मस्सों की सरल घरेलु आयुर्वेदिक चिकित्सा

मस्सों की सरल घरेलु आयुर्वेदिक चिकित्सा
मस्सों को दुर करने के लिये अपनाएँ और शेयर कर के सबको बताएं
ये कारगर घरेलू नुस्खे।
मस्से सुंदरता पर दाग की तरह दिखाई देते हैं। मस्से होने का मुख्य
कारण पेपीलोमा वायरस है। त्वचा पर पेपीलोमा वायरस के आ
जाने से छोटे, खुरदुरे कठोर पिंड बन जाते हैं, जिन्हें मस्सा कहा
जाता है। पहले मस्से की समस्या अधेड़ उम्र के लोगों में अधिक
होती थी, लेकिन आजकल युवाओं में भी यह समस्या होने लगी
है। यदि आप भी मस्सों से परेशान हैं तो इनसे राहत पाने के लिए
कुछ घरेलू उपायों को अपना सकते हैं। आइए, जानते हैं कुछ ऐसे ही
घरेलू नुस्खों के बारे में…..
1⇒ बेकिंग सोडा और अरंडी तेल को बराबर मात्रा में मिलाकर
इस्तेमाल करने से मस्से धीरे-धीरे खत्म हो जाते हैं।
2⇒ बरगद के पत्तों का रस मस्सों के उपचार के लिए बहुत ही
असरदार होता है। इसके रस को त्वचा पर लगाने से त्वचा सौम्य
हो जाती है और मस्से अपने-आप गिर जाते हैं।
3⇒ ताजा अंजीर मसलकर इसकी कुछ मात्रा मस्से पर लगाएं।
30 मिनट तक लगा रहने दें। फिर गुनगुने पानी से धो लें। मस्से खत्म
हो जाएंगे।
4⇒ खट्टे सेब का जूस निकाल लीजिए। दिन में कम से कम तीन
बार मस्से पर लगाइए। मस्से धीरे-धीरे झड़ जाएंगे।
5⇒ चेहरे को अच्छी तरह धोएं और कॉटन को सिरके में भिगोकर
तिल-मस्सों पर लगाएं। दस मिनट बाद गर्म पानी से फेस धो लें।
कुछ दिनों में मस्से गायब हो जाएंगे।
6⇒ आलू को छीलकर उसकी फांक को मस्सों पर लगाने से मस्से
गायब हो जाते हैं।
7⇒ कच्चा लहसुन मस्सों पर लगाकर उस पर पट्टी बांधकर एक
सप्ताह तक रहने दें। एक सप्ताह बाद पट्टी खोलने पर आप पाएंगे
कि मस्से गायब हो गए हैं।
8⇒ मस्सों से जल्दी निजात पाने के लिए आप एलोवेरा के जैल
का भी उपयोग कर सकते हैं।
9⇒ हरे धनिए को पीसकर उसका पेस्ट बना लें और इसे रोजाना
मस्सों पर लगाएं।
10⇒ ताजे मौसमी का रस मस्से पर लगाएं। ऐसा दिन में लगभग 3
या 4 बार करें। मस्से गायब हो जाएंगे।
11⇒ केले के छिलके को अंदर की तरफ से मस्से पर रखकर उसे एक
पट्टी से बांध लें। ऐसा दिन में दो बार करें और लगातार करते रहें,
जब तक कि मस्से खत्म नहीं हो जाते।
12⇒ मस्सों पर नियमित रूप से प्याज मलने से भी मस्से गायब हो
जाते हैं।
13⇒ फ्लॉस या धागे से मस्से को बांधकर दो से तीन सप्ताह
तक छोड़ दें। इससे मस्से में रक्त प्रवाह रुक जाएगा और वह खुद ही
निकल जाएगा।
14⇒ अरंडी का तेल नियमित रूप से मस्सों पर लगाएं। इससे मस्से
नरम पड़ जाएंगे और धीरे-धीरे गायब हो जाएंगे।
15⇒ अरंडी के तेल की जगह कपूर के तेल का भी उपयोग कर सकते
है ।

लूट मचाने के लिए दवा कंपनियाँ किस हद तक गिर सकती आप अनुमान भी नहीं लगा सकते ,

लूट मचाने के लिए दवा कंपनियाँ किस हद तक गिर सकती आप अनुमान भी नहीं लगा सकते ,

अभी कुछ समय पूर्व स्पेन मे शुगर की दवा बेचने वाली बड़ी-बड़ी
कंपनियो की एक बैठक हुई है ,दवाओ की बिक्री बढ़ाने के लिए
एक सुझाव दिया गया है कि अगर शरीर मे सामान्य शुगर का
मानक 120 से कम कर 100 कर दिया जाये तो शुगर की दवाओं
की बिक्री 40 % तक बढ़ जाएगी ।

आपकी जानकारी के लिए बता दूँ बहुत समय पूर्व शरीर मे सामान्य
शुगर का मानक 160 था दवाओ की बिक्री बढ़ाने के लिए ही
इसे कम करते-करते 120 तक लाया गया है जिसे भविष्य मे 100
तक करने की संभावना है । ये एलोपेथी दवा कंपनियाँ लूटने के लिए
किस स्तर तक गिर सकती है ये इसका जीता जागता उदाहरण है ।

आज मैडीकल साईंस के अनुसार शरीर मे सामान्य शुगर का मानक 80 से 120 है अब मान लो दवा कंपनियो के साथ मिलीभगत कर इन्होने कुछ फर्जी शोध की आड़ मे नया मानक 70 से 100 तय कर दिया, अब अच्छा भला व्यक्ति शुगर टेस्ट करवाये और शुगर का सतर 100 से 110 के बीच आए ,तो डाक्टर आपको शुगर का रोगी घोषित कर देगा,

भय के कारण आप शुगर की एलोपेथी दवाएं लेना शुरू कर देंगे , अब शुगर तो पहले से सामान्य थी आपने जो भय के कारण शुगर कम करने की दवा ली तो उल्टा शरीर मे और कमजोरी महसूस होने लगेगी , और आप फिर इस अंधी खाई मे गिरते चले जाएंगे । और मान लो आप जैसे 2 -3 करोड़ लोग भी इस
साजिश का शिकार हुए तो ये एलोपेथी दवा कंपनियाँ लाखो करोड़ का व्यापार कर डालेंगी ।

रस्सी कूदना – एक अच्छा व्यायाम

रस्सी कूदना – एक अच्छा व्यायाम
हम दैनिक जीवन में छोटे-मोटे व्यायाम को नज़र अंदाज़ करते हैं और बड़े-बड़े व्यायाम और योग करने के लिए समय के अभाव का बहाना बनाते हैं किन्तु जो लोग अपने शरीर को ठीक रखना चाहते हैं वो छोटे-मोटे व्यायाम को भी महत्त्व देते हैं. इन्ही में से एक छोटा लेकिन अच्छा व्यायाम है ‘रस्सी कूदना’. अगर प्रातःकाल प्रति दिन पांच से दस मिनट भी आप रस्सी कूदते हैं तो आपको स्वास्थय लाभ ज़रूर मिलेगा. रस्सी कूदने से ह्रदय सम्बन्धी रोग नहीं होते हैं, कैलोरी घटता है जिससे कि मोटापा नहीं बढ़ता है, पैर की मांसपेशियां और हड्डी मज़बूत होती हैं और पैरों की संतुलन शक्ति बढती है. रस्सी कूदने के लिए आपको सिर्फ एक पतली लेकिन मज़बूत रस्सी तथा एक खुले क्षेत्र की जरूरत होती है.

जायफल के उपयोग

जायफल के उपयोग
सुबह-सुबह खाली पेट आधा चम्मच जायफल चाटने से गैस्ट्रिक, सर्दी-खांसी की समस्या नहीं सताती है। पेट में दर्द होने पर चार से पांच बूंद जायफल का तेल चीनी के साथ लेने से आराम मिलता है।
– सर में बहुत तेज दर्द हो रहा हो तो बस जायफल को पानी में घिस कर लगाएं।
– सर्दी के मौसम के दुष्प्रभाव से बचने के लिए जायफल को थोड़ा सा खुरचिये, चुटकी भर कतरन को मुंह में रखकर चूसते रहिये। यह काम आप पूरे जाड़े भर एक या दो दिन के अंतराल पर करते रहिये। यह शरीर की स्वाभाविक गरमी की रक्षा करता है, इसलिए ठंड के मौसम में इसे जरूर प्रयोग करना चाहिए।
– आपको किन्हीं कारणों से भूख न लग रही हो तो चुटकी भर जायफल की कतरन चूसिये इससे पाचक रसों की वृद्धि होगी और भूख बढ़ेगी, भोजन भी अच्छे तरीके से पचेगा।
– दस्त आ रहे हों या पेट दर्द कर रहा हो तो जायफल को भून लीजिये और उसके चार हिस्से कर लीजिये एक हिस्सा मरीज को चूस कर खाने को कह दीजिये। सुबह शाम एक-एक हिस्सा खिलाएं।
– फालिज का प्रकोप जिन अंगों पर हो उन अंगों पर जायफल को पानी में घिसकर रोज लेप करना चाहिए, दो माह तक ऐसा करने से अंगों में जान आ जाने की संभावना देखी गयी है।
– प्रसव के बाद अगर कमर दर्द नहीं ख़त्म हो रहा है तो जायफल पानी में घिसकर कमर पे सुबह शाम लगाएं, एक सप्ताह में ही दर्द गायब हो जाएगा।
– फटी एडियों के लिए इसे महीन पीसकर बीवाइयों में भर दीजिये। 12-15 दिन में ही पैर भर जायेंगे।
– जायफल के चूर्ण को शहद के साथ खाने से ह्रदय मज़बूत होता है। पेट भी ठीक रहता है।
– अगर कान के पीछे कुछ ऎसी गांठ बन गयी हो जो छूने पर दर्द करती हो तो जायफल को पीस कर वहां लेप कीजिए जब तक गाठ ख़त्म न हो जाए, करते रहिये।
– अगर हैजे के रोगी को बार-बार प्यास लग रही है, तो जायफल को पानी में घिसकर उसे पिला दीजिये।
– जी मिचलाने की बीमारी भी जायफल को थोड़ा सा घिस कर पानी में मिला कर पीने से नष्ट हो जाती है।
– इसे थोडा सा घिसकर काजल की तरह आँख में लगाने से आँखों की ज्योति बढ़ जाती है और आँख की खुजली और धुंधलापन ख़त्म हो जाता है।
– यह शक्ति भी बढाता है।
– जायफल आवाज में सम्मोहन भी पैदा करता है।
– जायफल और काली मिर्च और लाल चन्दन को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चेहरे पर लगाने से चेहरे की चमक बढ़ती है, मुहांसे ख़त्म होते हैं।
– किसी को अगर बार-बार पेशाब जाना पड़ता है तो उसे जायफल और सफ़ेद मूसली 2-2 ग्राम की मात्र में मिलाकर पानी से निगलवा दीजिये, दिन में एक बार, खाली पेट, 10 दिन लगातार।
– बच्चों को सर्दी-जुकाम हो जाए तो जायफल का चूर्ण और सोंठ का चूर्ण बराबर मात्रा में लीजिये फिर 3 चुटकी इस मिश्रण को गाय के घी में मिलाकर बच्चे को सुबह शाम चटायें।
– चेहरे पर या फिर त्वचा पर पड़ी झाईयों को हटाने के लिए आपको जायफल को पानी के साथ पत्थर पर घिसना चाहिए। घिसने के बाद इसका लेप बना लें और इस लेप का झाईयों की जगह पर इस्तेमाल करें, इससे आपकी त्वचा में निखार भी आएगा और झाईयों से भी निजात मिलेगी।
– चेहरे की झुर्रियां मिटाने के लिए आप जायफल को पीस कर उसका लेप बनाकर झुर्रियों पर एक महीने तक लगाएंगे तो आपको जल्द ही झुर्रियों से निजात मिलेगी।
– आंखों के नीचे काले घेरे हटाने के लिए रात को सोते समय रोजाना जायफल का लेप लगाएं और सूखने पर इसे धो लें। कुछ समय बाद काले घेरे हट जाएंगे।
– अनिंद्रा का स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है और इसका त्वचा पर भी दुष्प्रभाव पड़ता है। त्वचा को तरोताजा रखने के लिए भी जायफल का इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके लिए आपको रोजाना जायफल का लेप अपनी त्वचा पर लगाना होगा। इससे अनिंद्रा की शिकायत भी दूर होगी और त्वचा भी तरोजाता रहेगी।
– कई बार त्वचा पर कुछ चोट के निशान रह जाते हैं तो कई बार त्वचा पर नील और इसी तरह के घाव पड़ जाते हैं। जायफल में सरसों का तेल मिलाकर मालिश करें। जहां भी आपकी त्वचा पर पुराने निशान हैं रोजाना मालिश से कुछ ही समय में वे हल्के होने लगेंगे। जायफल से मालिश से रक्त का संचार भी होगा और शरीर में चुस्ती-फुर्ती भी बनी रहेगी।
– जायफल के लेप के बजाय जायफल के तेल का भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
– दांत में दर्द होने पर जायफल का तेल रुई पर लगाकर दर्द वाले दांत या दाढ़ पर रखें, दर्द तुरंत ठीक हो जाएगा। अगर दांत में कीड़े लगे हैं तो वे भी मर जाएंगे।
– पेट में दर्द हो तो जायफल के तेल की 2-3 बूंदें एक बताशे में टपकाएं और खा लें। जल्द ही आराम आ जाएगा।
– जायफल को पानी में पकाकर उस पानी से गरारे करें। मुंह के छाले ठीक होंगे, गले की सूजन भी जाती रहेगी।
– जायफल को कच्चे दूध में घिसकर चेहरें पर सुबह और रात में लगाएं। मुंहासे ठीक हो जाएंगे और चेहरे निखारेगा।
– एक चुटकी जायफल पाउडर दूध में मिला कर लेने से सर्दी का असर ठीक हो जाता है। इसे सर्दी में प्रयोग करने से सर्दी नहीं लगती।
– सरसों का तेल और जायफल का तेल 4:1 की मात्रा में मिलाकर रख लें। इस तेल से दिन में 2-3 बार शरीर की मालिश करें। जोड़ों का दर्द, सूजन, मोच आदि में राहत मिलेगी। इसकी मालिश से शरीर में गर्मी आती है, चुस्ती फुर्ती आती है और पसीने के रूप में विकार निकल जाता है।
– जायफल, सौंठ और जीरे को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण को भोजन करने से पहले पानी के साथ लें। गैस और अफारा की परेशानी नहीं होगी।
– दस जायफल लेकर देशी घी में अच्छी तरह सेंक लें। उसे पीसकर छान लें। अब इसमें दो कप गेहूं का आटा मिलाकर घी में फिर सेकें। इसमें शक्कर मिलाकर रख लें। रोजाना सुबह खाली पेट इस मिश्रण को एक चम्मच खाएं, बवासीर से छुटकारा मिल जाएगा।
– नीबू के रस में जायफल घिसकर सुबह-शाम भोजन के बाद सेवन करने से गैस और कब्ज की तकलीफ दूर होती है।
– दूध पाचन : शिशु का दूध छुड़ाकर ऊपर का दूध पिलाने पर यदि दूध पचता न हो तो दूध में आधा पानी मिलाकर, इसमें एक जायफल डालकर उबालें। इस दूध को थोडा ठण्डा करके कुनकुना गर्म, चम्मच कटोरी से शिशु को पिलाएँ, यह दूध शिशु को हजम हो जाएगा।

भोजन में मीठा जहर

भोजन में मीठा जहर

देश की एक बड़ी आबादी धीमा जहर खाने को मजबूर है, क्योंकि उसके पास इसके अलावा कोई दूसरा चारा नहीं है। हम बात कर रहे हैं भोजन के साथ लिए जा रहे उस धीमे जहर की, जो सिंचाई जल और कीटनाशकों के जरिए अनाज, सब्जियों और फलों में शामिल हो चुका है। देश के उत्तर-पूर्वी राज्यों में आर्सेनिक सिंचाई जल के माध्यम से फसलों को जहरीला बना रहा है। यहां भू-जल से सिंचित खेतों में पैदा होने वाले धान में आर्सेनिक की इतनी मात्रा पाई गई है, जो मानव शरीर को नुकसान पहुंचाने के लिए काफी है। इतना ही नहीं, देश में नदियों के किनारे उगाई जाने वाली फसलों में भी जहरीले रसायन पाए गए हैं। यह किसी से छुपा नहीं है कि हमारे देश की नदियां कितनी प्रदूषित हैं। कारखानों से निकलने वाले कचरे और शहरों की गंदगी को नदियों में बहा दिया जाता है, जिससे इनका पानी अत्यंत प्रदूषित हो गया है। इसी दूषित पानी से सींचे गए खेतों की फसलें कैसी होंगी, सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है।

दूर जाने की जरूरत नहीं, देश की राजधानी दिल्ली में यमुना की ही हालत देखिए। जिस देश में नदियों को मां या देवी कहकर पूजा जाता है, वहीं यह एक गंदे नाले में तब्दील हो चुकी है। कारखानों के रासायनिक कचरे ने इसे जहरीला बना दिया है। नदी के किनारे सब्जियां उगाई जाती हैं, जिनमें काफी मात्रा में विषैले तत्व पाए गए हैं। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चर रिसर्च की एक रिपोर्ट के मुताबिक, नदियों के किनारे उगाई गई फसलों में से 50 फीसदी में विषैले तत्व पाए जाने की आशंका रहती है। इसके अलावा कीटनाशकों और रसायनों के अंधाधुंध इस्तेमाल ने भी फसलों को जहरीला बना दिया है। अनाज ही नहीं, दलहन, फल और सब्जियों में भी रसायनों के विषैले तत्व पाए गए हैं, जो स्वास्थ्य के लिए बेहद हानिकारक हैं। इसके बावजूद अधिक उत्पादन के लालच में डीडीटी जैसे प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है। अकेले हरियाणा की कृषि भूमि हर साल एक हजार करोड़ रुपये से ज्यादा के कीटनाशक निगल जाती है। पेस्टिसाइड्‌स ऐसे रसायन हैं, जिनका इस्तेमाल अधिक उत्पादन और फसलों को कीटों से बचाने के लिए किया जाता है।

इनका इस्तेमाल कृषि वैज्ञानिकों की सिफारिश के मुताबिक सही मात्रा में किया जाए तो फायदा होता है, लेकिन जरूरत से ज्यादा प्रयोग से भूमि की उर्वरा शक्ति खत्म होने लगती है और इससे इंसानों के अलावा पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचता है। चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों ने कीटनाशकों के अत्यधिक इस्तेमाल से कृषि भूमि पर होने वाले असर को जांचने के लिए मिट्टी के 50 नमूने लिए। ये नमूने उन इलाकों से लिए गए थे, जहां कपास की फसल उगाई गई थी और उन पर कीटनाशकों का कई बार छिड़काव किया गया था। इसके साथ ही उन इलाकों के भी नमूने लिए गए, जहां कपास उगाई गई थी, लेकिन वहां कीटनाशकों का छिड़काव नहीं किया गया था। कीटनाशकों के छिड़काव वाले कपास के खेत की मिट्टी में छह प्रकार के कीटनाशकों के तत्व पाए गए, जिनमें मेटासिस्टोक्स, एंडोसल्फान, साइपरमैथरीन, क्लोरो पाइरीफास, क्वीनलफास और ट्राइजोफास शामिल हैं। मिट्टी में इन कीटनाशकों की मात्रा 0.01 से 0.1 पीपीएम पाई गई। इन कीटनाशकों का इस्तेमाल कपास को विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों से बचाने के लिए किया जाता है। कीटनाशकों की लगातार बढ़ती खपत से कृषि वैज्ञानिक भी हैरान और चिंतित हैं।

कीटनाशकों से जल प्रदूषण भी बढ़ रहा है। प्रदूषित जल से फल और सब्जियों का उत्पादन तो बढ़ जाता है, लेकिन इनके हानिकारक तत्व फलों और सब्जियों में समा जाते हैं। सब्जियों में पाए जाने वाले कीटनाशकों और धातुओं पर भी कई शोध किए गए हैं। एक शोध के मुताबिक, सब्जियों में जहां एंडोसल्फान, एचसीएच एवं एल्ड्रिन जैसे कीटनाशक मौजूद हैं, वहीं केडमियम, सीसा, कॉपर और क्रोमियम जैसी खतरनाक धातुएं भी शामिल हैं। ये कीटनाशक और धातुएं शरीर को बहुत नुकसान पहुंचाती हैं। सब्जियां तो पाचन तंत्र के जरिए हजम हो जाती हैं, लेकिन कीटनाशक और धातुएं शरीर के संवेदनशील अंगों में एकत्र होते रहते हैं। यही आगे चलकर गंभीर बीमारियों की वजह बनती हैं। इस प्रकार के जहरीले तत्व आलू, पालक, फूल गोभी, बैंगन और टमाटर में बहुतायत में पाए गए हैं। पत्ता गोभी के 27 नमूनों का परीक्षण किया गया, जिनमें 51.85 फीसदी कीटनाशक पाया गया। इसी तरह टमाटर के 28 नमूनों में से 46.43 फीसदी में कीटनाशक मिला, जबकि भिंडी के 25 नमूनों में से 32 फीसदी, आलू के 17 में से 23.53 फीसदी, पत्ता गोभी के 39 में से 28, बैंगन के 46 में से 50 फीसदी नमूनों में कीटनाशक पाया गया।

फसलों में कीटनाशकों के इस्तेमाल की एक निश्चित मात्रा तय कर देनी चाहिए, जो स्वास्थ्य पर विपरीत असर न डालती हो। मगर सवाल यह भी है कि क्या किसान इस पर अमल करेंगे। 2005 में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने केंद्रीय प्रदूषण निगरानी प्रयोगशाला के साथ मिलकर एक अध्ययन किया था। इसकी रिपोर्ट के मुताबिक, अमेरिकी स्टैंडर्ड (सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन) के मुकाबले पंजाब में उगाई गई फसलों में कीटनाशकों की मात्रा 15 से लेकर 605 गुना ज्यादा पाई गई। कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मिट्टी में कीटनाशकों के अवशेषों का होना भविष्य में घातक सिद्ध होगा, क्योंकि मिट्टी के जहरीला होने से सर्वाधिक असर केंचुओं की तादाद पर पड़ेगा। इससे भूमि की उर्वरा शक्ति क्षीण होगी और फसलों की उत्पादकता भी प्रभावित होगी। मिट्टी में कीटनाशकों के इन अवशेषों का सीधा असर फसलों की उत्पादकता पर पड़ेगा और साथ ही जैविक प्रक्रियाओं पर भी। उन्होंने बताया कि यूरिया खाद को पौधे सीधे तौर पर अवशोषित कर सकते हैं। इसके लिए यूरिया को नाइट्रेट में बदलने का कार्य विशेष प्रकार के बैक्टीरिया द्वारा किया जाता है।

अगर भूमि जहरीली हो गई तो बैक्टीरिया की तादाद प्रभावित होगी। स्वास्थ्य विशेषज्ञों का कहना है कि रसायन अनाज, दलहन और फल-सब्जियों के साथ मानव शरीर में प्रवेश कर रहे हैं। फलों और सब्जियों को अच्छी तरह से धोने से उनका ऊपरी आवरण तो स्वच्छ कर लिया जाता है, लेकिन उनमें मौजूद विषैले तत्वों को भोजन से दूर करने का कोई तरीका नहीं है। इसी धीमे जहर से लोग कैंसर, एलर्जी, हृदय, पेट, शुगर, रक्त विकार और आंखों की बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। इतना ही नहीं, पशुओं को लगाए जाने वाले ऑक्सीटॉक्सिन के इंजेक्शन से दूध भी जहरीला होता जा रहा है। अब तो यह इंजेक्शन फल और सब्जियों के पौधों और बेलों में भी धड़ल्ले से लगाया जा रहा है। ऑक्सीटॉक्सिन के तत्व वाले दूध, फल और सब्जियों से पुरुषों में नपुंसकता और महिलाओं में बांझपन जैसी बीमारियां बढ़ रही हैं।

भारत में कुल 40 हजार कीटों की पहचान की गई है, जिनमें से एक हजार कीट फसलों के लिए फायदेमंद हैं, 50 कीट कभी कभार ही गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि 70 कीट ऐसे हैं, जो फसलों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों के नुकसान को देखते हुए कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी हो जाता है। देश में जुलाई से नवंबर के दौरान 70 फीसदी कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है,

हालांकि देश में कीटनाशक की सीमा यानी मैक्सिमम ऐजिड्यू लिमिट के बारे में मानक बनाने और उनके पालन की जिम्मेदारी तय करने से संबंधित एक संयुक्त संसदीय समिति का गठन किया जा चुका है, लेकिन इसके बावजूद फसलों को जहरीले रसायनों से बचाने के लिए कोई खास कोशिश नहीं की जाती। रसायन और उर्वरक राज्यमंत्री श्रीकांत कुमार जेना के मुताबिक, अगर कीटनाशी अधिनियम, 1968 की धारा 5 के अधीन गठित पंजीकरण समिति द्वारा अनुमोदित दवाएं प्रयोग में लाई जाती हैं तो वे खाद्य सुरक्षा के लिए कोई खतरा पैदा नहीं करती हैं। कीटनाशकों का पंजीकरण उत्पादों की जैव प्रभाविकता, रसायन एवं मानव जाति के लिए सुरक्षा आदि के संबंध में दिए गए दिशा-निर्देशों के अनुरूप वृहद आंकड़ों के मूल्यांकन के बाद किया जाता है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार स्वीकार कर चुके हैं कि कई देशों में प्रतिबंधित 67 कीटनाशकों की भारत में बिक्री होती है और इनका इस्तेमाल मुख्य रूप से फसलों के लिए होता है। उन्होंने बताया कि कैल्शियम सायनायड समेत 27 कीटनाशकों के भारत में उत्पादन, आयात और इस्तेमाल पर पाबंदी है।

निकोटिन सल्फेट और केप्टाफोल का भारत में इस्तेमाल तो प्रतिबंधित है, लेकिन उत्पादकों को निर्यात के लिए उत्पादन करने की अनुमति है। चार किस्मों के कीटनाशकों का आयात, उत्पादन और इस्तेमाल बंद है, जबकि सात कीटनाशकों को बाजार से हटाया गया है। इंडोसल्फान समेत 13 कीटनाशकों के इस्तेमाल की अनुमति तो है, लेकिन कई पाबंदियां भी लगी हैं। गौरतलब है कि भारत में क्लोरडैन, एंड्रिन, हेप्टाक्लोर और इथाइल पैराथीओन पर प्रतिबंध है। कीटनाशकों के उत्पादन में भारत एशिया में दूसरे और विश्व में 12वें स्थान पर है। देश में 2006-07 के दौरान 74 अरब रुपये कीमत के कीटनाशकों का उत्पादन हुआ। इनमें से करीब 29 अरब रुपये के कीटनाशकों का निर्यात किया गया। खास बात यह भी है कि भारत डीडीटी और बीएचसी जैसे कई देशों में प्रतिबंधित कीटनाशकों का सबसे बड़ा उत्पादक भी है। यहां भी इनका खूब इस्तेमाल किया जाता है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, डेल्टिरन, ईपीएन और फास्वेल आदि कीटनाशक बेहद जहरीले और नुकसानदेह हैं। पिछले दिनों दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी में बिक रही सब्जियों में प्रतिबंधित कीटनाशकों के प्रयोग को लेकर सरकार को फलों और सब्जियों की जांच करने का आदेश दिया है। अदालत ने केंद्र और राज्य सरकार से कहा कि शहर में बिक रही सब्जियों की जांच अधिकृत प्रयोगशालाओं में कराई जाए। मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा ने अपने आदेश में कहा कि हम जांच के जरिए यह जानना चाहते हैं कि सब्जियों में कीटनाशकों का इस्तेमाल किस मात्रा में हो रहा है और ये सब्जियां बेचने लायक हैं या नहीं। अदालत ने यह भी कहा कि यह जांच इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट की प्रयोगशाला या दूसरी प्रयोगशालाओं में की जाए।

ये प्रयोगशालाएं नेशनल एक्रेडेशन बोर्ड फोर टेस्टिंग से अधिकृत होनी चाहिए। यह आदेश कोर्ट ने कंज्यूमर वॉयस की उस रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए दिया है, जिसमें कहा गया है कि भारत में फलों और सब्जियों में कीटनाशकों की मात्रा यूरोपीय मानकों के मुकाबले 750 गुना ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लोरडैन के इस्तेमाल से आदमी नपुंसक हो सकता है। इसके अलावा इससे खून की कमी और ब्लड कैंसर जैसी बीमारी भी हो सकती है। यह बच्चों में कैंसर का सबब बन सकता है। एंड्रिन के इस्तेमाल से सिरदर्द, सुस्ती और उल्टी जैसी शिकायतें हो सकती हैं। हेप्टाक्लोर से लीवर खराब हो सकता है और इससे प्रजनन क्षमता पर विपरीत असर पड़ सकता है। इसी तरह इथाइल और पैराथीओन से पेट दर्द, उल्टी और डायरिया की शिकायत हो सकती है।

केयर रेटिंग की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कीटनाशकों के समुचित प्रयोग से उत्पादकता में सुधार आ सकता है। इससे खाद्य सुरक्षा में भी मदद मिलेगी। देश में हर साल कीटों के कारण करीब 18 फीसदी फसल बर्बाद हो जाती है यानी इससे हर साल करीब 90 हजार करोड़ रुपये की फसल को नुकसान पहुंचता है। भारत में कुल 40 हजार कीटों की पहचान की गई है, जिनमें से एक हजार कीट फसलों के लिए फायदेमंद हैं, 50 कीट कभी कभार ही गंभीर नुकसान पहुंचाते हैं, जबकि 70 कीट ऐसे हैं, जो फसलों के लिए बेहद नुकसानदेह हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि फसलों के नुकसान को देखते हुए कीटनाशकों का इस्तेमाल जरूरी हो जाता है। देश में जुलाई से नवंबर के दौरान 70 फीसदी कीटनाशकों का इस्तेमाल किया जाता है, क्योंकि इन दिनों फसलों को कीटों से ज्यादा खतरा होता है। भारतीय खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों का अवशेष 20 फीसदी है, जबकि विश्व स्तर पर यह 2 फीसदी तक होता है। इसके अलावा देश में सिर्फ 49 फीसदी खाद्य उत्पाद ऐसे हैं, जिनमें कीटनाशकों के अवशेष नहीं मिलते, जबकि वैश्विक औसत 80 फीसदी है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि भारत में कीटनाशकों के इस्तेमाल के तरीके और मात्रा के बारे में जागरूकता की कमी है।

गौर करने लायक बात यह भी है कि पिछले तीन दशकों से कीटनाशकों के इस्तेमाल को लेकर समीक्षा तक नहीं की गई। बाजार में प्रतिबंधित कीटनाशकों की बिक्री भी बदस्तूर जारी है। हालांकि केंद्र एवं राज्य सरकारें कीटनाशकों के सुरक्षित इस्तेमाल के लिए किसानों को प्रशिक्षण प्रदान करती हैं। किसानों को अनुशंसित मात्रा में कीटनाशकों की पंजीकृत गुणवत्ता के प्रयोग, अपेक्षित सावधानियां बरतने और निर्देशों का पालन करने की सलाह दी जाती है। यह सच है कि मौजूदा दौर में कीटनाशकों पर पूरी तरह पाबंदी लगाना मुमकिन नहीं, लेकिन इतना जरूर है कि इनका इस्तेमाल सही समय पर और सही मात्रा में किया जाए।

हरसिंगार ~ हर बीमारी में असरदार …. !!! नारंगी डंडी वाले सफेद खूबसूरत – महकते फूलों को आपने जरूर देखा होगा ! लेकिन क्या आपने कभी हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पी है … ? इसके फूल – बीज – छाल का प्रयोग स्वास्थ्य – सौंदर्य उपचार के लिए क्या है ..? हरसिंगार के चमत्कारी औषधीय गुण … ! हरसिंगार के फूलों से लेकर पत्त‍ियां – छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं ! इसकी चाय न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है – सेहत के गुणों से भी भरपूर है ! इस चाय को आप अलग – अलग तरीकों से बना सकते हैं और सेहत व सौंदर्य के कई फायदे पा सकते हैं ! विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इसके लाभ और चाय बनाने का तरीका ! # वि‍धि 1 :- हरसिंगार की चाय बनाने के लिए इसकी दो पत्तियां और एक फूल के साथ तुलसी की कुछ पत्त‍ियां लीजिए और इन्हें 1 गिलास पानी में उबालें ! जब यह अच्छी तरह से उबल जाए तो इसे छानकर गुनगुना या ठंडा करके पी लें ! आप चाहें तो स्वाद के लिए शहद या मिश्री भी डाल सकते हैं ! यह खांसी में फायदेमंद है ! # वि‍धि 2 :- हरसिंगार के दो पत्ते और चार फूलों को पांच से 6 कप पानी में उबालकर – 5 कप चाय आसानी से बनाई जा सकती है ! इसमें दूध का इस्तेमाल नहीं होता – यह स्फूर्तिदायक होती है ! $ चाय के अलावा भी हरसिंगार के वृक्ष के कई औषधीय लाभ हैं !!! कौन – कौन सी बीमारियों में कैसे करें इसका इस्तेमाल … ? * जोड़ों में दर्द :- हरसिंगार के 6 से 7 पत्ते तोड़कर इन्हें पीस लें – पीसने के बाद इस पेस्ट को पानी में डालकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए ! अब इसे ठंडा करके प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिएं ! नियमित रूप से इसका सेवन करने से जोड़ों से संबंधित अन्य समस्याएं भी समाप्त हो जाएगी ! * खांसी :- खांसी हो या सूखी खांसी – हरसिंगार के पत्तों को पानी में उबालकर पीने से बिल्कुल खत्म की जा सकती है ! आप चाहें तो इसे सामान्य चाय में उबालकर पी सकते हैं या फिर पीसकर शहद के साथ भी प्रयोग कर सकते हैं ! * बुखार :- किसी भी प्रकार के बुखार में हरसिंगार की पत्तियों की चाय पीना बेहद लाभप्रद होता है ! डेंगू से लेकर मलेरिया या फिर चिकनगुनिया तक – हर तरह के बुखार को खत्म करने की क्षमता इसमें होती है ! * साइटिका :- दो कप पानी में हरसिंगार के लगभग 8 से 10 पत्तों को धीमी आंच पर उबालें और आधा रह जाने पर इसे अंच से उतार लें ! ठंडा हो जाने पर इसे सुबह शाम खाली पेट पिएं ! एक सप्ताह में आप फर्क महसूस करेंगे ! * बवासीर :- हरसिंगार को बवासीर या पाइल्स के लिए बेहद उपयोगी औषधि माना गया है ! इसके लिए हरसिंगार के बीज का सेवन या फिर उनका लेप बनाकर संबंधित स्थान पर लगाना फायदेमंद है ! * त्वचा के लिए :- हरसिंगार की पत्त‍ियों को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी समस्याएं खत्‍म होती हैं – इसके फूल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा उजला और चमकदार हो जाता है ! * हृदय रोग :- हृदय रोगों के लिए हरसिंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी है ! इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने में कारगर है ! * दर्द :- हाथ – पैरों व मांसपेशियों में दर्द व खिंचाव होने पर हरसिंगार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में अदरक का रस मिलाकर पीने से फायदा होता है ! * अस्थमा :- सांस संबंधी रोगों में हरसिंगार की छाल का चूर्ण बनाकर पान के पत्ते में डालकर खाने से लाभ होता है ! इसका प्रयोग सुबह और शाम को किया जा सकता है ! * प्रतिरोधक क्षमता :- हरसिंगार के पत्तों का रस या फिर इसकी चाय बनाकर नियमित रूप से पीने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर हर प्रकार के रोग से लड़ने में सक्षम होता है ! इसके अलावा पेट में कीड़े होना – गंजापन – स्त्री रोगों में भी बेहद फायदेमंद है !

हरसिंगार ~ हर बीमारी में असरदार …. !!!

नारंगी डंडी वाले सफेद खूबसूरत – महकते फूलों को आपने जरूर देखा होगा !

लेकिन क्या आपने कभी हरसिंगार की पत्तियों से बनी चाय पी है … ?

इसके फूल – बीज – छाल का प्रयोग स्वास्थ्य – सौंदर्य उपचार के लिए क्या है ..?

हरसिंगार के चमत्कारी औषधीय गुण … !

हरसिंगार के फूलों से लेकर पत्त‍ियां – छाल एवं बीज भी बेहद उपयोगी हैं !
इसकी चाय न केवल स्वाद में बेहतरीन होती है – सेहत के गुणों से भी भरपूर है !
इस चाय को आप अलग – अलग तरीकों से बना सकते हैं और सेहत व सौंदर्य के कई फायदे पा सकते हैं !
विभिन्न स्वास्थ्य समस्याओं के लिए इसके लाभ और चाय बनाने का तरीका !

# वि‍धि 1 :-
हरसिंगार की चाय बनाने के लिए इसकी दो पत्तियां और एक फूल के साथ तुलसी की कुछ पत्त‍ियां लीजिए और इन्हें 1 गिलास पानी में उबालें !
जब यह अच्छी तरह से उबल जाए तो इसे छानकर गुनगुना या ठंडा करके पी लें !
आप चाहें तो स्वाद के लिए शहद या मिश्री भी डाल सकते हैं !
यह खांसी में फायदेमंद है !

# वि‍धि 2 :-
हरसिंगार के दो पत्ते और चार फूलों को पांच से 6 कप पानी में उबालकर – 5 कप चाय आसानी से बनाई जा सकती है !
इसमें दूध का इस्तेमाल नहीं होता – यह स्फूर्तिदायक होती है !

$ चाय के अलावा भी हरसिंगार के वृक्ष के कई औषधीय लाभ हैं !!!
कौन – कौन सी बीमारियों में कैसे करें इसका इस्तेमाल … ?

* जोड़ों में दर्द :-
हरसिंगार के 6 से 7 पत्ते तोड़कर इन्हें पीस लें – पीसने के बाद इस पेस्ट को पानी में डालकर तब तक उबालें जब तक कि इसकी मात्रा आधी न हो जाए !
अब इसे ठंडा करके प्रतिदिन सुबह खाली पेट पिएं !
नियमित रूप से इसका सेवन करने से जोड़ों से संबंधित अन्य समस्याएं भी समाप्त हो जाएगी !

* खांसी :-
खांसी हो या सूखी खांसी – हरसिंगार के पत्तों को पानी में उबालकर पीने से बिल्कुल खत्म की जा सकती है !
आप चाहें तो इसे सामान्य चाय में उबालकर पी सकते हैं या फिर पीसकर शहद के साथ भी प्रयोग कर सकते हैं !

* बुखार :-
किसी भी प्रकार के बुखार में हरसिंगार की पत्तियों की चाय पीना बेहद लाभप्रद होता है !
डेंगू से लेकर मलेरिया या फिर चिकनगुनिया तक – हर तरह के बुखार को खत्म करने की क्षमता इसमें होती है !

* साइटिका :-
दो कप पानी में हरसिंगार के लगभग 8 से 10 पत्तों को धीमी आंच पर उबालें और आधा रह जाने पर इसे अंच से उतार लें !
ठंडा हो जाने पर इसे सुबह शाम खाली पेट पिएं !
एक सप्ताह में आप फर्क महसूस करेंगे !

* बवासीर :-
हरसिंगार को बवासीर या पाइल्स के लिए बेहद उपयोगी औषधि माना गया है !
इसके लिए हरसिंगार के बीज का सेवन या फिर उनका लेप बनाकर संबंधित स्थान पर लगाना फायदेमंद है !

* त्वचा के लिए :-
हरसिंगार की पत्त‍ियों को पीसकर लगाने से त्वचा संबंधी समस्याएं खत्‍म होती हैं
– इसके फूल का पेस्ट बनाकर चेहरे पर लगाने से चेहरा उजला और चमकदार हो जाता है !

* हृदय रोग :-
हृदय रोगों के लिए हरसिंगार का प्रयोग बेहद लाभकारी है !
इस के 15 से 20 फूलों या इसके रस का सेवन करना हृदय रोग से बचाने में कारगर है !

* दर्द :-
हाथ – पैरों व मांसपेशियों में दर्द व खिंचाव होने पर हरसिंगार के पत्तों के रस में बराबर मात्रा में अदरक का रस मिलाकर पीने से फायदा होता है !

* अस्थमा :-
सांस संबंधी रोगों में हरसिंगार की छाल का चूर्ण बनाकर पान के पत्ते में डालकर खाने से लाभ होता है !
इसका प्रयोग सुबह और शाम को किया जा सकता है !

* प्रतिरोधक क्षमता :-
हरसिंगार के पत्तों का रस या फिर इसकी चाय बनाकर नियमित रूप से पीने पर शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और शरीर हर प्रकार के रोग से लड़ने में सक्षम होता है !
इसके अलावा पेट में कीड़े होना – गंजापन – स्त्री रोगों में भी बेहद फायदेमंद है !

जब बाल झड़ रहे हों

जब बाल झड़ रहे हों

1. नीम का पेस्ट सिर में कुछ देर लगाए रखें। फिर बाल धो लें। बाल झड़ना बंद हो जाएगा।
2. बेसन मिला दूध या दही के घोल से बालों को धोएं। फायदा होगा।
3. दस मिनट का कच्चे पपीता का पेस्ट सिर में लगाएं। बाल नहीं झड़ेंगे और डेंड्रफ (रूसी) भी नहीं होगी।

कफ और सर्दी जुकाम में

सर्दी जुकाम, कफ आए दिन की समस्या है। आप ये घरेलू उपाय आजमाकर इनसे बचे रह सकते हैं।

1. नाक बह रही हो तो काली मिर्च, अदरक, तुलसी को शहद में मिलाकर दिन में तीन बार लें। नाक बहना रुक जाएगा।
2. गले में खराश या ड्राई कफ होने पर अदरक के पेस्ट में गुड़ और घी मिलाकर खाएं। आराम मिलेगा।
3. नहाते समय शरीर पर नमक रगड़ने से भी जुकाम या नाक बहना बंद हो जाता है।
4. तुलसी के साथ शहद हर दो घंटे में खाएं। कफ से छुटकारा मिलेगा।

शरीर, सांस की दुर्गध में

यह परेशानी भी आम है। कई बार तो हमें इसका भारी खामियाजा भुगतना पड़ जाता है।

1. नहाने से पहले शरीर पर बेसन और दही का पेस्ट लगाएं। इससे त्वचा साफ हो जाती है और बंद रोम छिद्र भी खुल जाते हैं।
2. गाजर का जूस रोज पिएं। तन की दुर्गध दूर भगाने में यह कारगर है।
3. पान के पत्ते और आंवला को बराबर मात्रा में पीसे। नहाने के पहले इसका पेस्ट लगाएं। फायदा होगा।
4. सांस की बदबू दूर करने के लिए रोज तुलसी के पत्ते चबाएं।
5. इलाइची और लौंग चूसने से भी सांस की बदबू से निजात मिलता है।

उच्च रक्त चाप

1- कुछ दिनों तक लगातार आधा चम्मच मैथी दाना का पॉउड़र पानी के साथ लेने से उच्च रक्त चाप में लाभ होता है।
2- तुलसी के पाँच पत्ते और नीम के दो पत्ते कुछ दिनों तक लेने से उच्च रक्त चाप मे लाभ होता है।

3- तांबे के बर्तन में रखा हुआ पानी पीने से उच्चरक्त चाप में लाभ होता है।

4-दो कली लहसुन की खाली पेट लेने से उच्च रक्त चाप में फायदा होता है।
5- लौकी का एक कप रस सुबह खाली पेट लेने से उच्च रक्त चाप कम होने में फायदा करता है।
6- प्रतिदिन एक चम्मच तुलसी के पत्तों का रस लेना सभी रोगों में लाभकारी होता है।

पैर में मोच आ जाय

1- आक या पान का पत्ता या आम का पत्ते को चिकना कर नमक लगा कर उस स्थान पर बांधने से काफी लाभ होता है।
2- चोट लगने पर नमक में काले तिल, सूखा नारियल और हल्दी मिला कर पीस कर गरम कर चोट वाले स्थान पर बांधने से आराम मिलता है।

घुटनों के दर्द के कुछ उपाय

1- सुबह खाली पेट तीन-चार अखरोट की गिरियां निकाल कर कुछ दिनों तक खाना चाहिए। इसके नियंत्रित सेवन से घुटनों के दर्द में आराम मिलता है। नारियल की गिरी भी खाई जा सकती है। इससे घुटनों के दर्द में राहत मिलती है।

अस्थमा की समस्या

1- तुलसी के पत्तों को अच्छी तरह से साफ कर उनमें पिसी काली मिर्च डालकर खाने के साथ देने से दमा नियंत्रण में रहता है।
2- गर्म पानी में अजवाइन डालकर स्टीम लेने से भी दमे को नियंत्रि‍त करने में राहत मिलती है।

किड़नी में पथरी की समस्या

तीन हल्की कच्ची भिंड़ी को पतली-पतली लम्बी-लम्बी काट लें। कांच के बर्तन में दो लीटर पानी में कटी हुई भिंड़ी ड़ाल कर रात भर के लिए रख दें। सुबह भिंड़ी को उसी पानी में निचोड़ कर भिंड़ी को निकाल लें। ये सारा पानी दो घंटों के अन्दर-अन्दर पी लें। इससे किड़नी की पथरी से छुटकारा मिलता है।

पेट में वायु की अधिकता

1- ऐसी समस्या से छुटकारा पाने के लिए भोजन के बाद 3-4 मोटी इलायची के दाने चबा कर ऊपर से नींबू पानी पीने से पेट हल्का होता है।

2- सुबह-शाम 1/4 चम्मच त्रिफला का चूर्ण गर्म पानी के साथ लेने से पेट नर्म होता है।

3- अजवायन और काला नमक को समान मात्रा में मिला कर गर्म पानी से पीने से पेट का अफारा ठीक होता है।

नाभि के अपने स्थान से खिसक जाने पर

1- मरीज़ को सीधा लिटाकर उसकी नाभि के चारों ओर सूखे आंवले का आटा बना कर उसमें अदरक का रस मिलाकर बांध दें और दो घंटों के लिए सीधा ही लेटे रहने दें। दो बार ऐसा करने से नाभि अपने स्थान पर आ जायेगी। दर्द और दस्त जैसे कष्ट भी दूर होंगे।
2- ऐसे समय में मरीज़ को मुंग की दाल वाली खिचड़ी खाने में देनी चाहिए।
3- अदरक और हींग का सेवन भी फायदा करता है।

दस्त की समस्या

1- खाना खाने के बाद एक कप लस्सी में एक चुटकी भुना ज़ीरा और काला नमक ड़ाल कर पीएं। दस्त में आराम आयेगा।

2- अदरक का रस नाभि के आस-पास लगाने से दस्त में आराम मिलता है।
3- मिश्री और अमरूद खाने से भी आराम मिलता है।
4- कच्चा पपीता उबाल कर खाने से दस्त में आराम मिलता है।

बार-बार मूत्र आये

1- सुबह-शाम एक-एक गुड़ और तिल से बना लड्ड़ु खाना चाहिए।
2- शाम के समय काले भुने हुए चने छिल्का सहित खाएं और एक छोटा सा टुकड़ा गुड़ का खाकर पानी पी लें।

उल्टी

1- तुलसी के रस में बराबर की मात्रा में शहद मिला कर चाटने से उल्टी बन्द हो जाती है।

2- 2 चम्मच शहद में बराबर मात्रा में प्याज़ का रस मिला कर चाटने से उल्टी बन्द हो जाती है।

3- दिन में 5-6 बार एक-एक चम्मच पोदीने का रस पीने से उल्टी बन्द हो जाती है।

बच्चों को सर्दी या बुखार हो जाय तब

1- दो-तीन तुलसी के पत्ते और छोटा सा टुकड़ा अदरक को सिलबट्टे पर पीस कर मलमल के कपड़े की सहायता से रस निकाल कर 1 चम्मच शहद मिला कर दिन में 2-3 बार देने से सर्दी में आराम मिलता है।

2- लौंग को पानी की बूंदों की सहायता से रगड़ कर उसका पेस्ट माथे पर और नाभि पर लगाना चाहिए।

3- एक कप पानी में चार-पाँच तुलसी के पत्ते और एक टुकड़ा अदरक ड़ाल कर उबाल लें पानी की आधी मात्रा रह जाने पर उसमें एक चम्मच गुड़ ड़ाल कर उबाल लें। दिन में दो बार दें। आराम आ जायेगा।

दिव्य वनौषधि गूलर

दिव्य वनौषधि गूलर
“ जय गुरुदेव ”
प्रिय भाई बहनों आज मैं आपको दिव्य ओषधि गूलर के बारे मे जानकारी दूंगा,
सम्पूर्ण भारत वर्ष में पाए जाने वाला गूलर अपनी उपयोगिता के कारण हमारे देश में एक पवित्र वृक्ष के रूप में जाना जाता है. यह भिन्न भिन्न प्रदेशों में भाषा के अनुरूप भिन्न भिन्न नामों से जाना जाता है, महाराष्ट्र में तो ऐसा माना जाता है की गूलर के वृक्ष में भगवान् दत्तात्रेय का वास होता है. वैसे तो सम्पूर्ण भारत में इसे गुलर के नाम से जाना जाता है किन्तु संकृत में इसे उदुम्बर जन्नूफल, मराठी में उम्बर, गुजराती में उम्बरो,बंगला में यज्ञ डूम्बुरा, अंग्रेजी में क्लस्टर फिग आदि नामों से जाना जाता है. गुण धर्म की दृष्टि से यदि देखा जाए तो यह कफ पित्त शामक, दाह प्रशमन, अस्थि संघानक तथा सोत, रक्त पित्त, प्रदर,प्रमेह,अर्श, गर्भाशय विकार आदि नाशक है. चिकित्सा की दृष्टि से गूलर की छाल, पत्ते, जड़, कच्चाफल व पक्का फल सभी उपयोगी है| गूलर का कच्चा फल कसैला व उदार के दाह का नाशक होता है, पके फल के सेवन और कप्पल भाति की क्रिया करने से कब्ज मिटता है| पकाफल मीठा, शीतल, रुचिकारक, पित्तशामक, श्रमकष्टहर, द्राह- तृष्णाशामक, पौष्टिक व कब्ज नाशक होता है| कुछ दिनों तक लगातार इसकी जड़ का अनुपातिक काढ़ा पीने से व योग के अंतर्गत आने वाले कपाल भाति की प्रक्रिया से मधुमेह पूरी तरह से नियंत्रित हो जाता है|
खुनी बवासीर में इसके पत्तों का रस लाभकारी होता है| गूलर का दूध शरीर से बाहर निकालने वाले विभिन्न स्रावों को नियंत्रित करता है| हाथ पैर की चमड़ी फटने से होने होने वाली पीड़ा कम करने के लिए गूलर के दूध का लेप करना लाभकारी सिद्ध हुआ है| मुँह में छाले, मसूढ़ों से खून आना आदि विकारों में इसकी छाल या पत्तों का काढ़ा बनाकर कुल्ली करने से विशेष लाभ होता है| ग्रीष्म ऋतु की गर्मी या अन्य जलन पैदा करने वाले विकारों एवं चेचक आदि में पके फल को पीसकर उसमे शक्कर मिलाकर उसका शर्बत बनाकर पीने से राहत मिलती है| इस प्रकार इसकी असंख्य उपयोगिताओं के कारण ही तो इसे पवित्र वृक्षों की श्रेणी में रखा गया है|
• 1 बताशे में 10 बूंद गूलर का दूध डालकर सुबह-शाम सेवन करने और 1 चम्मच की मात्रा में गूलर के फलों का चूर्ण रात में सोने से पहले लेने से धातु दुर्बलता दूर हो जाती है। इस प्रकार से इसका उपयोग करने से शीघ्रपतन रोग भी ठीक हो जाता है।
मर्दाना शक्तिवर्द्धक
• 1 छुहारे की गुठली निकालकर उसमें गूलर के दूध की 25 बूंद भरकर सुबह रोजाना खाये इससे वीर्य में शुक्राणु बढ़ते हैं तथा संतानोत्पत्ति में शुक्राणुओं की कमी का दोष भी दूर हो जाता है।
• 1 चम्मच गूलर के दूध में 2 बताशे को पीसकर मिला लें और रोजाना सुबह-शाम इसे खाकर उसके ऊपर से गर्म दूध पीएं इससे मर्दाना कमजोरी दूर होती है।
• पका हुआ गूलर सुखाकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में इसी के बराबर की मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी बोतल में भर कर रख दें। इस चूर्ण में से 2 चम्मच की मात्रा गर्म दूध के साथ सेवन करने से मर्दाना शक्ति बढ़ जाती है। 2-2 घंटे के अन्तराल पर गूलर का दूध या गूलर का यह चूर्ण सेवन करने से दम्पत्ति वैवाहिक सुख को भोगते हुए स्वस्थ संतान को जन्म देते हैं।
बाजीकारक (काम उत्तेजना):
• 4 से 6 ग्राम गूलर के फल का चूर्ण और बिदारी कन्द का चूर्ण बराबर मात्रा में मिलाकर मिश्री और घी मिले हुए दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करने से पौरुष शक्ति की वृद्धि होती है व बाजीकरण की शक्ति बढ़ जाती है। यदि इस चूर्ण का उपयोग इस प्रकार से स्त्रियां करें तो उनके सारे रोग ठीक हो जाएंगे।
• गर्मी के मौसम में गूलर के पके फलों का शर्बत बनाकर पीने से मन प्रसन्न होता है और शरीर में शक्ति की वृद्धि होती है तथा कई प्रकार के रोग जैसे- कब्ज तथा खांसी और दमा आदि ठीक हो जाते हैं।
उपदंश (फिरंग):
• 40 ग्राम गूलर की छाल को 1 लीटर पानी में उबालकर काढ़ा बना लें और इसमें मिश्री मिलाकर पीने से उपदंश की बीमारी ठीक हो जाती है।
शरीर को शक्तिशाली बनाना:
• लगभग 100 ग्राम की मात्रा में गूलर के कच्चे फलों का चूर्ण बनाकर इसमें 100 ग्राम मिश्री मिलाकर रख दें। अब इस चूर्ण में से लगभग 10 ग्राम की मात्रा में रोजाना दूध के साथ लेने से शरीर को भरपूर ताकत मिलती है।
प्रदर:
• गूलर के फूलों के चूर्ण को छानकर उसमें शहद एव मिश्री मिलाकर गोली बना लें। रोजाना 1 गोली का सेवन करने से 7 दिन में प्रदर रोग से छुटकार मिल जाता है।
• गूलर के पके फल को छिलके सहित खाकर ऊपर से ताजे पानी पीयें इससे श्वेत प्रदर रोग ठीक हो जाता है।
• गूलर के फलों के रस में शहद मिलाकर सेवन करने से प्रदर रोग में आराम मिलता है।
रक्तप्रदर :
• रक्तप्रदर में गूलर की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में या फल 2 से 4 की मात्रा में सुबह-शाम चीनी मिले दूध के साथ सेवन करने से अधिक लाभ मिलता है तथा रक्तप्रदर रोग ठीक हो जाता है।
• 20 ग्राम गूलर की ताजी छाल को 250 मिलीलीटर पानी में उबालें जब यह 50 मिलीलीटर की मात्रा में बच जाए तो इसमें 25 ग्राम मिश्री और 2 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सेवन करें इससे रक्तप्रदर रोग में लाभ मिलता है।
• पके गूलर के फलों को सुखाकर इसे कूटे और पीसकर छानकर चूर्ण बना लें। फिर इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर किसी ढक्कनदार बर्तन में भर कर रख दें। इसमें से 6 ग्राम की मात्रा में रोजाना सुबह-शाम दूध या पानी के साथ सेवन करने से रक्तप्रदर ठीक हो जाता है।
• पके गूलर के फल को लेकर उसके बीज को निकाल कर फेंक दें, जब उसके फल शेष रह जायें तो उसका रस निकाल कर शहद के साथ सेवन करने से रक्त प्रदर में लाभ मिलता है। रोगी इसके सब्जी का सेवन भी कर सकते हैं।
• 1 चम्मच गूलर के फल का रस में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर सुबह-शाम नियमित रूप से सेवन करने से कुछ ही हफ्तों में न केवल रक्त प्रदर ठीक होता है बल्कि मासिकधर्म में खून अधिक आने की तकलीफ भी दूर होती है।
श्वेत प्रदर:
• रोजाना दिन में 3-4 बार गूलर के पके हुए फल खाने से श्वेत प्रदर में लाभ मिलता है।
• गूलर का रस 5 से 10 ग्राम मिश्री के साथ मिलाकर नाभि के निचले हिस्से में पूरे पेट पर इससे लेप करें। इससे श्वेत प्रदर रोग में आराम मिलता है।
• 1 किलो कच्चे गूलर लेकर इसके 3 भाग कर लें। इसमें से कच्चे गूलर 1 भाग उबाल लें और इनकों पीसकर 1 चम्मच सरसों के तेल में फ्राई कर लें तथा इसकी रोटी बना लें। रात को सोते समय रोटी को नाभि के ऊपर रखकर कपड़ा बांध लें। इस प्रकार शेष 2 भागों से इसी प्रकार की क्रिया 2 दिनों तक करें इससे श्वेत प्रदर रोग की अवस्था में आराम मिलता है।
• 10-15 ग्राम गूलर की छाल को पीसकर, 250 मिलीलीटर पानी में डालकर पकाएं। पकने के बाद 125 मिलीलीटर पानी शेष रहने पर इसे छान लें और इसमें मिश्री व लगभग 2 ग्राम सफेद जीरे का चूर्ण मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें तथा भोजन में इसके कच्चे फलों का काढ़ा बनाकर सेवन करें श्वेत प्रदर रोग में लाभ मिलता है।
गर्भपात रोकना:
• गर्भावस्था में खून का बहना और गर्भपात होने के लक्षण दिखाई दें तो तुरन्त ही गूलर की छाल 5 से 10 ग्राम की मात्रा में अथवा 2 से 4 गूलर के फल को पीसकर इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ पीएं। जब तक रोग के लक्षण दूर न हो तब तक इसका प्रयोग 4 से 6 घंटे पर उपयोग में लें।
• गूलर की जड़ अथवा जड़ की छाल का काढ़ा बनाकर गर्भवती स्त्री को पिलाने से गर्भस्राव अथवा गर्भपात होना बंद हो जाता है।
भगन्दर:
• गूलर के दूध में रूई का फोहा भिगोंकर इसे नासूर और भगन्दर के ऊपर रखें और इसे प्रतिदिन बदलते रहने से नासूर और भगन्दर ठीक हो जाता है।
खूनी बवासीर:
• गूलर के पत्तों या फलों के दूध की 10 से 20 बूंदे को पानी में मिलाकर रोगी को पिलाने से खूनी बवासीर और रक्तविकार दूर हो जाते हैं। गूलर के दूध का लेप मस्सों पर भी लगाना लाभकारी है।
• 10 से 15 ग्राम गूलर के कोमल पत्तों को बारीक पीसकर चूर्ण बना लें। 250 ग्राम गाय के दूध की दही में थोड़ा सा सेंधानमक तथा इस चूर्ण को मिलाकर सुबह-शाम सेवन करने से खूनी बवासीर के रोग में लाभ मिलता है।
आंव (पेचिश):
• 5 से 10 ग्राम गूलर की जड़ का रस सुबह-शाम चीनी मिले दूध के साथ सेवन करने से आमातिसार (पेचिश) ठीक हो जाता है।
• बताशे में गूलर के दूध की 4-5 बूंदे डालकर रोगी को खिलाने से आमातिसार (आंव) ठीक हो जाता है।
• गूलर के पके फल खायें इससे पेचिश रोग ठीक हो जाता है।
• गूलर को गर्म जल में उबालकर छान लें और इसे पीसकर रोटी बना लें फिर इसे खाएं इससे पेचिश में लाभ होता है |
दस्त:
• दस्त और ग्रहणी के रोग में 3 ग्राम गूलर के पत्तों का चूर्ण और 2 दाने कालीमिर्च के थोड़े से चावल के पानी के साथ बारीक पीसकर, उसमें कालानमक और छाछ मिलाकर फिर इसे छान लें और इसे सुबह-शाम सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।
• गूलर की 10 ग्राम पत्तियां को बारीक पीसकर 50 मिलीलीटर पानी में डालकर रोगी को पिलाने से सभी प्रकार के दस्त समाप्त हो जाते हैं।
बच्चों का आंव:
• गूलर के दूध की 5-6 बूंदे चीनी के साथ बच्चे को देने से बच्चों के आंव ठीक हो जाते हैं।
विसूचिका:
• विसूचिका (हैजा) के रोगी को गूलर का रस पिलाने से रोगी को आराम मिलता है।
रक्तपित्त (खूनी पित्त):
• पके हुए हुए गूलर, गुड़ या शहद के साथ खाना चाहिए अथवा गूलर की जड़ को घिसकर चीनी के साथ खाने से लाभ मिलेगा और रक्तपित्त दोष दूर हो जाएगा।
• हर प्रकार के रक्तपित्त में गूलर की छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम तथा उसका फल 2 से 4 ग्राम तथा गूलर का दूध 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा के रूप में सेवन करने से लाभ मिलता है।
फोडे़:
• फोड़े पर गूलर का दूध लगाकर उस पर पतला कागज चिपकाने से फोड़ा जल्दी ठीक हो जाता है।
घाव:
• शरीर के अंगों में घाव होने पर गूलर की छाल से घाव को धोएं इससे घाव जल्दी ही भर जाते हैं।
• गूलर के पत्तों को छांया में सूखाकर इसे पीसकर बारीक चूर्ण बना लें। इसके बाद घाव को साफ करकें इसके ऊपर इस चूर्ण को छिड़के तथा इस चूर्ण में से 5-5 ग्राम की मात्रा सुबह तथा शाम को पानी के साथ सेवन करें इससे लाभ मिलेगा।
• गूलर के दूध में बावची को भिगोंकर इसे पीस लें और 1-2 चम्मच की मात्रा में रोजाना इससे घाव पर लेप करें इससे घाव जल्दी ही ठीक हो जाते हैं।
• गूलर के पत्तों को पानी के साथ पीसकर शर्बत बनाकर पीने से मधुमेह रोग में लाभ मिलता है।
• गूलर के ताजे फल को खाकर ऊपर से ताजे पानी पीये इससे मधुमेह रोग में आराम मिलता है।
शीतला (चेचक):
• गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को गाय के ताजे दूध में पीसकर इसमें थोड़ी सी चीनी मिलाकर चेचक से पीड़ित रोगी को पिलाये इससे उसका यह रोग ठीक हो जाएगा।
सूजन:
• भिलावें की धुएं से उत्पन्न हुई सूजन को दूर करने के लिए गूलर की छाल को पीसकर इससे सूजन वाली भाग पर लेप करें।
गांठ:
• शरीर के किसी भी अंग पर गांठ होने की अवस्था में गूलर का दूध उस अंग पर लगाने से लाभ मिलता है।
पेशाब अधिक आना:
• 1 चम्मच गूलर के कच्चे फलों के चूर्ण को 2 चम्मच शहद और दूध के साथ सेवन करने से पेशाब का अधिक मात्रा में आने का रोग दूर हो जाता है।
पेशाब के साथ खून आना:
• पेशाब में खून आने पर गूलर की छाल 5 ग्राम से 10 ग्राम या इसके फल 2 से 4 लेकर पीस लें और इसमें चीनी मिलाकर दूध के साथ खायें इससे यह रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
मूत्रकृच्छ (पेशाब करने में कष्ट या जलन) होना:
• प्रतिदिन सुबह गूलर के 2-2 पके फल रोगी को सेवन करने से मूत्रकच्छ (पेशाब की जलन) में लाभ मिलता है।
• गूलर के 8-10 बूंद को 2 बताशों में भरकर रोजाना सेवन करने से मूत्ररोग (पेशाब के रोग) तथा पेशाब करने के समय में होने वाले कष्ट तथा जलन दूर हो जाती है।
मधुमेह:
• 1 चम्मच गूलर के फलों के चूर्ण को 1 कप पानी के साथ दोनों समय भोजन के बाद नियमित रूप से सेवन करने से पेशाब में शर्करा आना बंद हो जाता है। इसके साथ ही गूलर के कच्चे फलों की सब्जी नियमित रूप से खाते रहना अधिक लाभकारी होता है। मधुमेह रोग ठीक हो जाने के बाद इसका सेवन करना बंद कर दें।
दांतों की मजबूती के लिए :
• गूलर की छाल के काढे़ से गरारे करते रहने से दांत और मसूड़ों के सारे रोग दूर होकर दांत मजबूत होते हैं।
कंठमाला (गले में गिल्टी होना):
• गूलर के पत्तों पर उठे हुए कांटों को पीसकर इसे मीठे या दही मिला दें और इसमें चीनी मिलाकर रोजाना 1 बार सेवन करें इससे कंठमाला के रोग से मुक्ति मिलती है।
खांसी:
• रोगी को बहुत तेज खांसी आती हो तो गूलर का दूध रोगी के मुंह के तालू पर रगड़ने से आराम मिलता है।
• गूलर के फूल, कालीमिर्च और ढाक की कोमल कली को बराबर मात्रा में लेकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में 5 ग्राम शहद में मिलाकर रोजाना 2-3 बार चाटने से खांसी ठीक हो जाती है।
नाक से खून बहना:
• पके गूलर में चीनी भरकर घी में तलें, इसके बाद इस पर काली मिर्च तथा इलायची के दानों का आधा-आधा ग्राम चूर्ण छिड़कर प्रतिदिन सुबह के समय में सेवन करें तथा इसके बाद बैंगन का रस मुंह पर लगाएं इससे नाक से खून गिरना बंद हो जाता है।
• गूलर का पेड़, शाल पेड़, अर्जुन पेड़, और कुड़े के पड़े की पेड़ की छाल को बराबर मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर चटनी बना लें। इन सब चीजों का काढ़ा भी बनाकर रख लें। इसके बाद इस चटनी तथा इससे 4 गुना ज्यादा घी और घी से 4 गुना ज्यादा काढ़े को कढ़ाही में डालकर पकाएं। पकने पर जब घी के बराबर मात्रा रह तो इसे उतार कर छान लें। अगर नाक पक गई हो तो इस घी को नाक पर लगाने से बहुत जल्दी आराम मिलता है।
रक्तस्राव (खून का बहना):
• नाक से, मुंह से, योनि से, गुदा से होने वाले रक्तस्राव में गूलर के दूध की 15 बूंदे 1 चम्मच पानी के साथ दिन में 3 बार सेवन करने से लाभ मिलता है।
• शरीर में कहीं से भी किसी कारण से रक्तस्राव (खून बहना) हो रहा हो तो गूलर के पत्तों का रस निकालकर वहां पर लगाएं इससे तुरन्त खून का आना बंद हो जाता है।
• मुंह में छाले हो अथवा खून आता हो या खूनी बवासीर हो तो 1 चम्मच गूलर के दूध में इतनी ही पिसी हुई मिश्री मिलाकर रोजाना खाने से रक्तस्राव (खून बहना) होना बंद हो जाता है तथा इसके सेवन से मुंह के छाले भी ठीक हो जाते हैं।
चोट लगने पर खून का बहना:
• गूलर के पत्तों का रस चोट लगे हुए स्थान पर लगने से खून बहना रुक जाता है।
• गूलर के रस को रूई में भिगोकर इसे चोट पर रखकर पट्टी बांध लें इससे चोट जल्दी भरकर ठीक हो जाएगा।
शिशु का दुबलापन:
• गूलर का दूध कुछ बूंदों की मात्रा में मां या गाय-भैंस के दूध के साथ मिलाकर नियमित रूप से कुछ महीने तक रोजाना 1 बार बच्चों को पिलाने से शरीर हृष्ट-पुष्ट और सुडौल बनाता है लेकिन गूलर के दूध बच्चों उम्र के अनुसार ही उपयोग में लेना चाहिए।
सूखा (रिकेट्स) रोग:
• 5 बूंद गूलर के दूध को 1 बताशे पर डालकर इसका सेवन बच्चों को कराएं इससे सूखा रोग (रिकेटस) ठीक हो जाता है।
बच्चों के गाल पर सूजन होना:
• बच्चों के गाल की सूजन को दूर करने के लिए उनके गाल पर गूलर के दूध का लेप करें इससे लाभ मिलेगा।
बिच्छू का जहर:
• जहां पर बिच्छू ने काटा हो उस स्थान पर गूलर के अंकुरों को पीसकर लगाए इससे जहर चढ़ता नहीं है और दर्द से आराम मिलता है।
आग से जलने पर :
• जलने पर गूलर की हरी पत्तियां पीसकर लेप करने से जलन दूर हो जाती है।
• गूलर के पत्तों को पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से जलन मिट जाती है और छाले के निशान भी नही पड़ते।
दमा:
• गूलर की पेड़ की छाल उतारकर छाया में सुखा लें और फिर इसे पीसकर चूर्ण बना लें और फिर इसे छानकर बोतल में भरकर ढक्कन लगाकर रख दें। इसमें से चूर्ण का सेवन प्रतिदिन करने से दमा रोग में लाभ मिलता है।
• सितम्बर से मार्च तक की हर पूर्णमासी की रात में जितना खीर खा सकें, उतने दूध में चावल (इस खीर में अरबा चावल उत्तम माने जाते हैं) डालकर खीर बनाएं। इस खीर को कांसे की थाली में डालकर फैलाकर, इस पर ढाई चम्मच गूलर की छाल का चूर्ण चारो और छिड़क दें। खीर रात को नौ बजे तक तैयार कर लें। इसे रात को नौ बजे से सुबह के चार बजे तक खुले स्थान पर चांदनी में रखें। सुबह चार बजे के तुरन्त बाद इसे भर पेट खा लें। खीर खाने से पहले मंजन करके मुंह को साफ कर लें। आम के हरे पत्ते से खीर खाएं। इसके बाद धीरे-धीरे थकान नहीं हो तब तक घूमते रहें। इससे दमा रोग में लाभ मिलता है।
जिगर का रोग:
• 10 ग्राम की मात्रा में जंगली गुलर की जड़ की छाल पीसकर गाय के मूत्र में मिला लें और इसे छानकर 25 ग्राम की मात्रा में रोजाना पीने से से यकृत वृद्धि खत्म जाती है।
वमन (उल्टी):
• गूलर के दूध की 10 बूंदे सुबह और शाम दूध में मिलाकर बच्चों को पिलाने से बच्चों को उल्टी आना बंद हो जाता है
प्रमोद मिश्रा ::

किडनी फेल्योर या किडनी के रोग

किडनी फेल्योर या किडनी के रोग
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हमारी दोनों किडनियां एक मिनट में 125 मिलिलीटर रक्त का शोधन करती हैं। ये शरीर से दूषित पदार्थो को भी बाहर निकालती हैं। इस अंग की क्रिया बाधित होने पर विषैले पदार्थ बाहर नहीं आ पाते और स्थिति जानलेवा होने लगती है जिसे गुर्दो का फेल होना (किडनी फेल्योर) कहते हैं। इस समस्या के दो कारण हैं,

🍀 एक्यूट किडनी फेल्योर व क्रॉनिक किडनी फेल्योर।🍀

🍀 क्रॉनिक किडनी फेल्योर 🍀

शुरूआत में इस रोग के लक्षण स्पष्ट नहीं होते लेकिन धीरे-धीरे थकान, सुस्ती व सिरदर्द आदि होने लगते हैं। कई मरीजों में पैर व मांसपेशियों में खिंचाव, हाथ-पैरों में सुन्नता और दर्द होता है। उल्टी, जी-मिचलाना व मुंह का स्वाद खराब होना इसके प्रमुख लक्षण हैं।

🍀 कारन 🍀

ग्लोमेरूनेफ्रायटिस, इस रोग में किडनी की छनन-यूनिट (नेफ्रॉन्स) में सूजन आ जाती है और ये नष्ट हो जाती है। डायबिटीज व उच्च रक्तचाप से भी किडनी प्रभावित होती है।

🍀 पॉलीसिस्टिक किडनी 🍀

यानी गांठें होना, चोट, क्रॉनिक डिजीज, किडनी में सूजन व संक्रमण, एक किडनी शरीर से निकाल देना, हार्ट अटैक, शरीर के किसी अन्य अंग की प्रक्रिया में बाधा, डिहाइड्रेशन या प्रेग्नेंसी की अन्य गड़बडियां।

🍀 एक्यूट किडनी फेल्योर 🍀

पेशाब कम आना, शरीर विशेषकर चेहरे पर सूजन, त्वचा में खुजली, वजन बढ़ना, उल्टी व सांस से दुर्गध आने जैसे लक्षण हो सकते हैं।

🍀 कारण: 🍀

किडनी में संक्रमण, चोट, गर्भवती में टॉक्सीमिया (रक्त में दूषित पदार्थो का बढ़ना) व शरीर में पानी की कमी।

🍀 आयुर्वेद में इलाज 🍀

आयुर्वेद में दोनों किडनियों, मूत्रवाहिनियों और मूत्राशय इत्यादि अवयवों को मूत्रवह स्रोत का नाम दिया गया है। पेशाब की इच्छा होने पर भी मूत्र त्याग नहीं करना और खानपान जारी रखना व किडनी में चोट लगना जैसे रोगों को आयुर्वेद में मूत्रक्षय एवं मूत्राघात नाम से जाना जाता है।

🍀 आयुर्वेदिक ग्रंथ माधव निदान के अनुसार रूक्ष प्रकृति व विभिन्न रोगों से कमजोर हुए व्यक्ति के मूत्रवह में पित्त और वायु दोष होकर मूत्र का क्षय कर देते हैं जिससे रोगी को पीड़ा व जलन होने लगती है, यही रोग मूत्रक्षय है। इसमें मूत्र बनना कम या बंद हो जाता है।

उपाय : तनाव न लें। नियमित अनुलोम-विलोम व प्राणायाम का अभ्यास करें।

🍀 ब्लड प्रेशर 🍀

ब्लड प्रेशर बढ़ने पर नमक, इमली, अमचूर, लस्सी, चाय, कॉफी, तली-भुनी चीजें, गरिष्ठ आहार, अत्यधिक परिश्रम, अधिक मात्रा में कसैले खाद्य-पदार्थ खाने, धूप में रहने और चिंता से बचें। काला नमक खाएं, इससे रक्त संचार में अवरोध दूर होता है।

🍀 किडनी खराब होना 🍀

किडनी खराब हो तो ऎसे खाद्य-पदार्थ न खाएं, जिनमें नमक व फॉस्फोरस की मात्रा कम हो। पोटेशियम की मात्रा भी नियंत्रित होनी चाहिए। ऎसे में केला फायदेमंद होता है। इसमें कम मात्रा में प्रोटीन होता है। तरल चीजें सीमित मात्रा में ही लें। उबली सब्जियां खाएं व मिर्च-मसालों से परहेज करें।

🍀 औषधियां 🍀

आयुर्वेदिक औषधियों पुनर्नवा मंडूर, गोक्षुरादी गुग्गुलु, चंद्रप्रभावटी, श्वेत पर्पटी, गिलोय सत्व, मुक्ता पिष्टी, मुक्तापंचामृत रस, वायविडंग इत्यादि का सेवन विशेषज्ञ की देखरेख में ही करें। नियमित रूप से एलोवेरा, ज्वारे व गिलोय का जूस पीने से हीमोग्लोबिन बढ़ता है।

🍀 डाइट कैसी हो 🍀

गाजर, तुरई, टिंडे, ककड़ी, अंगूर, तरबूज, अनानास, नारियल पानी, गन्ने का रस व सेब. खाएं लेकिन डायबिटीज है तो गन्ने का रस न पिएं।

🍀 इन चीजों से पेशाब खुलकर आता है।🍀

मौसमी, संतरा, किन्नू, कीवी, खरबूजा, आंवला और पपीते खा सकते हैं।

रात को तांबे के बर्तन में रखा पानी सुबह पिएं।

🍀 सिरम क्रेटनीन व यूरिक एसिड बढ़ने पर 🍀

रोगी प्रोटीन युक्त पदार्थ जैसे मांस, सूखे हुए मटर, हरे मटर, फै्रंचबीन, बैंगन, मसूर, उड़द, चना, बेसन, अरबी, कुलथी की दाल, राजमा, कांजी व शराब आदि से परहेज करें। नमक, सेंधा नमक, टमाटर, कालीमिर्च व नींबू का प्रयोग कम से कम करें। इस रोग में चैरी, अनानास व आलू खाना लाभकारी होता है।

🍀 एक लोक-कहावत के अनुसार- खाइ के मूतै सोवे बाम। कबहुं ना बैद बुलावै गाम यानी भोजन करने के बाद जो व्यक्ति मूत्र-त्याग करता है व बायीं करवट सोता है, वह हमेशा स्वस्थ रहता है और वैद्यों या डॉक्टरों की शरण में जाने से बचता है।