ત્રીનું બળ તેના રૂપ, યૌવન અને મધુર વ્યવહારમાં છે.

અધ્વા જરા મનુષ્યાણાં વાજિનાં બન્ધનં જરા।
અમૈથુનં જરા સ્ત્રીણાં વસ્ત્રાણામાતપો જરા।।4-17।।

– રઝળપાટથી મનુષ્ય અને બંધાઈ રહેવાથી ઘોડો ઝડપથી વૃદ્ધ થઈ જાય છે. સંભોગ ન કરવાતી સ્ત્રીઓમાં પણ વહેલી વૃદ્ધાવસ્થા આવી જાય છે, તડકામાં સૂકાવાથી વસ્ત્ર પણ જીર્ણ થઈ જાય છે.

આલસ્યોપહતા વિદ્યા પરહસ્તાગતાઃ સ્ત્રીયઃ।
અલ્પબીજં હતં ક્ષેત્રં હતં સૈન્યમનાયકમ્।।5-7।।

– આળસથી વિદ્યા અને પરપુરુષના હાથમાં આવેલી સ્ત્રીનો નાશ થઈ જાય છે. ઓછા બીજ વાવવાથી ખેતરનો નાશ થાય છે અને સેનાપતિ હણાવથી સેનાનો વિનાશ થાય છે.

વિત્તેન રક્ષ્યે ધર્મો વિદ્યા યોગેન રક્ષ્યતે।
મૃદુના રક્ષ્યતે ભૂપઃ સસ્ત્રિયા રક્ષ્યતે ગૃહમ્।।5-9।।

– ધનથી ધર્મનું, યોગથી વિદ્યાનું, ધરતીથી રાજાનું અને ગુણીયલ સ્ત્રીઓથી ઘરનું રક્ષણ થાય છે.

 

ऐसा मंदिर जहां खिंचे चले आते थे जहाज

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उड़ीसा राज्य के पुरी जिले में कोणार्क नामक कस्बे में स्थित है ‘कोणार्क का सूर्य मंदिर’। मंदिर को अंग्रेज़ी भाषा में ‘ब्लैक पैगोडा’ भी कहते हैं। ‘सूर्यमन्दिर’ भारत का इकलौता ऐसा सूर्य मन्दिर है जो पूरी दुनिया में अपनी भव्यता और बनावट के लिए जाना जाता है। यह मंदिर तो है लेकिन यहां कभी पूजा नहीं हुई।
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यहां है रहस्यमययी चुम्बक
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सूर्य मंदिर का एक और प्रमुख आकर्षण है यहां मौजूद चुम्बक। यह चुंबक कई रहस्य और किंवदंतियों की जन्मदाता है। कई पौराणिक कथाओं के अनुसार सूर्य मंदिर के शिखर पर एक चुम्बक पत्थर लगा था। इसके प्रभाव से, कोणार्क के समुद्र से गुजरने वाले जहाज, इस ओर खिंचे चले आते थे, जिससे उन्हें भारी क्षति हो जाती थी। लेकिन मंदिर को कोई नुकसान नहीं पहुंचता।
इस पत्थर के कारण जहाज के चुम्बकीय दिशा यंत्र सही दिशा नहीं बताते थे। इस कारण अपने जहाजों को बचाने के लिए, नाविक इस पत्थर को निकाल ले गए। यह पत्थर एक केन्द्रीय शिला का कार्य कर रहा था, जिससे मंदिर की दीवारों के सभी पत्थर संतुलन में थे।
इतिहास में अमिट है मंदिर
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इस मंदिर को लाल बलुआ पत्थर एवं काले ग्रेनाइट पत्थर से 1236-1264 में गंग वंश के राजा नृसिंहदेव द्वारा बनवाया गया था। यह मंदिर, भारत के सबसे प्रसिद्ध स्थलों में से एक है। इसे युनेस्को द्वारा सन 1984 में विश्व धरोहर स्थल घोषित किया गया है।
कलिंग शैली में निर्मित यह मंदिर सूर्य देव (अर्क) के रथ के रूप में निर्मित है। इस को पत्थर पर उत्कृष्ट नक्काशी करके बहुत ही सुंदर बनाया गया है। संपूर्ण मंदिर स्थल को एक बारह जोड़ी चक्रों वाले, सात घोड़ों से खींचे जाते सूर्य देव के रथ के रूप में बनाया है। मंदिर अपनी कामुक मुद्राओं वाली शिल्पाकृतियों के लिए भी प्रसिद्ध है।
कोर्णाक का यह है अर्थ
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कोणार्क दो शब्दों यानी, ‘कोण’ और ‘अर्क’ के मेल से बना है। ‘अर्क’ का अर्थ होता है सूर्य जबकि ‘कोण’ का अर्थ है कोने या किनारे से रहा होगा। कोणार्क का सूर्य मंदिर पुरी के उत्तर पूर्वी किनारे पर समुद्र तट के करीब निर्मित है।
कुछ इतिहासकारों का मानना है कि, ‘कोणार्क मंदिर के निर्माणकर्ता, राजा लांगूल नृसिंहदेव की अकाल मृत्यु के कारण, मंदिर का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका। इसके बाद, अधूरा ढांचा ध्वस्त हो गया। लेकिन इस मत को ऐतिहासिक आंकड़ों का समर्थन नहीं मिलता है। यहां मौजूद 1278 ई. के ताम्रपत्रों से पता चला, कि राजा लांगूल नृसिंहदेव ने 1282 तक शासन किया।
‘आईने अकबरी’ में, है उल्लेख
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वहीं कुछ लोग यह भी मानते हैं कि यह मन्दिर कभी पूर्ण नहीं हुआ, जबकि आईने अकबरी में अबुल फ़ज़ल ने इस मंदिर का भ्रमण कर इसकी कीर्ति का वर्णन किया है। कुछ विद्वानों का मत है कि काफ़ी समय तक यह मन्दिर अपने मूल स्वरूप में ही था।
ब्रिटिश पुराविद फ़र्ग्युसन ने जब 1837 में इसका भ्रमण किया, तो उस समय मुख्य मन्दिर का एक कोना बचा हुआ था, जिसकी ऊंचाई उस समय 45 मीटर बताई गई। कुछ विद्वान मुख्य मन्दिर के खण्डित होने का कारण प्रकृति की मार यथा भूकम्प व समुद्री तूफान आदि को मानते हैं।

!! कालगणना : आदि से अंत तक जानने की अनूठी भारतीय विधि !!

युगमान-

4,32,000 वर्ष में सातों ग्रह अपने भोग और शर को छोड़कर एक जगह आते हैं। इस युति के काल को कलियुग कहा गया। दो युति को द्वापर, तीन युति को त्रेता तथा चार युति को सतयुग कहा गया। चतुर्युगी में सातों ग्रह भोग एवं शर सहित एक ही दिशा में आते हैं। वर्तमान कलियुग का आरंभ भारतीय गणना से ईसा से 3102 वर्ष पूर्व 20 फरवरी को 2 बजकर 27 मिनट तथा 30 सेकेंड पर हुआ था। उस समय सभी ग्रह एक ही राशि में थे।

इस संदर्भ में यूरोप के प्रसिद्ध खगोलवेत्ता बेली का कथन दृष्टव्य है-

“हिन्दुओं की खगोलीय गणना के अनुसार विश्व का वर्तमान समय यानी कलियुग का आरम्भ ईसा के जन्म से 3102 वर्ष पूर्व 20 फरवरी को 2 बजकर 27 मिनट तथा 30 सेकेंड पर हुआ था। इस प्रकार यह कालगणना मिनट तथा सेकेण्ड तक की गई। आगे वे यानी हिन्दू कहते हैं, कलियुग के समय सभी ग्रह एक ही राशि में थे तथा उनके पञ्चांग या टेबल भी यही बताते हैं। ब्राहृणों द्वारा की गई गणना हमारे खगोलीय टेबल द्वारा पूर्णत: प्रमाणित होती है। इसका कारण और कोई नहीं, अपितु ग्रहों के प्रत्यक्ष निरीक्षण के कारण यह समान परिणाम निकला है।”

वैदिक ऋषियों के अनुसार वर्तमान सृष्टि पंच मण्डल क्रम वाली है।
चन्द्र मंडल,
पृथ्वी मंडल,
सूर्य मंडल,
परमेष्ठी मंडल और
स्वायम्भू मंडल।
ये उत्तरोत्तर मण्डल का चक्कर लगा रहे हैं।

मन्वन्तर मान-

सूर्य मण्डल के परमेष्ठी मंडल (आकाश गंगा) के केन्द्र का चक्र पूरा होने पर उसे मन्वन्तर काल कहा गया। इसका माप है 30,67,20,000 (तीस करोड़ सड़सठ लाख बीस हजार वर्ष। एक से दूसरे मन्वन्तर के बीच 1 संध्यांश सतयुग के बराबर होता है। अत: संध्यांश सहित मन्वन्तर का माप हुआ 30 करोड़ 84 लाख 48 हजार वर्ष।

आधुनिक मान के अनुसार सूर्य 25 से 27 करोड़ वर्ष में आकाश गंगा के केन्द्र का चक्र पूरा करता है।

कल्प-

परमेष्ठी मंडल स्वायम्भू मंडल का परिभ्रमण कर रहा है। यानी आकाश गंगा अपने से ऊपर वाली आकाश गंगा का चक्कर लगा रही है। इस काल को कल्प कहा गया। यानी इसका माप है 4 अरब 32 करोड़ वर्ष (4,32,00,00,000)। इसे ब्रह्मा का एक दिन कहा गया।

जितना बड़ा दिन, उतनी बड़ी रात, अत: ब्रह्मा का अहोरात्र यानी 864 करोड़ वर्ष हुआ।
ब्रह्मा का वर्ष यानी 31 खरब 10 अरब 40 करोड़ वर्ष ब्रह्मा की 100 वर्ष की आयु अथवा ब्रह्माण्ड की आयु- 31 नील 10 अरब 40 अरब वर्ष (31,10,40,000000000 वर्ष)

भारतीय मनीषा की इस गणना को देखकर यूरोप के प्रसिद्ध ब्रह्माण्ड विज्ञानी कार्ल सेगन ने अपनी पुस्तक में कहा

“विश्व में हिन्दू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जो इस विश्वास पर समर्पित है कि इस ब्रह्माण्ड में उत्पत्ति और क्षय की एक सतत प्रक्रिया चल रही है और यही एक धर्म है, जिसने समय के सूक्ष्मतम से लेकर बृहत्तम माप, जो समान्य दिन-रात से लेकर 8 अरब 64 करोड़ वर्ष के ब्राहृ दिन रात तक की गणना की है, जो संयोग से आधुनिक खगोलीय मापों के निकट है। यह गणना पृथ्वी व सूर्य की उम्र से भी अधिक है तथा इनके पास और भी लम्बी गणना के माप है।”

कार्ल सेगन ने इसे संयोग कहा है यह ठोस ग्रहीय गणना पर आधारित है। ऋषियों की अद्भुत खोज हमारे पूर्वजों ने जहां खगोलीय गति के आधार पर काल का मापन किया, वहीं काल की अनंत यात्रा और वर्तमान समय तक उसे जोड़ना तथा समाज में सर्वसामान्य व्यक्ति को इसका ध्यान रहे इस हेतु एक अद्भुत व्यवस्था भी की थी, जिसकी ओर साधारणतया हमारा ध्यान नहीं जाता है।

हमारे देश में कोई भी कार्य होता हो चाहे वह भूमिपूजन हो, वास्तुनिर्माण का प्रारंभ हो- गृह प्रवेश हो, जन्म, विवाह या कोई भी अन्य मांगलिक कार्य हो, वह करने के पहले कुछ धार्मिक विधि करते हैं। उसमें सबसे पहले संकल्प कराया जाता है। यह संकल्प मंत्र यानी अनंत काल से आज तक की समय की स्थिति बताने वाला मंत्र है। इस दृष्टि से इस मंत्र के अर्थ पर हम ध्यान देंगे तो बात स्पष्ट हो जायेगी। संकल्प मंत्र में कहते हैं….

ॐ अस्य श्री विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य ब्राहृणां द्वितीये परार्धे-

अर्थात् महाविष्णु द्वारा प्रवर्तित अनंत कालचक्र में वर्तमान ब्रह्मा की आयु का द्वितीय परार्ध-वर्तमान ब्रह्मा की आयु के 50 वर्ष पूरे हो गये हैं। श्वेत वाराह कल्पे-कल्प याने ब्रह्मा के 51वें वर्ष का पहला दिन है।

वैवस्वतमन्वंतरे- ब्रह्मा के दिन में 14 मन्वंतर होते हैं उसमें सातवां मन्वंतर वैवस्वत मन्वंतर चल रहा है। अष्टाविंशतितमे कलियुगे- एक मन्वंतर में 71 चतुर्युगी होती हैं, उनमें से 28वीं चतुर्युगी का कलियुग चल रहा है।

कलियुगे प्रथमचरणे- कलियुग का प्रारंभिक समय है।

कलिसंवते या युगाब्दे-
कलिसंवत् या युगाब्द वर्तमान में 5104 चल रहा है।
जम्बु द्वीपे, ब्रह्मावर्त देशे, भारत खंडे- देश प्रदेश का नाम अमुक स्थाने – कार्य का स्थान अमुक संवत्सरे – संवत्सर का नाम अमुक अयने – उत्तरायन/दक्षिणायन अमुक ऋतौ – वसंत आदि छह ऋतु हैं अमुक मासे – चैत्र आदि 12 मास हैं अमुक पक्षे – पक्ष का नाम (शुक्ल या कृष्ण पक्ष) अमुक तिथौ – तिथि का नाम अमुक वासरे – दिन का नाम अमुक समये – दिन में कौन सा समय अमुक – व्यक्ति – अपना नाम, फिर पिता का नाम, गोत्र तथा किस उद्देश्य से कौन सा काम कर रहा है, यह बोलकर संकल्प करता है। इस प्रकार जिस समय संकल्प करता है, उस समय से अनंत काल तक का स्मरण सहज व्यवहार में भारतीय जीवन पद्धति में इस व्यवस्था के द्वारा आया है।

काल की सापेक्षता –

आइंस्टीन ने अपने सापेक्षता सिद्धांत में दिक् व काल की सापेक्षता प्रतिपादित की। उसने कहा, विभिन्न ग्रहों पर समय की अवधारणा भिन्न-भिन्न होती है। काल का सम्बन्ध ग्रहों की गति से रहता है। इस प्रकार अलग-अलग ग्रहों पर समय का माप भिन्न रहता है। समय छोटा-बड़ा रहता है। इसकी जानकारी के संकेत हमारे ग्रंथों में मिलते हैं।

पुराणों में कथा आती है कि रैवतक राजा की पुत्री रेवती बहुत लम्बी थी, अत: उसके अनुकूल वर नहीं मिलता था। इसके समाधान हेतु राजा योग बल से अपनी पुत्री को लेकर ब्राहृलोक गये। वे जब वहां पहुंचे तब वहां गंधर्वगान चल रहा था। अत: वे कुछ क्षण रुके। जब गान पूरा हुआ तो ब्रह्मा ने राजा को देखा और पूछा कैसे आना हुआ? राजा ने कहा मेरी पुत्री के लिए किसी वर को आपने पैदा किया है या नहीं? ब्रह्मा जोर से हंसे और कहा, जितनी देर तुमने यहां गान सुना, उतने समय में पृथ्वी पर 27 चर्तुयुगी बीत चुकी हैं और 28 वां द्वापर समाप्त होने वाला है। तुम वहां जाओ और कृष्ण के भाई बलराम से इसका विवाह कर देना। साथ ही उन्होंने कहा कि यह अच्छा हुआ कि रेवती को तुम अपने साथ लेकर आये। इस कारण इसकी आयु नहीं बढ़ी। यह कथा पृथ्वी से ब्राहृलोक तक विशिष्ट गति से जाने पर समय के अंतर को बताती है।

आधुनिक वैज्ञानिकों ने भी कहा कि यदि एक व्यक्ति प्रकाश की गति से कुछ कम गति से चलने वाले यान में बैठकर जाए तो उसके शरीर के अंदर परिवर्तन की प्रक्रिया प्राय: स्तब्ध हो जायेगी। यदि एक दस वर्ष का व्यक्ति ऐसे यान में बैठकर देवयानी आकाशगंगा (Andromeida Galaz) की ओर जाकर वापस आये तो उसकी उमर में केवल 56 वर्ष बढ़ेंगे किन्तु उस अवधि में पृथ्वी पर 40 लाख वर्ष बीत गये होंगे। योगवासिष्ठ आदि ग्रंथों में योग साधना से समय में पीछे जाना और पूर्वजन्मों का अनुभव तथा भविष्य में जाने के अनेक वर्णन मिलते हैं।

असल में ईसाईयत/Christianity की ईसा से कोई लेना देना नहीं है।

ओशो ने अपने प्रवचन में ईसा के इसी अज्ञात जीवनकाल के बारे में विस्तार से बताया था; जिसके बाद उनको ना सिर्फ अमेरिका से

प्रताड़ित करके निकाला गया बल्कि पोप ने अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके उनको 21 अन्य ईसाई देशों में शरण देने से मना कर दिया गया।

असल में ईसाईयत/Christianity की ईसा से कोई लेना देना नहीं है। अविवाहित माँ की औलाद होने के कारण बालक ईसा समाज में अपमानित और प्रताडित करे गए जिसके कारण वे 13 वर्ष की उम्र में ही भारत आ गए थे। यहाँ उन्होंने हिन्दू, बौद्ध और जैन धर्म के प्रभाव में शिक्षा दीक्षा ली। एक गाल पर थप्पड़ मारने पर दूसरा गाल आगे करने का सिद्धान्त सिर्फ भारतीय धर्मो में ही है, ईसा के मूल धर्म यहूदी धर्म में तो आँख के बदले आँख और हाथ के बदले हाथ का सिद्धान्त था। भारत से धर्म और योग की शिक्षा दीक्षा लेकर ईसा प्रेम और भाईचारे के सन्देश के साथ वापिस “जूडिया” पहुँचे। इस बीच रास्ते में उनके प्रवचन सुनकर उनके अनुयायी भी बहुत हो चुके थे। इस बीच प्रभु ईसा के 2 निकटतम अनुयायी “Peter” और “Christopher” थे। इनमें Peter उनका सच्चा अनुयायी था जबकि Christopher धूर्त और लालची था।जब ईसा ने जूडिया पहुंचकर अधिसंख्य यहूदियों के बीच अपने अहिंसा और भाईचारे के सिद्धान्त दिए तो अधिकाधिक यहूदी लोग उनके अनुयायी बनने लगे। जिससे यहूदियों को अपने धर्म पर खतरा मंडराता हुआ नजर आया तो उन्होंने रोम के राजा “Pontius Pilatus” पर दबाव बनाकर उसको ईसा को सूली पर चढाने के लिए विवश किया गया। इसमें Christopher ने यहूदियों के साथ मिलकर ईसा को मरवाने का पूरा षड़यंत्र रचा। हालाँकि राजा Pontius को ईसा से कोई बैर नहीं था और वो मूर्तिपूजक Pagan धर्म जो ईसाईयत और यहूदी धर्म से पहले उस क्षेत्र में काफी प्रचलित था और हिन्दू धर्म से अत्यधिक समानता वाला धर्म है का अनुयायी था। राजा अगर ईसा को सूली पर न चढाता तो अधिसंख्य यहूदी उसके विरोधी हो जाते और सूली पर चढाने पर वो एक निर्दोष व्यक्ति की हत्या के दोष में ग्लानि अनुभव् करता तो उसने Peter और ईसा के कुछ अन्य विश्वस्त भक्तों के साथ मिलकर एक गुप्त योजना बनाई।

[[[  अब पहले मैं आपको यहूदियों की सूली के बारे में बता दूँ। ये विश्व का सजा देने का सबसे क्रूरतम और जघन्यतम तरीका है। इसमें व्यक्ति के शरीर में अनेक कीले ठोंक दी जाती हैं जिनके कारण व्यक्ति धीरे धीरे मरता है। एक स्वस्थ व्यक्ति को सूली पर लटकाने के बाद मरने में 48 घंटे तक का समय लग जाता है और कुछ मामलो में तो 6 दिन तक भी लगे हैं। ]]]]

गुप्त योजना के अनुसार ईसा को सूली पर चढाने में जानबूझकर देरी की गयी और उनको शुक्रवार को दोपहर में सूली पर चढ़ाया गया। और शनिवार का दिन यहूदियों के लिए शब्बत का दिन होता हैं इस दिन वे कोई काम नहीं करते। शाम होते ही ईसा को सूली से उतारकर गुफा में रखा गया ताकि शब्बत के बाद उनको दोबारा सूली पर चढ़ाया जा सके। उनके शरीर को जिस गुफा में रखा गया था उसके पहरेदार भी “Pagan” ही रखे गए थे। रात को राजा के गुप्त आदेश के अनुसार पहरेदारों ने Peter और उसके सथियों को घायल ईसा को चोरी करके ले जाने दिया गया और बात फैलाई गयी की  ” इसा का शरीर गायब हो गया और जब वो गायब हुआ तो पहरेदारों को अपने आप नींद आ गयी थी।”

इसके बाद कुछ लोगों ने पुनर्जन्म लिये हुए ईसा को भागते हुए भी देखा। असल में तब जीसस अपनी माँ Marry Magladin और अपने खास अनुयायियों के साथ भागकर वापिस भारत आ गए थे। इसके बाद जब ईसा के पुनर्जन्म और चमत्कारों के सच्चे झूठे किस्से जनता में लोकप्रिय होने लगे और यहदियों को अपने द्वारा उस चमत्कारी पुरुष/ देव पुरुष को सूली पर चढाने के ऊपर ग्लानि होने लगी और एक बड़े वर्ग का अपने यहूदी धर्म से मोह भंग होने लगा तो इस बढ़ते असंतोष को नियंत्रित करने का कार्य इसा के ही शिष्य Christopher को सौंपा गया क्योंकि Christopher ने ईसा के सब प्रवचन सुन रखे थे। तो यहूदी धर्म गुरुओं और christopher ने मिलकर यहूदी धर्म ग्रन्थ “Old Testament” और ईसा के प्रवचनों को मिलकर एक नए ग्रन्थ “New Testament अर्थात Bible” की रचना की और उसी के अधार पर एक ऐसे नए धर्म ईसाईयत अथवा Christianity की रचना करी गयी जो यहूदियों के नियंत्रण में था। इसका नामकरण भी ईसा की बजाये Christopher के नाम पर किया गया।

ईसा के इसके बाद के जीवन के ऊपर खुलासा जर्मन विद्वान् Holger Christen (http://en.wikipedia.org/wiki/Holger_Kerste )ने अपनी पुस्तक Jesus Lived In India में किया है।

Christen ने अपनी पुस्तक में रुसी विद्वान Nicolai Notovich की भारत यात्रा का वर्णन करते हुए बताया है कि निकोलाई 1887 में भारत भ्रमण पर आये थे। जब वे जोजिला दर्र्रा पर घुमने गए तो वहां वो एक बोद्ध मोनास्ट्री में रुके, जहाँ पर उनको “Issa” नमक बोधिसत्तव संत के बारे में बताया गया। जब निकोलाई ने Issa की शिक्षाओं, जीवन और अन्य जानकारियों के बारे में सुना तो वे हैरान गए क्योंकि उनकी सब बातें जीसस/ईसा से मिलती थी। इसके बाद निकोलाई ने इस सम्बन्ध में और गहन शोध करने का निर्णय लिया और वो कश्मीर पहुंचे जहाँ जीसस की कब्र होने की बातें सामने आती रही थी।

निकोलाई की शोध के अनुसार सूली पर से बचकर भागने के बाद जीसस Turkey, Persia(Iran) और पश्चिमी यूरोप, संभवतया इंग्लैंड से होते हुए 16 वर्ष में भारत पहुंचे। जहाँ पहुँचने के बाद उनकी माँ marry का निधन हो गया था। जीसस यहाँ अपने शिष्यों के साथ चरवाहे का जीवन व्यतीत करते हुए 112 वर्ष की उम्र तक जिए और फिर मृत्यु के पश्चात् उनको कश्मीर के पहलगाम में दफना दिया गया। पहलगाम का अर्थ ही “गड़रियों का गाँव” हैं। और ये अद्भुत संयोग ही है कि यहूदियों के महानतम पैगम्बर हजरत मूसा ने भी अपना जीवन त्यागने के लिए भारत को ही चुना था और उनकी कब्र भी पहलगाम में जीसस की कब्र के साथ ही है। संभवतया जीसस ने ये स्थान इसीलिए चुना होगा क्योंकि वे हजरत मूसा की कब्र के पास दफ़न होना चाहते थे।

हालाँकि इन कब्रों पर मुस्लिम भी अपना दावा ठोंकते हैं और कश्मीर सरकार ने इन कब्रों को मुस्लिम कब्रें घोषित कर दिया है और किसी भी गैरमुस्लिम को वहां जाने की इजाजत अब नहीं है। लेकिन इन कब्रों की देखभाल पीढ़ियों दर पीढ़ियों से एक यहूदी परिवार ही करता आ रहा है।

इन कब्रों के मुस्लिम कब्रें न होने के पुख्ता प्रमाण हैं। सभी मुस्लिम कब्रें मक्का और मदीना की तरफ सर करके बनायीं जाती हैं जबकि इन कब्रों के साथ ऐसा नहीं है। इन कब्रों पर हिब्रू भाषा में “Moses” और “Joshua” भी लिखा हुआ है जो कि हिब्रू भाषा में क्रमश मूसा और जीसस के नाम हैं और हिब्रू भाषा यहूदियों की भाषा थी। अगर ये मुस्लिम कब्र होती तो इन पर उर्दू या अरबी या फारसी भाषा में नाम लिखे होते।

सूली पर से भागने के बाद ईसा का प्रथम वर्णन तुर्की में मिलता है। पारसी विद्वान्
F Mohammed ने अपनी पुस्तक Jami-Ut-Tuwarik में लिखा है कि Nisibi (Todays Nusaybin in Turky) के राजा ने जीसस को शाही आमंत्रण पर अपने राज्य में बुलाया था। इसके आलावा तुर्की और पर्शिया की प्राचीन कहानियों में Yuj Asaf नाम के एक संत का जिक्र मिलता है। जिसकी शिक्षाएं और जीवन की कहनियाँ ईसा से मिलती हैं।

यहाँ आप सब को एक बात का ध्यान दिला दू की इस्लामिक नाम और देशों के नाम पढ़कर भ्रमित न हो क्योंकि ये बात इस्लाम के अस्तित्व में आने से लगभग 600 साल पहले की हैं। यहाँ आपको ये बताना भी महत्वपूर्ण है कि कुछ विद्वानों के अनुसार ईसाइयत से पहले “Alexendria” तक सनातन और बौध धर्म का प्रसार था।

इसके आलावा कुछ प्रमाण ईसाई ग्रंथ Apocrypha से भी मिलते हैं। ये Apostles के लिखे हुए ग्रंथ हैं लेकिन चर्च ने इनको अधिकारिक तौर पर कभी स्वीकार नहीं किया और इन्हें सुने-सुनाये मानता है।

Apocryphal (Act of Thomas) के अनुसार सूली पर लटकाने के बाद कई बार जीसस sant Thomus से मिले भी और इस बात का वर्णन फतेहपुर सिकरी के पत्थर के शिलालेखो पर भी मिलता है। इनमे Agrapha शामिल है जिसमे जीसस की कही हुई बातें लिखी हैं जिनको जान बुझकर बाइबिल में जगह नहीं दी गयी और जो जीसस के जीवन के अज्ञातकाल के बारे में जानकारी देती हैं। इसके अलावा उनकी वे शिक्षाएं भी बाइबिल में शामिल नहीं की गयी जिनमे कर्म और पुनर्जन्म की बात की गयी है जो पूरी तरह पूर्व के धर्मो से ली गयी है और पश्चिम के लिए एकदम नयी चीज थी।

लेखक Christen का कहना है की इस बात के 21 से भी ज्यादा प्रमाण हैं कि जीसस Issa नाम से कश्मीर में रहा और पर्शिया व तुर्की का मशहूर संत Yuj Asaf जीसस ही था। जीसस का जिक्र कुर्द लोगों की प्राचीन कहानियों में भी है।

Kristen हिन्दू धर्म ग्रंथ भविष्य पुराण का हवाला देते हुए कहता है कि जीसस कुषाण क्षेत्र पर 39 से 50 AD में राज करने वाले राजा शालिवाहन के दरबार में Issa Nath नाम से कुछ समय अतिथि बनकर रहा। इसके अलावा कल्हण की राजतरंगिणी में भी Issana नाम के एक संत का जिक्र है जो डल झील के किनारे रहा। इसके अलावा ऋषिकेश की एक गुफा में भी Issa Nath की तपस्या करने के प्रमाण हैं। जहाँ वो शैव उपासना पद्धति के नाथ संप्रदाय के साधुओं के साथ तपस्या करते थे। स्वामी रामतीर्थ जी और स्वामी रामदास जी को भी ऋषिकेश में तप करते हुए उनके दृष्टान्त होने का वर्णन है।

विवादित हॉलीवुड फ़िल्म The Vinci Code में भी यही दिखाया गया है कि ईसा एक साधारण मानव थे और उनके बच्चे भी थे। इसा को सूली पर टांगने के
बाद यहूदियों ने ही उसे अपने फायदे के लिए भगवान बनाया। वास्तव में इसा का Christianity और Bible से कोई लेना देना नहीं था। आज भी वैटिकन पर
“Illuminati” अर्थात यहूदियों का ही नियंत्रण है और उन्होंने इसा के जीवन की सच्चाई और उनकी असली शिक्षाओं कोको छुपा के रखा है। वैटिकन की लाइब्रेरी में बाहर के लोगों को इसी भय से प्रवेश नहीं करने दिया जाता क्योंकि अगर ईसा की भारत से ली गयी शिक्षाओं, उनके भारत में बिताये गए समय और उनके बारे में बोले गए झूठ का अगर पर्दाफाश हो गया तो ये ईसाईयत का अंत होगा और
Illuminati की ताकत एकदम कम हो जायेगी।

भारत में धर्मान्तरण का कार्य कर रहे वैटिकन/Illuminati के एजेंट ईसाई मिशनरी भी इसी कारण से ईसाईयत के रहस्य से पर्दा उठाने वाली हर चीज का पुरजोर विरोध करते हैं। जीसस जहाँ खुद हिन्दू धर्मं/भारतीय धर्मों  को मानते थे, वहीँ उनके नाम पर वैटिकन के ये एजेंट भोले-भाले गरीब लोगों को वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ लेकर जा रहे हैं जिन्होंने प्रभु Issa Nath को तड़पा तड़पाकर मारने का प्रयास किया था। जिस सनातन धर्म को प्रभु Issa ने इतने कष्ट सहकर खुद आत्मसात किया था उसी धर्म के भोले भाले गरीब लोगों को Issa का ही नाम लेकर वापिस उसी पैशाचिकता की तरफ ले जाया जा रहा है।

 

भारतने विश्व को क्या दिया

भारत के बारे में कुछ रोचक तथ्य जिन्हे कुछ देशद्रोही गद्दारो ने आजतक भारतीयों से छुपाकर रखा और बस यही बताया की भारत अंग्रेजो के आने के पहले बहोत गरीब और पिछडा हुआ था ।

 

लेकिन आईये जानते है कि भारतने विश्व को क्या दिया ( पूरा पढे और अगर सच्चे भारतीय है तो जरूर आगे भेजे

 

बीजगणित, त्रिकोणमिति और कलन जैसी गणित की अलग-अलग शाखाओं का जन्म भारत में हुआ था।

 

1982 में भारतीय सेना द्वारा लद्दाख घाटी में सुरु और द्रास नदी के बीच निर्मित बेली ब्रिज विश्व में सर्वाधिक ऊँचाई पर बना पुल है।

 

शल्य चिकित्सा का प्रारंभ 2600 वर्ष पूर्व भारत में हुआ था। अनेक प्राचीन ग्रंथों में गुरु सुश्रुत और उनकी टीम द्वारा आँखों को मोतियाबिंदु से मुक्त करने, प्रसव कराने, हड्डियाँ जोड़ने, पथरी निकालने, अंगों को सुंदर बनाने और मस्तिष्क की चिकित्सा में शल्य क्रिया करने के उल्लेख मिलते हैं।

 

महर्षि कणाद ने सबसे पहले ‘कण’ यानी ‘अणू’ कि खोज की ।

 

नौकायन की कला का आविष्कार विश्व में सबसे पहले 6,000 वर्ष पूर्व भारत की सिंधु घाटी में हुआ था।

 

भारतीय गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त (598-668) तत्कालीन गुर्जर प्रदेश के प्रख्यात नगर उज्जैन की अन्तरिक्ष प्रयोगशाला के प्रमुख थे।’पाई’ की कीमत, संसार में सबसे पहले, छठवीं शताब्‍दी में, भारतीय गणितज्ञ बुधायन द्वारा पता की गई थी.

 

ईसा से 800 वर्ष पूर्व स्थापित तक्षशिला विश्वविद्यालय(आधुनिक पाकिस्तान) में 20,500 से अधिक विद्यार्थी 60 से अधिक विषयों की शिक्षा प्राप्त करते थे।

 

भारत के बंगलुरु नगर में 2,500 से अधिक सॉफ्टवेयर कंपनियों में 26,000 से अधिक कंप्यूटर इंजीनियर काम करते हैं।

 

कमल के फूल को भारत के साथ साथ वियतनाम के राष्ट्रीय पुष्प होने का गौरव भी प्राप्त है।

 

भारत में बंदरों की गिणती 5 करोड़ है.भारत विश्व का सबसे बड़ा चाय उत्पादक और उपभोक्ता है। यहाँ विश्व की 30% चाय उतपादित होती है जिसमें से 25% यही उपयोग की जाती है।

 

दुसरे देशों में रहने वाले भारतीय 1 लाख करोड़ अमरीकी डालर हर साल कमाते हैं जिसमें से 30 हजार करोड़ बचाकर वे भारत भेज देते हैं।

 

भारतीय रेल कर्माचारियों की संख्या के आधार पर संसार की सबसे बड़ी संस्था है जिसमें 16 लाख से भी अधिक कर्मचारी काम करते हैं।

 

भारत में पाई जानेवाली 1,000 से अधिक आर्किड प्रजातियों में से 600 से भी अधिक केवल अरुणाचल प्रदेश में पाई जाती हैं।

 

भारत विश्व में सबसे अधिक डाकघरों वाला देश है। इतने डाकघर संसार के किसी भी ओर देश में नहीं हैं।

 

वाराणसी, जिसे बनारस के नाम से भी जाना जाता है, एक प्राचीन शहर है जब भगवान बुद्ध ने 500 बी सी में यहां आगमन किया और यह आज विश्व का सबसे पुराना और निरंतर आगे बढ़ने वाला शहर है।कुंग फू के जनक तत्मोह या बोधिधर्म नामक एक भारतीय बौद्ध भिक्षु थे जो 500 ईस्वी के आसपास भारत से चीन गए।

 

जयपुर में सवाई राजा जयसिंह द्वारा 1724 में बनाई गई जंतर मंतर संसार की सबसे बड़ी पत्थर निर्मित वेधशाला है।जैसलमेर संसार का एकमात्र ऐसा अनोखा किला है जिसमें शहर की लगभग 25 प्रतीशत आबादी ने अपना घर बना लिया है।

 

भारत, पाकिस्तान, फीजी, मारिशस, सूरीनाम और अरब देशों तक फैली हिंदी विश्व की सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा है।

 

विश्व में 22 हजार टन पुदीने के तेल का उत्पादन होता है, इसमें से 19 हजार टन तेल अकेले भारत में निकाला जाता है।

 

1896 तक भारत हीरों का एक मात्र स्त्रोत था और आधुनिक समय में हीरों के सबसे बड़े उपभोक्ता देशों में भारत तीसरे स्थान पर है। पहले व दूसरे स्थान पर क्रमशः अमेरिका और जापान हैं।

 

5000 साल पहले जब विश्व में ज्यादातर सभ्यताएँ खानाबदोश जीवन व्यतीत कर रही थीं भारत में सिंधु-घाटी उन्नति के शिखर पर थी।

 

श्रीलंका और दक्षिण भारत के कुछ भागों में दीपावली का उत्सव उत्तर भारत से एक दिन पहले मनाया जाता है।

 

भारत ने अपने आखिरी 10,000 वर्षों के इतिहास में किसी भी देश पर हमला नहीं किया है।’हिंदुस्तान’ नाम सिंधु और हिंदु का संयोजन है, जो कि हिंदुओं की भूमि के संदर्भ में प्रयुक्त होता है।

 

शतरंज की खोज भारत में की गई थी।

 

विश्व का प्रथम ग्रेनाइट मंदिर तमिलनाडु के तंजौर में बृहदेश्वर मंदिर है। इस मंदिर के शिखर ग्रेनाइट के 80 टन के टुकड़ों से बने हैं। यह भव्य मंदिर राजाराज चोल के राज्य के दौरान केवल 5 वर्ष की अवधि में 1004 से1009 ईसवी के दौरान बनवया किया गया था।

 

भारत विश्व का सबसे बड़ा लोकतंत्र और विश्व का सातवां सबसे बड़ा देश तथा प्राचीन सभ्यताओं में से एक है।

 

सांप सीढ़ी का खेल ,तेरहवीं शताब्दी .में कवि संत ज्ञान देव द्वारा तैयार किया गया था इसे मूल रूप से मोक्षपट कहते थे। इस खेल में सीढियां वरदानों का प्रतिनिधित्व करती थीं जबकि सांप अवगुणों को दर्शाते थे। इस खेल को कौडियों तथा पांसे के साथ खेला जाता था। आगे चल कर इस खेल में कई बदलाव किए गए, परन्तु इसका अर्थ वहीं रहा अर्थात अच्छे काम लोगों को स्वर्ग की ओर ले जाते हैं जबकिबुरे काम दोबारा जन्म के चक्र में डाल देते हैं।

 

दुनिया का सबसे ऊंचा क्रिकेट का मैदान हिमाचल प्रदेश के चायल नामक स्थान पर है। इसे समुद्री सतह से 2,444 मीटर की ऊंचाई पर भूमि को समतल बनाकर 1993 में तैयार किया गया था।

 

आयुर्वेद मानव जाति के लिए ज्ञात सबसे ,आरंभिक चिकित्सा शाखा है। इस शाखा विज्ञान के जनक माने जाने वाले चरक ने 2500 वर्ष पहले आयुर्वेद का समेकन किया था।

 

भारत 17वीं सदी के आरंभ तक ब्रिटिश राज्य आने से पहले सबसे अमीर देश था। क्रिस्टोफर कोलम्बस भारत की सम्पन्नता से आकर्षित हो कर भारत आने का समुद्री मार्ग खोजने चला और उसने गलती से अमेरिका को खोज लिया।

 

भास्कराचार्य ने खगोल शास्त्र के कई सौ साल पहले धरती द्वारा सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाने में लगने वाले सही समय की गणना की थी। उनकी गणना के अनुसार सूर्य की परिक्रमा में पृथ्वी को 365.258756484 दिन का समय लगता है।

 

पेंटियम चिप का आविष्कार ‘विनोद धाम’ ने किया था। (आज दुनिया के 90% कम्प्युटर इसी से चलते हैं)सबीर भाटिया ने हॉटमेल बनाई. (हॉटमेल दुनिया का न.1 ईमेल प्रोग्राम है)अमेरिका में 38% डॉक्टर भारतीय हैं.अमेरिका में 12% वैज्ञानिक भारतीय हैं और नासा में 36% वैज्ञानिक भारतीय हैं.माइक्रोसॉफ़्ट के 34% कर्मचारी, आईबीएम के 28% और इंटेल के 17% कर्मचारी भारतीय हैं.ग्रीक तथा रोमनों द्वारा उपयोग की गई की सबसेबड़ी संख्या 10^6(अर्थात 10 की घात 6) थी जबकि हिन्दुओं ने 10^53 जितने बड़े अंकों का उपयोग करना शुरू कर दिया था.भारत से 90 देशों को सॉफ्टवेयर बेचता है।

 

भारत में 4 धर्मों का जन्म हुआ हिन्दु, बौद्ध, जैन और सिक्ख धर्म और जिनका पालन दुनिया की आबादी का 25 प्रतिशत हिस्सा करता है।जैन धर्म और बौद्ध धर्म की स्थापना ,भारत में क्रमश: 600 बी सी और 500 बी सी में हुई थी।इस्लाम भारत का और दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा धर्म है।

 

आजसे 800 साल पहले तक यानी मुगलोंके आनेसे पहले तक कोई भी मुस्लिम भारत मे नही था । इतने अत्याचार और आक्रमणोंके बाद भी मुगल भारत को इस्लामिक राष्ट्र नही बना पाए ।

 

तिरुपति शहर में बना विष्णु मंदिर 10वीं सदी के दौरान बनाया गया था,यह विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक स्थान है। रोम या मक्का धार्मिक स्थलों से भी बड़े इस स्थान पर प्रतिदिन औसतन 30 हजार श्रद्धालु आते हैं और लगभग 3 करोड़ 60 लाख प्रति दिन चढ़ावा आता है।

 

योग कला का उद्भव भारत में हुआ है और यह 5,000 वर्ष से अधिक समय से मौजूद है।आधुनिक संख्या प्रणाली की खोज भारत द्वारा की गयी है. आर्यभट्ट ने अंक शून्य का आविष्कार किया था. विश्व में उपयोग की जाने वाली आधुनिक संख्या प्रणाली को भारतीय अंको का अंतरराष्ट्री रूप कहा जाता है.पुरी के जगन्नाथ मंदिर में प्रतिदिन इतना प्रसाद बँटता है कि 500 रसोइए और 300 सहयोगी रोज़ काम करते हैं।

 

🎁🎄9 विचित्र धार्मिक अनुष्ठान, लाश की राख को केले में मिलाकर खाते हैं लोग🎄🎁

🎄धार्मिक अनुष्ठान हमारी आस्था का प्रतीक हैं, लेकिन दुनिया में ऐसे कई अनुष्ठान हैं, जो सुनने और देखने में अजीब और चौंकाने वाले हैं।

🎁आज भी ये अजीब दिखने वाले अनुष्ठान बिना किसी रोक-टोक किए जा रहे हैं।

🎄नवजात बच्चे को 7000 फीट से फेंकना, अंगारों पर चलना, ऊंचाई से कूदना, लाश के साथ नाचना.. यह और इस तरह के कई अनुष्ठान आज भी प्रचलन में हैं।

🎄हम आपको कुछ ऐसे ही अनुष्ठान के बारे में बता रहें।

 

🎁1 देश का नाम – अमेजन, ब्राजील और वेनेजुएला

धार्मिक अनुष्ठान- मृत्यु प्राकृतिक नहीं

ये होता है अनुष्ठान में- जलने के बाद लाश की राख को केले में मिलाकर खाना

क्यों किया जाता है- मृत व्यक्ति सदा जीवित रहे

इसे ऐसे समझें- अमेजोनिया जनजाती को आदिम जनजाती माना जाता है। इनका मानना है कि मृत्यु प्राकृतिक नहीं होती है। ये लोग लाश को जलाने के बाद, उसकी राख को केले में मिलाकर खाते हैं।

 

🎁देश का नाम – मेडागास्कर, अफ्रीका

धार्मिक अनुष्ठान- अंत्येष्टी

ये होता है अनुष्ठान में- कब्र के आसपास नाचना

क्यों किया जाता है- आत्मा दूसरे के शरीर में प्रवेश करे

इसे ऐसे समझें- जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो मेडागास्कर के लोग कब्र के आसपास नाचते- गाते हैं और बाद में लाश को दफना देते हैं।

 

🎁देश का नाम – मेक्सिको

धार्मिक अनुष्ठान- मृत्यु के दिन से

ये होता है अनुष्ठान में- कब्र की साफ-सफाई कर पिकनिक मनाना

क्यों किया जाता है- ताकि जाने की याद हमेशा ताजा रहे

इसे ऐसे समझें- जब किसी की मृत्यु होती है, तो उसके घरवाले उसकी कब्र पर रोज जाते हैं और साफ-सफाई कर पिकनिक मनाते हैं।

 

🎁देश का नाम – पिनांग मलेशिया

धार्मिक उत्सव-  टॉयस्ट उत्सव

ये होता है अनुष्ठान में- आग पर चलना

क्यों किया जाता है- बुराई का खत्म करने के लिए

इसे ऐसे समझें- टॉयस्ट उत्सव के दौरान लोग आग पर चलते हैं। यह इसलिए ताकि लोग खुद को पवित्र कर सके और अपने अंदर की बुराई को खत्म करते हैं।

 

🎁देश का नाम – थाईलैंड

धार्मिक उत्सव- फुकेत शाकाहारी महोत्सव

ये होता है अनुष्ठान में- गाल से चाकू, तलवार, हुक और बंदूक निकालना

क्यों किया जाता है- शाकाहारी आहार का पालन करना, मन और शरीर की शुद्धि के लिए नौ सम्राट परमेश्वर से प्रार्थना करना।

इसे ऐसे समझें- ऐसा करने से भगवान उनकी आत्मा में प्रवेश करते हैं और वे शुद्ध हो जाते हैं।

 

🎁देश का नाम – इजराइल

धार्मिक अनुष्ठान- भूत भगाना

ये होता है अनुष्ठान में- मुर्गे का सिर काटना

क्यों किया जाता है- बुराई का अंत

इसे ऐसे समझें- ज्यूविश समुदाय में किसी भी व्यक्ति के अंदर के भूत को भगाने के लिए उसके सिर पर एक मुर्गा रखा जाता है, ताकि बुरी आत्मा मुर्गे में चली जाए। बाद मुर्गे का सिर काट दिया जाता है।

 

🎁देश का नाम – तिब्बत

धार्मिक अनुष्ठान- झातोर

ये होता है अनुष्ठान में- मृत शरीर को खाते है गिद्ध

क्यों किया जाता है- पुर्नजन्म में विश्वास

इसे ऐसे समझें- बुद्धिस्ट लोग अनुष्ठान के दौरान मृत शरीर को पहाड़ी पर ले जाते हैं और उसे गिद्धों के भोजन के लिए छोड़ देते हैं। गिद्ध आसानी से शरीर को खा ले, उसके लिए लाश के टुकड़े किए जाते हैं।

 

🎁देश का नाम – बनलाप, पैसिफिक द्वीपसमूह

धार्मिक अनुष्ठान- गखुल

ये होता है अनुष्ठान में- ऊंचाई पर बने लकड़ी के टॉवर से कूदना

क्यों किया जाता है- भगवान का आशीर्वाद लेने

इसे ऐसे समझें- इसमें एक व्यक्ति अपनी एडियों के आसपास शराब की बोतल बांधकर, ऊंचे बने लकड़ी के टॉवर से नीचे कूदता है। इस दौरान बाकी गांववाले नाचते, गाते और ड्रम बजाते हैं।

 

🎁देश का नाम – दक्षिण अफ्रीका धार्मिक अनुष्ठान-

सकपाता ये होता है अनुष्ठान में- जंगल ले जाना

क्यों किया जाता है-

आत्मा से मिलाप करवाने

इसे ऐसे समझें- व्यक्ति को जंगल में ले जाकर आत्मा से मिलवाया जाता है, जिसे सकपाता कहते हैं। आत्मा व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है और वह अवचेतन हो जाता है। उसे तीन दिन जंगल में ही रहना पड़ता है, बिना कुछ खाए-पिए, जब उसे होश आता है तो माना जाता है कि अनुष्ठान पूरा हुआ।

 

🎁👧हैरतअंगेज! इस परिवार में 100 सालों बाद पैदा हुई बेटी👧🎁

👧हमारे देश में आज भी कई जगह परिवारों में लड़कों की चाहत इतनी ज्यादा होती है कि वो या तो लड़की के पैदा होते ही उसको मार डालते हैं या फिर उसके जन्म पर कुछ खास खुश नहीं होते हैं।

👧मिरर में छपी के मुताबिक इंगलैंड के एक परिवार में सौ सालों बाद एक ‌बेटी की किलकारियां गूंज रहीं हैं।

👧वो पैदा हुई तो जैसे सबका सपना पूरा हो गया।

👧सिल्वरटन परिवार की पिछली चार पुश्तों में सिर्फ लड़के ही पैदा हो रहे थे।

👧आपको जानकर हैरानी होगी कि इस परिवार में 1913 से अब तक 16 लड़कों ने जन्म लिया।

👧परिवार में एक मुद्दत से लोगों को इसका इंतजार था कि कोई बेटी भी जन्मे, लेकिन ऐसा हो नहीं पा रहा था। 100 सालों बाद पैदा हुई बेटी का नाम पॉपी है।

👧 पॉपी के पिता का नाम जेरेमी सिल्वरटन है और उनकी पत्नी का नाम डैनियल एंड्रीउज है।

👧इस परिवार में पिछली जो लड़की पैदा हुई थी वो 101 सालों पहले हुई थी। उस वक्त ब्रिटेन में किंग जॉर्ज सिक्‍स्‍थ का राज था।

👧आप इसे कोई संयोग कहें या फिर भगवान की मर्जी, लेकिन सिल्वरटन परिवार में जितनी भी बहुएं आई, किसी को भी बेटी नहीं हुआ।

👧इस घर में हर जगह इतने ज्यादा पुरूष हो गए कि उन्हें लड़की के होने की इच्छा सताने लगी।

👧सिल्वरटन परिवार में जन्मी बच्ची पॉपी बहुत ही खुशी के साथ स्वागत की गई।

👧उसके सभी भाई और चाचा खूब खुश हैं। वो कह रहें हैं पॉपी को अपनी जिंदगी अपने ढ़ंग से जीने का अधिकार होगा।

👧जब डैनियल प्रेगनेंट हुई तो सभी की इच्छा तो थी कि बेटी पैदा हो, लेकिन परिवार के रिकॉर्ड की देखकर किसी को अंदाजा नहीं था कि बेटी हो जाएगी।

👧डैनियल से रहा नहीं गया और उसने अपना अल्ट्रासाउंड करवा ही लिया। डॉक्टरों ने जब सिल्वरटन फैमिली को बताया कि डैनियल के पेट में एक बेटी ने जन्म लिया है।

👧उसके बाद तो जो खुशी के लहर दौड़ी कि कहने क्या। ये पूरी घटना अपने आप में एक अचंभा है और उतना ही रोचक भी।

👧इसके बाद ये तो तय है कि पॉपी अभी से ही सबकी दुलारी है। उसके चाहनेवाले अभी से ही कई लोग हैं

जानिए अघोरियों की रहस्यमयी दुनिया की कुछ अनजानी और रोचक बातें

 

🎁अघोर पंथ हिंदू धर्म का एक संप्रदाय है। इसका पालन करने वालों को अघोरी कहते हैं।

🎁अघोर पंथ की उत्पत्ति के काल के बारे में अभी निश्चित प्रमाण नहीं मिले हैं, परन्तु इन्हें कपालिक संप्रदाय के समकक्ष मानते हैं।

🎁 ये भारत के प्राचीनतम धर्म “शैव” (शिव साधक) से संबधित हैं।

🎁अघोरियों को इस पृथ्वी पर भगवान शिव का जीवित रूप भी माना जाता है।

🎁शिवजी के पांच रूपों में से एक रूप अघोर रूप है। अघोरी हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का विषय रहे हैं।

🎁अघोरियों का जीवन जितना कठिन है, उतना ही रहस्यमयी भी।

🎁अघोरियों की साधना विधि सबसे ज्यादा रहस्यमयी है।

🎁उनकी अपनी शैली, अपना विधान है, अपनी अलग विधियां हैं।

🎁अघोरी उसे कहते हैं जो घोर नहीं हो। यानी बहुत सरल और सहज हो।

🎁 जिसके मन में कोई भेदभाव नहीं हो। अघोरी हर चीज में समान भाव रखते हैं।

🎁 वे सड़ते जीव के मांस को भी उतना ही स्वाद लेकर खाते हैं, जितना स्वादिष्ट पकवानों को स्वाद लेकर खाया जाता है।

🎁अघोरियों की दुनिया ही नहीं, उनकी हर बात निराली है। वे जिस पर प्रसन्न हो जाएं उसे सब कुछ दे देते हैं।

🎁अघोरियों की कई बातें ऐसी हैं जो सुनकर आप दांतों तले अंगुली दबा लेंगे।

🎁 हम आपको अघोरियों की दुनिया की कुछ ऐसी ही बातें बता रहे हैं, जिनको पढ़कर आपको एहसास होगा कि वे कितनी कठिन साधना करते हैं।

🎁साथ ही उन श्मशानों के बारे में भी आज आप जानेंगे, जहां अघोरी मुख्य रूप से अपनी साधना करते हैं।

🎁जानिए अघोरियों के बारे में रोचक बातें-

1.🎁 अघोरी मूलत: तीन तरह की साधनाएं करते हैं। शिव साधना, शव साधना और श्मशान साधना।

🎁 शिव साधना में शव के ऊपर पैर रखकर खड़े रहकर साधना की जाती है।

🎁बाकी तरीके शव साधना की ही तरह होते हैं।

🎁इस साधना का मूल शिव की छाती पर पार्वती द्वारा रखा हुआ पैर है।

🎁 ऐसी साधनाओं में मुर्दे को प्रसाद के रूप में मांस और मदिरा चढ़ाई जाती है।

🎁शव और शिव साधना के अतिरिक्त तीसरी साधना होती है श्मशान साधना, जिसमें आम परिवारजनों को भी शामिल किया जा सकता है।

🎁इस साधना में मुर्दे की जगह शवपीठ (जिस स्थान पर शवों का दाह संस्कार किया जाता है) की पूजा की जाती है। उस पर गंगा जल चढ़ाया जाता है।

🎁यहां प्रसाद के रूप में भी मांस-मदिरा की जगह मावा चढ़ाया जाता है।

🎁अघोरी शव साधना के लिए शव कहाँ से लाते है?🎁

🎁हिन्दू धर्म में आज भी किसी 5 साल से कम उम्र के बच्चे, सांप काटने से मरे हुए लोगों, आत्महत्या किए लोगों का शव जलाया नहीं जाता बल्कि दफनाया या गंगा में प्रवाहित कर कर दिया जाता है।

🎁 पानी में प्रवाहित ये शव डूबने के बाद हल्के होकर पानी में तैरने लगते हैं।

🎁अक्सर अघोरी तांत्रिक इन्हीं शवों को पानी से ढूंढ़कर निकालते और अपनी तंत्र सिद्धि के लिए प्रयोग करते हैं।

2.🎁 बहुत कम लोग जानते हैं कि अघोरियों की साधना में इतना बल होता है कि वो मुर्दे से भी बात कर सकते हैं।

🎁ये बातें पढऩे-सुनने में भले ही अजीब लगे,

🎁 लेकिन इन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। उनकी साधना को कोई चुनौती नहीं दी जा सकती।

🎁 अघोरियों के बारे में कई बातें प्रसिद्ध हैं जैसे कि वे बहुत ही हठी होते हैं,

🎁अगर किसी बात पर अड़ जाएं तो उसे पूरा किए बगैर नहीं छोड़ते।

🎁 गुस्सा हो जाएं तो किसी भी हद तक जा सकते हैं।

🎁अधिकतर अघोरियों की आंखें लाल होती हैं, जैसे वो बहुत गुस्सा हो, लेकिन उनका मन उतना ही शांत भी होता है।

🎁काले वस्त्रों में लिपटे अघोरी गले में धातु की बनी नरमुंड की माला पहनते हैं।

3.🎁 अघोरी अक्सर श्मशानों में ही अपनी कुटिया बनाते हैं। जहां एक छोटी सी धूनी जलती रहती है। जानवरों में वो सिर्फ  कुत्ते पालना पसंद करते हैं। उनके साथ उनके शिष्य रहते हैं, जो उनकी सेवा करते हैं। अघोरी अपनी बात के बहुत पक्के होते हैं, वे अगर किसी से कोई बात कह दें तो उसे पूरा करते हैं।

  1. 🎁अघोरी गाय का मांस छोड़ कर बाकी सभी चीजों को खाते हैं। मानव मल से लेकर मुर्दे का मांस तक। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व है। इसलिए वे श्मशान में रहना ही ज्यादा पंसद करते हैं। श्मशान में साधना करना शीघ्र ही फलदायक होता है।

श्मशान में साधारण मानव जाता ही नहीं। इसीलिए साधना में विध्न पडऩे का कोई प्रश्न ही नहीं उठता। उनके मन से अच्छे बुरे का भाव निकल जाता है, इसलिए वे प्यास लगने पर खुद का मूत्र भी पी लेते हैं।

5.🎁 अघोरी अमूमन आम दुनिया से कटे हुए होते हैं। वे अपने आप में मस्त रहने वाले, अधिकांश समय दिन में सोने और रात को श्मशान में साधना करने वाले होते हैं। वे आम लोगों से कोई संपर्क नहीं रखते। ना ही ज्यादा बातें करते हैं। वे अधिकांश समय अपना सिद्ध मंत्र ही जाप करते रहते हैं।

6.🎁 आज भी ऐसे अघोरी और तंत्र साधक हैं जो पराशक्तियों को अपने वश में कर सकते हैं। ये साधनाएं श्मशान में होती हैं और दुनिया में सिर्फ  चार श्मशान घाट ही ऐसे हैं जहां तंत्र क्रियाओं का परिणाम बहुत जल्दी मिलता है। ये हैं तारापीठ का श्मशान (पश्चिम बंगाल), कामाख्या पीठ (असम) काश्मशान, त्र्र्यम्बकेश्वर (नासिक) और उज्जैन (मध्य प्रदेश) का श्मशान।

🎁🎄 तारापीठ 🎄🎁

🎁यह मंदिर पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले में एक छोटा शहर है। यहां तारा देवी का मंदिर है। इस मंदिर में मां काली का एक रूप तारा मां की प्रतिमा स्थापित है। रामपुर हाट से तारापीठ की दूरी लगभग 6 किलोमीटर है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यहां पर देवी सती के नेत्र गिरे थे। इसलिए इस स्थान को नयन तारा भी कहा जाता है।

 

🎁तारापीठ मंदिर का प्रांगण श्मशान घाट के निकट स्थित है, इसे महाश्मशान घाट के नाम से जाना जाता है। इस महाश्मशान घाट में जलने वाली चिता की अग्नि कभी बुझती नहीं है। यहां आने पर लोगों को किसी प्रकार का भय नहीं लगता है। मंदिर के चारों ओर द्वारका नदी बहती है। इस श्मशान में दूर-दूर से साधक साधनाएं करने आते हैं।

🎁🎄 कामाख्या पीठ🎄🎁

 

🎁असम की राजधानी दिसपुर के पास गुवाहाटी से 8 किलोमीटर दूर कामाख्या मंदिर है। यह मंदिर एक पहाड़ी पर बना है व इसका तांत्रिक महत्व है। प्राचीन काल से सतयुगीन तीर्थ कामाख्या वर्तमान में तंत्र सिद्धि का सर्वोच्च स्थल है।

🎁पूर्वोत्तर के मुख्य द्वार कहे जाने वाले असम राज्य की राजधानी दिसपुर से 6 किलोमीटर की दूरी पर स्थित नीलांचल अथवा नीलशैल पर्वतमालाओं पर स्थित मां भगवती कामाख्या का सिद्ध शक्तिपीठ सती के इक्यावन शक्तिपीठों में सर्वोच्च स्थान रखता है। यहीं भगवती की महामुद्रा (योनि-कुण्ड) स्थित है। यह स्थान तांत्रिकों के लिए स्वर्ग के समान है। यहां स्थित श्मशान में भारत के विभिन्न स्थानों से तांत्रिक तंत्र सिद्धि प्राप्त करने आते हैं।

🎁🎄नासिक🎄🎁

🎁त्र्र्यम्बकेश्वर ज्योतिर्लिंग मन्दिर महाराष्ट्र के नासिक जिले में है। यहां के ब्रह्म गिरि पर्वत से गोदावरी नदी का उद्गम है। मंदिर के अंदर एक छोटे से गड्ढे में तीन छोटे-छोटे लिंग है, ब्रह्मा, विष्णु और शिव- इन तीनों देवों के प्रतीक माने जाते हैं। ब्रह्मगिरि पर्वत के ऊपर जाने के लिये सात सौ सीढिय़ां बनी हुई हैं।

🎁इन सीढिय़ों पर चढऩे के बाद रामकुण्ड और लक्ष्मण कुण्ड मिलते हैं और शिखर के ऊपर पहुँचने पर गोमुख से निकलती हुई भगवती गोदावरी के दर्शन होते हैं। भगवान शिव को तंत्र शास्त्र का देवता माना जाता है। तंत्र और अघोरवाद के जन्मदाता भगवान शिव ही हैं। यहां स्थित श्मशान भी तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध है।

🎁🎄 उज्जैन🎄🎁

🎁महाकालेश्वर मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश के उज्जैन जिले में है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यन्त पुण्यदायी माना जाता है।

🎁इस कारण तंत्र शास्त्र में भी शिव के इस शहर को बहुत जल्दी फल देने वाला माना गया है। यहां के श्मशान में दूर-दूर से साधक तंत्र क्रिया करने आते हैं।